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पारा धीरे धीरे चढने लगा चुनाव का

कितने ही वादे करवालो नेताओं का क्या जाने वाला अभी जैसा चाहो उन्हें नचाओ उनका क्या जाने वाला कुछ दिन और बचे हैं जितनी चाहो खुशी मनालो फिर तो रोना ही रोना है ईश्वर भी नहीं बचाने वाला..... लोक सभा के चुनाव का पारा धीरे धीरे चढने लगा है, प्रचार के दौरान नेता माथा भी गरमाने लगा है, भाषण में बोल जायें उन्हे भी पता नही हेै।आचार संहिता की नियमावली की धज्जियां उडना शुरू हो चुकी है। साम्प्रदायिकता का सुर्ख होने लगा है, धर्म के ठेकेदार सक्रिय हो चुके हैं और अपने धर्म व जाति ठेका लेना शुरू कर चुके हैं। मौलाना के फतवे जारी होने लगे हैं तो दूसरे धर्म के लोग योगा के ही बहाने अपनी बात मनवाने पर तुले हुए हैं।नेता भी अपना संयम खो रहे हैं।राहुल इन्दिरा को बेल्लारी से लडा रहे हैं,तो वहीं वरूण गांधी को राहुल गांधी द्वारा अमेठी में कराये गये विकास दिखायी देने लगा।राजस्थान की मुख्यमंत्री कांग्रेस के लोकसभा क्षेत्र सहारनपुर प्रत्याशी इमरान मसूद के मोदी के विरूद्ध विवादास्पद का जबाब उसी अंदाज में दे डाला। इतना ही नही भाजपा के प्रदेश  प्रभारी अमित शाह ने वोट से बदला लेने की बात मुजफ्फरनगर  की जनसभा में कह डाला

ये कैसी राजनीति !

भारत देश विविधताओं से परिपूर्ण है। यहां जनता का राज्य है जिसे प्रजातंत्र या लोतंत्र के रूप में पुकारा जाता है।आजादी के बाद से लोकतंत्र 67 वर्ष का लंबा सफर तय कर चुका है।आज देश की राजनीतिक हालात बेहद गंभीर हो चला है।विश्व के सबसे बडे लोक तंत्र के जनप्रतिनिधियों को देश के कर्णधार कहें तो अतिश्योक्ति नही होगी। गांधी,नेहरू पटेल, बोस या फिर अम्बेडकर जी के सपनों को आगे ले जाने वाले आज के नेताओं द्वारा जिस प्रकार लोकतंत्र की धज्जियां उडा रहे हैं।उन महान नेताओं की आत्माएं भी रो रही होगीं और चिल्ला चिल्लाकर कह रही होगीं कि हे भारत मां मुझको माफकर दे । मुझे नही पता था कि जो आजादी के बंधन से तुझे मुक्त कर प्यारा सुराज,सुख शांति ओैर प्रेम का स्वरूप देखने को मिलेगा,वह नेस्तनाबूद हो चुका है। और रह गयी है सिर्फ मक्कारी, भ्रष्टाचार,बेईमानी,झूठ फरेब,ठगी,चापलूसी,नैतिक पतन।ये नही मालूम मौजूदा पीढी के नेताओं का ये पर्यायवाची बन जायेगा। नैतिकता,चरित्र,ईमानदार,सच,व परोपकार जैसे शब्द शब्दकोश रह ही नही जायेंगे। होंगे भी तो इन नेताओं के भाषणों में समाहित होकर रह जायेंगें, चुनावी मौसम में बसंत के पतझड की तरह झर