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सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपने ही मातृभूमि में बेगानी हो गई है मातृभाषा हिन्दी

 देश हर वर्ष की तरह इस बार भी 15 सितम्बर से हिन्दी पखवाडा चल रहा है। जोकि 29 सितम्बर को समापन होगा।बात करें हिन्दी की तो मातृभाषा जिसे राजभाषा का दर्जा मिला है पर पूर्ण दर्जा पाने के लिए आज भी जद्दो जहद हिन्दी अपनी ही जन्मभूमि में ही बेगानी नजर आ रही है। वहीं कम्प्यूटरीकरण से हिन्दी को करारा झटका लगा है। स्थित यह कि सरकारी दफ्तरो में अधिकांश कामकाज अंग्रेजी भाषा मे होता है। परिणाम स्वरूप हिन्दी को व्यवसायिक राज्यभाषा का दर्जा नही मिल सका है। राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए केन्द्र सरकार के दफ्तररों मे हिन्दी अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, स्पष्ट आदेश हेै कि हिन्दी मे। कामकाज किए जाएं। लेकिन बी एस एन एल, डाक, रेल आदि जैसी महत्वपूर्ण विभाग हिन्दी का इस्तेमाल नही करते है। जिसमे लम्बे चौड़े दावे होेते हैं, लेकिन जब इन दावों के क्रियान्वयन की बारी आती है तो जिम्मेदार अधिकारी हाथ खडा कर लेते है। आम तोैर पर बी एस एन एल दफ्तर है जिसमे टेलीफोन, मोबाइल बिल अग्रेजी भाषा मे जारी होते है। कनेक्शन फार्म भी अग्रेजी मे होता है यह तक कि टेंण्डर भी अंग्रेजी भाषा के अखबार में प्रकाशित किया जाता है।

सोलह बनाम चौरासी की सियासत के भंवर में अटके सियासी दल !

‌सामाजिक न्याय व समरसता का ढिंढोरा पीटने वाले राजनीतिक दल पहले तो सवर्णों को आरक्षण के जाल में उलझा कर रखने और अब एससी एसटी एक्ट के बहाने उन्हें और प्रताड़ित कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का एक और जरिया ढूंढ लिया है । जिस तरह भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का कृत्य किया है । इसे भी जातीय राजनीति करने वालों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।  राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी क्षेत्रीय दलों की श्रेणी में शामिल हो गई है ,जो कि क्षेत्रवाद और जातिवाद की राजनीति करते हैं। बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने संविधान में आरक्षण को 10 वर्ष के लिए लागू किया किया था।  जिसकी उस समय सामाजिक समरसता लाने की व अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए अति आवश्यकता थी। इस अधिनियम को समय-समय पर हर 10 वर्ष पर आगे बढ़ाया गया ,जो कि तर्कसंगत भी है । लेकिन अब इसका भी दुरुपयोग होने लगा है , क्योंकि इसका लाभ क्रीमी लेयर के लोग भी उठा रहे हैं । इसलिए काफी समय से मांग उठ रही है कि इसे गरीबी के आधार पर लागू किया जाए । लेकिन राजनीतिक दल अपनी वोट की राजनीति के खातिर सभी वर्गों के साथ अन्याय कर

‌आग से आग तक का सफ़र .......आर0के0स्टूडियो

‌जाने कहाँ गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे चाहे कहीं भी तुम रहो, चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे जाने कहाँ गए वो दिन ...जी हाँ ये पंक्तियाँ देश के सबसे बड़े शोमैन स्व0 राजकपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकर के गाने की हैं। जिनके हर शब्द आज के समय में माकूल बैठ रहा है। कभी मुम्बई की फिल्मसिटी का सिरमौर रहा आर0के0 स्टूडियो अब बिकने के कगार पर है। उसकी दीवारें गुजरे ज़माने को याद कर रही हैं। सच भी है जब इस इमारत में नए कलाकारों की किस्मत लिखी जाती थी ,उनका भविष्य तय होता था उस ज़माने में आर0के0 स्टूडियो की बादशाहत हुआ करती थी। लेकिन आग से शुरू और आग पर ही ख़त्म हो रही इस स्टूडियो की कहानी। अभिनेता स्व0 राजकपूर द्वारा 1951 में स्थापित आर0के0 स्टूडियो ने अपने 70 साल के सफर में बहुत सी यादों को समेटे हुए हैं। राजकपूर अभिनेता के साथ साथ प्रोडूसर डायरेक्टर भी रहे ।इनकी फिल्मों में विविधता के साथ सामाजिक सरोकार भरी होती थी। जीवन के अनेक करेक्टर को उन्होंने अपने अभिनय से जीवंत किया है ।इसलिए इन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा शोमैन भी कहा जाता था। उनकी पहली फिल्म आग थी