जाने कहाँ गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे चाहे कहीं भी तुम रहो, चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे जाने कहाँ गए वो दिन ...जी हाँ ये पंक्तियाँ देश के सबसे बड़े शोमैन स्व0 राजकपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकर के गाने की हैं। जिनके हर शब्द आज के समय में माकूल बैठ रहा है। कभी मुम्बई की फिल्मसिटी का सिरमौर रहा आर0के0 स्टूडियो अब बिकने के कगार पर है। उसकी दीवारें गुजरे ज़माने को याद कर रही हैं। सच भी है जब इस इमारत में नए कलाकारों की किस्मत लिखी जाती थी ,उनका भविष्य तय होता था उस ज़माने में आर0के0 स्टूडियो की बादशाहत हुआ करती थी। लेकिन आग से शुरू और आग पर ही ख़त्म हो रही इस स्टूडियो की कहानी। अभिनेता स्व0 राजकपूर द्वारा 1951 में स्थापित आर0के0 स्टूडियो ने अपने 70 साल के सफर में बहुत सी यादों को समेटे हुए हैं। राजकपूर अभिनेता के साथ साथ प्रोडूसर डायरेक्टर भी रहे ।इनकी फिल्मों में विविधता के साथ सामाजिक सरोकार भरी होती थी। जीवन के अनेक करेक्टर को उन्होंने अपने अभिनय से जीवंत किया है ।इसलिए इन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा शोमैन भी कहा जाता था। उनकी पहली फिल्म आग थी जिसमें डायरेक्शन भी किया था। वह भी मात्र 22-23 साल उम्र में यह करिश्मा कर दिखाया । उनके मन में आग फ़िल्म की सफलता से सपना जगा कि उनका भी अपना स्टूडियो हो और उन्होंने इस सपने को पूरा भी किया।
Raj Kapoor
(1924-88)
1951 में पहली फिल्म आवारा का निर्माण किया, जिसका गीत मैं आवारा हूं, हर गर्दिशों का तारा हूं , ने भारत ही नहीं विदेशों में भी धूम मचा दी । फ़िल्म बूट पोलिश का गाना मेरा जूता है जापानी, पतलून इंग्लिशतानी ,सर पर लाल टोपी ,फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी , ने तो चीन,जापान, अमेरिका हो या फिर रूस हर तरफ धमाल और इनके अभिनय की धूम थी। उसके बाद आर के स्टूडियो में फिल्मों का निर्माण शुरू हो गया जो कि 70 सालों तक जारी रहा। जिस देश में गंगा बहती है , मेरा नाम जोकर,बॉबी, राम तेरी गंगा मैली हो गई,प्रेमरोग,से लेकर हिना व आ अब लौट चलें जैसे फिल्मों का 90% शूटिंग इसी स्टूडियो में हुई। राजकपूर ने अपने बेटों रणधीर कपूर , राजीव कपूर, ऋषि कपूर सहित न जाने कितने हीरो व हीरोइन को आर0के0 स्टूडियो से ही फिल्मों में लांच कराया था। लोगों की यादें इससे जुडी हुई हैं। मुंबई के चिम्बूर इलाके में दो एकड़ में फैले इस स्टूडियो ने हिंदी फ़िल्म इतिहास में जाने कितनी इबारत लिख चुका है,जुबां से बयां करना नामुमकिन है। यहाँ की होली मशहूर थी, जो आता था बिना रंग में रंगे जाने नही पाता था। आर0के0 स्टूडियो की पार्टी में भाग लेना फ़िल्म इंडस्ट्री के कलाकारों के लिए गौरव की बात हुआ करती थी। राजकपूर के ठहाकों से गूंजने वाला ये स्टूडियो 1988 में उनकी मौत के बाद जैसे स्टूडियो ही बीमार हो चला और परिसर की हलचल थमने लगी । 1998 में आ अब लौट चलें फ़िल्म की शूटिंग ख़त्म होने बाद होम प्रोडक्शन की आखिरी फ़िल्म साबित हुई ।अब स्टूडियो के खर्च निकलना भी मुश्किल होने लगा। यदा कदा सीरियल आदि की शूटिंग होती रही । लेकिन रख रखाव का खर्च भी नही आ रहा था।
करीब 20 वर्ष से कपूर खानदान की उपेक्षा का शिकार भी हो रहा है। ऐसा नही था कि कपूर खानदान फिल्मों से नाता तोड़ चुका है। आज भी इस खानदान के लोग सक्रिय हैं। ऋषि कपूर, रणबीर कपूर, करिश्मा, करीना सहित कई नाम हैं जो कि किसी न किसी रूप में फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हैं। ये लोग इस खानदानी स्टूडियो को बेचने से रोक सकते हैं। इतना ही नही राजकपूर की फिल्मों से आज भी मिलने वाली रॉयल्टी करोड़ों में है। करीब 10 करोड़ रुपये रायल्टी परिवार के छः सदस्य क्र बीच बंटती है। अगर इसे मिलकर स्टूडियो पर खर्च किया जाय तो इसका स्वरूप कुछ और हो, साथ ही राजकपूर जी के इस सपने को बेंचने से रोका जा सकता है। यही नही पारिवारिक सदस्यों की भी यादें इससे जुडी हुई हैं। ऋषि कपूर का कहना है कि यहीं से मेरे कैरियर की शुरुआत हुई थी। 2017 में आर0के0 स्टूडियो में भयंकर आग लग गई। एक बड़ा हिस्सा और बहुत सारे जरूरत के सामान जल गए। इस घटना ने कपूर परिवार को झकझोर कर रख दिया। अब उन्हें लगने लगा कि स्टूडियो बेचने में ही भलाई है। और आखिर में राजकपूर के सपनों के स्टूडियो को बेचने फैसला ले लिया है। अब इस स्टूडियो की इमारत बड़ी मायूसी के साथ खड़ी राजकपूर के ही फ़िल्म का गाना उन्हें याद कर गुनगुना रही होगी...छोड़ गए बालम ,हाय अकेला छोड़ गये....The End.
@NEERAJ SINGH
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