सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीएसटी लागू कार्यक्रम का कांग्रेस का बायकॉट

जीएसटी आज आधी रात से लागू होने जा रहा है,इस ऐतिहासिक क्षण पर संसद के सेंट्रल हाल देश के राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री व देश भर के राज्यों के वित्तमंत्री शामिल हो रहे हैं। इस कार्यक्रम को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संबोधित करेंगे। उस कार्यक्रम में विपक्षी दल कांग्रेस सहित अनेक दलों को आमंत्रित किया गया। लेकिन जीएसटी को लागू करने की समिति में तो सभी दल शामिल हुए लेकिन अब जब लागू करने का समय आया तो कांग्रेस ने केंद्र सरकार के आमंत्रण को ठुकरा दिया है। उनका कहना है कि देश की आजादी के बाद पहली बार सेंट्रल हाल में ऐतिहासिक आयोजन हुआ था ,लेकिन इस हाल को राजनीति के लिए बीजेपी उपयोग कर रही है जो गलत है। साथ ही इस रूप में जीएसटी का लागू होना ठीक नही है। लेकिन अब कांग्रेस नेताओ को कौन समझाए की जीएसटी कमेटी में आपके ही सदस्य थे ।जो सुझाव दिया उसे माना भी गया।अब एनडीए को छोड़ सभी विपक्षी दलों के सुर बदल गया है। ममता की तृणमूल कांग्रेस को जीएसटी पसंद ही नही है । समाजवादी पार्टी भी इसके विरुद्ध हैं लेकिन शामिल होगी। आरजेडी शामिल नही होगी ,लेकिन साथी पार्टी जदयू शामिल होगी। ए

जीएसटी क्यों बना हुआ है हौव्वा !

देश में एक समान लगने वाला टैक्स जीएसटी यानी गुड्स जीएसटी यानी गुड्स और सर्विस टैक्स को लेकर लोगों में तरह तरह भ्रांतियां फैलायी जा रही हैं। कोई इसे फायदे का सौदा बता रहा है तो कोई नुकसानदायक और मंहगाई पूर्ण निर्णय मान रहा है। व्यवसायी वर्ग इसे हौव्वा ही मान कर चल रहा है। अब आगामी एक जुलाई को जीएसटी लगना तय हो चुका है । सरकार इसके 30 जून की आधी रात को विशेष संसद सत्र बुलाया गया है जिसमें सभी प्रदेशों के वित्तमंत्री भी बुलाये गये हैं। अब समझने की बात है कि इस टैक्स को हौव्वा क्यों बनाया जा रहा है , क्या ये विपक्ष की सोची समझी चाल है कि जनता को बरगलाया जा रहा है या फिर जनता इसे समझ नही पा रही है। और सरकार इसे समझााने में कामयाब नही हो पा रहा है। अनेक अर्थशात्री जीएसटी को लेकर काफी उत्साहित है और मानना है कि जीडीपी 1से 1.5 प्रतिशत की बढोत्तरी होगी। वहीं कई इसे भारतीय व्यवस्था के लिए सही नही मान रहे हैं। वस्तुओं पर 05 से 28 प्रतिशत लगने वाला जीएसटी को अधिकांश जानकार सही मान रहे हैं, लेकिन इसकी दर अन्य देशों की तुलना अधिक होना गलत मान रहे हैं। उनका मानना है कि मंहगाई बढेगी, इसलिए इसे अधिकत

प्रधानमंत्री मोदी दो दिन की यात्रा पर पहुंचे अमेरिका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन यात्रा पर अमेरिका पहुँच गए हैं। ये यात्रा दोनों देश के लिए इस लिए भी महत्वपूर्ण हो गई है कि जहाँ मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के गद्दी संभालने बाद पहली मुलाकात होगी ,साथ ही जिस प्रकार हाल में कश्मीर से लेकर लंदन तक आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई इस गम्भीर मुद्दे पर भी अहम बातचीत होना तय है। डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को सच्चा मित्र बताकर इस यात्रा को और ही अहम बना दिया है पूरे विश्व की नजरें दोनों नेताओं के मुलाकात पर गड़ गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की यात्रा पर अमेरिक ा पहुँच गए हैं। उनके पहुंचने पर भारतीय समुदाय के लोगों जोरदार स्वागत किया है।श्री मोदी के विलार्ट होटल भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पहुंचे। होटल के बाहर भारतीय समुदाय के लोग बड़ी संख्या में मौजूद मिले और मोदी मोदी के नारे लगाते दिखाई पड़े। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ ही घंटो में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से उनसे व्हाइट हॉउस में मिलेंगे। जहां उनके सम्मान में राजकीय भोज का आयोजन होगा ,जिसमे दोनों नेता साथ में डिनर करेंगे। ये यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण है

राष्ट्रपति पद भी जातिकरण से अछूता नहीं !

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए दलित समाज की मीरा कुमार को यूपीए का उम्मीदवार बनाया ,जबकि इसी समाज के राम नाथ कोविन्द को एनडीए पहले उम्मीदवार बना चुका है। यानी ये राष्ट्रपति चुनाव दलित बनाम दलित बन चुका है। राष्ट्रवाद व धर्मनिरपेक्ष की दुहाई देने वाले ये राजनीतिक दलों ने तो हद ही कर दी । इन्हें शर्म नही आती है की राष्ट्रपति जैसे संबैधानिक पद को भी आरक्षण की आग में झोंकने का काम किया जा रहा है। एक दल को दोषी ठहराना गलत होगा, क्योंकि इसके सभी राजनीतिक पार्टियां पूर्ण दोषी हैं। लोकतांत्रिक देश के लिए इससे बड़ा दुःख की बात और क्या हो सकती है। प्रणव मुखर्जी जैसे विद्वान राष्ट्रपति को दुबारा मौका देना क्या गलत होता! अगर सभी राजनीतिक दलों को खंगाला जाया तो शायद इनके मुखौटे एक जैसे ही मिलेंगे कोई 19 होगा तो कोई 20 होगा। हम्माम सभी नंगे दिखेंगे।हद हो गई है देश की दिशा को हमारे राजनीतिक दल कहाँ ले जा रहे हैं। हम दलित के राष्ट्रपति बनने के विरोध में कतई नहीं बल्कि स्वागत करते हैं। लेकिन राष्ट्रपति जैसे पदों के लिये घटिया राजनीति करने का विरोधी हूँ , इसके लिए आम सहमति होना काफी मायने रखता है,

देश से गद्दारी आखिर कब तक !

देश का हालात दिन ब दिन बिगड़ता ही जा रहा है। देश की खिलाफत करने का शगल बन गया है, जोकि ये देश की अस्मिता के लिए आत्मघाती कदम के समान है। देश के बाहर के दुश्मनों से निपटने से पहले जरूरी है की अपने ही दामन में पल रहे संपोलों को कुचलना आवश्यक हो गया है। ये किस प्रकार देश की खिलाफत और दुश्मन की हिमायत खुलेआम कर रहें हैं, इसका जीता जागता उदाहरण रविवार को देखने मिला जब भारत चैम्पियन ट्रॉफी के फाइनल में पाक से शिकस्त मिली तब भारत के कश्मीर सहित देश के विभिन्न भागों में जमकर पाकिस्तान की जीत जश्न मनाया गया और आतिशबाजी के भारत विरोधी नारे भी लगे। कश्मीर में तो हद हो गई जब एक अलगाववादी कुत्ता मीरवाइज ने ट्वीट कर पाकिस्तान को बधाई दिया और जीत के जश्न में शामिल हुआ। सरेआम कश्मीर की सड़कों पर आतिशबाजी और भारत विरोधी नारे लगे और पाकिस्तान जिंदाबाद के भी नारे लगाए गये, प्रदेश सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही।अलगाववादी नेता यासीन मालिक पत्नी ने तो बाकायदा वीडियो जारी कर कहा कि पाकिस्तान की जीत कश्मीर के बाशिंदों की जीत है । उनकी ख़ुशी हमारी ख़ुशी है,एक दिन हमारा कश्मीर आजाद होगा। अब आप ही बताइये ऐसे लोगों क

अभिव्यक्ति की आजादी, देश के लिए बन रहा नासूर !

@नीरज सिंह सभी धर्मों को बराबरी का दर्जा देने के साथ ही भारतीयों को हमारे संविधान में मूल अधिकार की चर्चा की गई है । संविधान के तीसरे पार्ट के अनुच्छेद 12 से 35 तक मानव को मूल अधिकार दिए गए हैं। जिसमें जीने का अधिकार, संविदा अधिकार,धर्म,भाषा आदि अधिकार मिले हैं। इन्हीं में अनुच्छेद19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत की जनता को मिली है।कोई भी अपनी बात कहने का अधिकार संविधान ने इसके तहत भारतीयों को दे रखा है।लेकिन अब इस स्वतंत्रता को दुरुपयोग कुछ अधिक ही हो गया है। अब तो लोग अनाप शनाप बातें कर रहे हैं।इससे देश की अस्मित्ता पर भी ऊँगली उठती हैं। जिसका फायदा देशद्रोही मानसिकता वाले ही उठा रहे हैं। जवाहर विश्विद्यालय में जिस प्रकार कैम्पस में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाया जाना, देश को शर्मसार करने का प्रयास किया गया है।कश्मीर में बैठे नुमाइंदे भी अभिव्यक्ति की आजादी के आड़ में देश विरोधी जहर उलगा जा रहा है। चंद राजनीतिक लाभ के लिये जाने माने देश के कर्णधारों की जबान जानबूझकर फिसलने लगती है या अनजाने में! इन बयानों से पाकिस्तान व आतंकियों दोनों को बल मिलता है और देश विरोधी गतिविधियों मे

सेना को गाली देना भी एक सेक्युलरिज्म !

सेना को गाली देना भी एक सेक्युलरिज्म ! विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत आज किस दिशा में अग्रसर हो रहा है ये कहना मुश्किल लग रहा है। एक बात तो सच है कि भारत विश्व में अपनी साख की धमक बनाने में कामयाब हुआ है। लेकिन हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं की सोच को क्या हो जा रहा है । ये समझ से परे लग रहा है। विगत कुछ समय से देश की सुरक्षा में लगी भारतीय सेना भी इन सेक्युलर नेताओं के निशाने पर आ गई है सेना की दुश्मनों के खिलाफ हर कार्यवाही का प्रमाण माँगा जा रहा है। कश्मीर में इनकी हर कार्यवाही में मुस्लिमों के विरुद्ध बदले की भावना वाली कार्यवाही लग रही है। इन्हें पत्थरबाजों के लिए प्रेम उमड़ता है,और सेना पर फेंके जा रहे पत्थर दिखते नही हैं। ये कैसी नेतागीरी है। अलगाववादियों से बात करने के लिए सरकार दबाव डालते है, जोकि पाकिस्तान व खाड़ी देशों से मिल रही फंडिंग से कश्मीर में युवाओं को उपद्रव के लिए उसकाने का काम करते हैं। सवाल उठता है कि तथाकथित सेक्युलरिज्म भारत की अखण्डता पर कुठाराघात करने की छूट क्यों दी जा रही है। कहीं सेना पर सवाल, तो कहीं सेनाप्रमुख पर सवाल उठा देना कहाँ की धर्मनिरपेक्

पर्यावरण दिवस पर विशेष****

आज एक बार फिर हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, कभी सोचा है कि पर्यावरण के लिए क्या कर रहे हैं , क्यों मना रहे हैं,क्या करना चाहिए और इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है। बहुत सारे सवाल उठते हैं। आइए हम इस पर चर्चा करते हैं । पर्यावरण से जीवन की भी डोर जुडी हुई है,पर्यावरण जीवों के आवरण के रूप में होता है ।जोकि जीवों को सुरक्षा देने का कार्य करता है,इसमें वनों की महती भूमिका रहती है। एक रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर 9.1% बन हैं, जबकि भूमि में लगभग 22%है जो अब 19 % के आसपास आ गई है।भारत में भी 2.79 लाख हेक्टेयर वन विकास की आहुति में चढ़ गया । जब की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार करीब 33%वैन क्षेत्र होना आवश्यक है ,जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहना आवश्यक है। जबकि भारत में 23%ही वनभूमि बची है जोकि चिंता का विषय है। पृथ्वी पर हो रहे असुंतलन से सबसे बडा खतरा मानव जाती के लिए ही है।दिनोदिन भूजल स्तर गिरता जा रहा है। वन विकास भेंट चढ़ रहा है। सबसे खराब हालात शहरों की है । जहाँ हरियाली के नाम पर कुछ रह ही नही जा रहा है,ग्रामीणों की हालत तब भी बेहतर है। गंदे नालों से बहने वाले पानी नदियों को प्रदूषि

इसी का नाम जिंदगी

इसी का नाम जिंदगी😊 जिंदगी का मतलब संघर्ष से नाता जोड़ना। जिंदगी इसके बिना सूना लगता है । सफलता हो या फिर असफलता हर तरफ संघर्ष ही संघर्ष है। नौकरी करो स्टॉफ व बॉस से जूझना पड़ता है। पब्लिक सर्विसेज में भी यही हालात हैं। बिजनेस की बात तो अलग ही है, इसमें आगे बढ़ने के लिए कम्पटीशन होना ही है । समाज सेवा, राजनीति या पारिवारिक परिवेश हो हर तरफ सिर्फ मिलेगा तो प्रतिस्पर्धा । दो जून की रोटी के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि ये प्राकृतिक स्वभाव है , ये सिर्फ मानव जाति के लिए ही नही सभी जीवों के लिए लागू है । सभी को जीना है इस पृथ्वी लोक में तो संघर्ष करना ही होगा। तभी तो विद्वानो का कहना है कि जीवन एक संघर्ष है। इसलिए मेरा मानना है संघर्षों से भागने की जरूरत नही है।मैथिली जी वो पंक्ति भलीभांति याद रखने की जरूरत है नर हो न निराश करो मन को ,कुछ काम करो कुछ काम करो, जग में रह कर नाम करो।

देशभक्ति पर भारी होगा धनबल या फिर !

देशभक्ति पर भारी होगा धनबल या फिर ! नीरज सिंह 2017-06-02 आजकल देश भर में एक सवाल सोशल मीडिया से लेकर आम जनता में उछल कर आ रहा है कि चैम्पियन ट्रॉफी में भारत की क्रिकेट टीम पाकिस्तान के साथ मैच खेले या फिर न खेले, इसे लेकर संशय की स्थित बानी हुई है ! वहीं इसे लेकर भारत सरकार की भी नीति नही स्पष्ट हो रही है। कोई बी सी सी आई को जिम्मेदार बता रहा है तो कोई भारत की नीति को जिम्मेदार ठहरा रहा है। भारत के खेल मंत्री विजय गोयल का कहना है कि मैच नही होना चाहिए क्योंकि इस समय दोनों देश के बीच में तनाव की स्थित बानी हुई है। बयानबाजी खूब हो रही है , लेकिन कोई सकारात्मक कदम भारत सरकार की ओर से उठता नही दिख रहा है। वहीं देश में फौजियों की शहादत को लेकर वैसे ही आक्रोश भरा हुआ है, इसी बीच इस होने वाले मैच को लेकर जले पर नमक छिड़कने जैसी स्थिति पैदा हो गई है। शहीदों के परिवारों से लेकर एक बड़े वर्ग में काफी गुस्सा देखने को मिल रहा है। इस प्रकरण में एक बात अवश्य उभर कर सामने आई है कि धन बल के सामने सरकार भी झुकने में देर नही लगाती। विश्व सबसे धनवान भारतीय क्रिकेट बोर्ड जिसके पैसों से आईसीसी भी न