@नीरज सिंह
सभी धर्मों को बराबरी का दर्जा देने के साथ ही भारतीयों को हमारे संविधान में मूल अधिकार की चर्चा की गई है । संविधान के तीसरे पार्ट के अनुच्छेद 12 से 35 तक मानव को मूल अधिकार दिए गए हैं। जिसमें जीने का अधिकार, संविदा अधिकार,धर्म,भाषा आदि अधिकार मिले हैं। इन्हीं में अनुच्छेद19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत की जनता को मिली है।कोई भी अपनी बात कहने का अधिकार संविधान ने इसके तहत भारतीयों को दे रखा है।लेकिन अब इस स्वतंत्रता को दुरुपयोग कुछ अधिक ही हो गया है। अब तो लोग अनाप शनाप बातें कर रहे हैं।इससे देश की अस्मित्ता पर भी ऊँगली उठती हैं। जिसका फायदा देशद्रोही मानसिकता वाले ही उठा रहे हैं। जवाहर विश्विद्यालय में जिस प्रकार कैम्पस में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाया जाना, देश को शर्मसार करने का प्रयास किया गया है।कश्मीर में बैठे नुमाइंदे भी अभिव्यक्ति की आजादी के आड़ में देश विरोधी जहर उलगा जा रहा है। चंद राजनीतिक लाभ के लिये जाने माने देश के कर्णधारों की जबान जानबूझकर फिसलने लगती है या अनजाने में! इन बयानों से पाकिस्तान व आतंकियों दोनों को बल मिलता है और देश विरोधी गतिविधियों में सक्रियता बढ़ने लगती है।इतना ही नहीं पाकिस्तान के विश्व में कश्मीर को लेकर चल रहे झूठे प्रपंच को बढ़ावा व पुष्टि होने संकेत मिलते हैं, जोकि देशहित में नही होता है। अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश में भी देशहित के अतिरिक्त कोई भी बयान बर्दाश्त नही करता है,तो हम क्यों मौलिक अधिकार के नाम पर देश के दुश्मनों के पक्ष में बयानबाजी बर्दाश्त कर रहे हैं।बुरहान वानी, अफजल गुरु,आतंकियों व नक्सलियों के पक्ष में कसीदे पढ़ते हैं,वहीं पत्थरबाजों की भीड़ से अपने सैनिकों को बिना रक्तपात के निकालने मेजर नितिन गोगोई इन आलोचकों के लिए दोषी बन गया। हद हो गई है ऐसे राष्ट्र विरोधी बयानबाजी से , अगर समय रहते सरकारें इन पर लगाम नही लगाती हैं,और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की दुहाई देती रही तो देश के हालात बेकाबू होना तय है। देश धीरे धीरे कमजोर होता चला जायेगा। ऐसे बयानबाजों पर नकेल कसते हुए इन पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा दर्ज कर जेल की सलाखों के पीछे रखने का कार्य हो। इनके चिंतकों की चिंतनशीलता को रोकने की जरूरत हैं ,क्योंकि इनके चिंतन में अमृत नहीं, जहर रूपी आतंकवाद का विष निकलता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब ये नही कि आप किसी को भी गाली देने लगे, राष्ट्र की विचारधारा से ऊपर हो जाए। अगर ये अभिव्यक्ति की आजादी है , तो देश की अखण्डता ,शान्ति भगवान भरोसे ही होगी।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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