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दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चाहे करो जितने जतन , हम नही हैं मिटने वाले.....!

मैं भ्रष्टाचार हूँ , फिर भी शक्तिशाली हूँ,व्यापक हूँ, नस नस में समाया हूँ कहते हैं मुझको सिस्टम। मुझे मिटाने वाले ही खुद तो मिट गए ,लेकिन मुझे नही मिटा सके। ईमानदारी से मेरा मुकाबला रहता है। मेरे बिना हर काम अधूरा रहता है। लोकतांत्रिक देश में एक विशाल वट वृक्ष की तरह होती हैं,जिसकी जड़ें बहुत ही गहरी होती है। जिसका जीता जागता उदाहरण 2G स्पेक्ट्रम मामले देखा जा रहा है। इस घोटाले के चलते आई टी क्षेत्र के हजारों  कर्मचारियों को सर्विस से हाथ धोना पड़ा। अधिकारियों को जेल तक की हवा खानी पड़ी। और दोषी बिना सबूत रिहा हो रहे हैं। इस मामले पर निर्णय  सीबीआई अदालत के जज का कहना है कि सुबह से शाम तक सबूत का इंतजार करता रहता था लेकिन सीबीआई ने दोषियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नही दे पायी । और सबूतों के अभाव में बरी करना पड़ा। जज का ये बयान सीबीआई के कार्यशैली को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहा है। विगत सात वर्षों से चल रही सुनवाई के दौरान जब आपको सबूत नही मिला तो किस विना पर केस दायर किया और सुप्रीम कोर्ट ने लाइसेंस रद्द किया गया। भारत में दूरसंचार क्षेत्र में निवेश करने वाली टेलीकॉम कम्पनियों को

मोदी मैजिक के आगे बेबस दिखी कांग्रेस

दो राज्यों के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। जिसमें बीजेपी ने अपने गढ़ गुजरात को न केवल बचाया बल्कि हिमाचल प्रदेश को कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही है। इस तरह विगत साढ़े तीन वर्ष में बीजेपी की केंद्र की सरकार सहित 19 राज्यों में सरकार बना लिया है। अब हम सबसे अहम् चुनाव की बात करें जिसे भारतीय राजनीति में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी राज्य से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी आते हैं। इतना ही इसी राज्य के गुजरात मॉडल के चलते बीजेपी की सरकार केंद्र भी बनी थी।  हाल के गुजरात विधानसभा के चुनाव में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सहित सभी बीजेपी के विरोधियों गुजरात मॉडल को लेकर ही हमला बोला है। और गुजरात में  22 वर्षों से चल रही बीजेपी सरकार को घेरने का मन बनाया । इसमें कांग्रेस व अन्य काफी सफल भी रहे। अब मोदी के गुजरात मॉडल को कसौटी पर कसा जाने लगा। राहुल गांधी भी गुजरात में डेरा डाल दिया और गांवों की खाक छानना शुरू कर दिया। इसी भी पाटीदार आंदोलन की अगुवाई कर रहे हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश, व अल्पेश ठाकोर,जैसे युवा नेताओं का भी साथ मिला। इतना ही नही व्यवसाइयों में gst को लेकर

चुनावों को प्रभावित करते अमर्यादित भाषा चुनावी सफलता के हैं कारक....!

 भारतीय राजनीति में चुनाव के समय पर जनता से सरोकार वाले मुद्दे गौड़ हो जाते हैं।  चाहे यूपी का चुनाव हो,लोकसभा का चुनाव या फिर अब गुजरात में चल रहे चुनावी में भी यही हो रहा है। गुजरात विकास का मॉडल लोकसभा में प्रमुख मुद्दा रहा था। गुजरात चुनाव के शुरुआत के दौर पर कांग्रेस ने जनता की जरूरतों व विकास को लेकर बीजेपी पर हमलावर हुई। लेकिन जैसे जैसे चुनावी सरगर्मी आगे बढ़ी , वैसे वैसे जनता के मूलभूत मुद्दे गायब होने लगे। सियासत जातियों को और बढ़ने लगी । दलित,पाटीदार जातियों की आरक्षण राजनीति हावी होने लगी। उधर मोदी, राहुल के द्वारा मंदिरों पर इनकी  परिक्रमा ने सुर्खियां बटोरने लगी। जाति से धर्म की ओर मुड़ने लगी।  फिर क्या था सियासत ने मुगल काल का भी दौरा किया जहाँगीर ,शाहजहाँ व औरंगजेब की भी आमद हुई। लेकिन ये सफर अभी नही थमा। ये सियासी सफ़र गुजरात के मान सम्मान से जुड़ा । इसके कारक रहे 2014 विवादित बोल के महारथी मणिशंकर अय्यर ने एक बार फिर मोदी को चाय वाला के बाद नीच कह कर गुजरात चुनाव में हलचल मचा दी। और बीजेपी व पीएम मोदी ने इस विवादित बोल को लपकने में देर नही लगाई। और इसे गुजरात की अस्मिता से

सबसे बड़ा हिंदूवादी कौन,कांग्रेस या भाजपा! फिर सेक्युलर कौन?

आज की राजनीति में कौन असली है ,कौन नकली पहचान करना मुश्किल हो रहा है। गुजरात चुनाव की बात करें  यहाँ दोनों राष्ट्रीय दल एक दूसरे से बड़ा हिन्दुवत्त्ववादी  दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। और एक दूसरे पर साम्प्रदायिक राजनीति करने आरोप लगाया जा रहा है। अब हम यहीं से अपनी बात शुरू करते हैं की कौन दल कितना सेक्युलर है ,साम्प्रदायिक  है या फिर दोनों पाक साफ़ हैं । बीजेपी का जन्म ही धार्मिक पृष्ठभूमि से हुई है। इसके विस्तार में भी धार्मिक आंदोलन की अहम भूमिका रही है। जब देश में मण्डल की राजनीति हावी थी ,ठीक उसी समय मण्डल को काटने का कार्य कमण्डल ने किया । 1984 में 02 सीटों वाली बीजेपी कमण्डल के बल पर 1989 में नौंवी लोकसभा में 85 सांसद सदन में पहुंचने में कामयाब हुए। वर्तमान में 285 सांसदों के साथ पूर्ण बहुमत से सत्ता पर काबिज है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी जो देश पर 60 वर्ष से राज किया आज सत्ता से दूर हो गई है। जरा कांग्रेस की भी बात करते हैं जो बीजेपी को हिंदूवादी व साम्प्रदायिक बताने वाली पार्टी सोमनाथ मंदिर का संसद में बिल पास कर पुनर्निर्माण कराया तो वहीं बाबरी विवादित ढांचा पर 1949 म

अमेठी को कांग्रेस का दुर्ग कहना कितना मुनासिब !

देश की राजनीति की सुर्खियों में अमेठी एक बार फिर आ गई है। कांग्रेस का गढ कहे जाने वाली अमेठी में नगर निकाय चुनावमे जो किरकिरी कांग्रेस की हुई काफी सोचनीय है। 2009 के बाद जिस तरह कांग्रेस के इस दुर्ग में दिनों दिन हालात पार्टी के हाथ से फिसलते जा रहे हैं अब अमेठी को कांग्रेस का दुर्ग कहना बेमानी है ! नगर निकाय के परिणाम से राहुल की अमेठी एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है। देश की राजनीति में अमेठी-अमेठी की गूंज चंहुओर सुनाई पडने लगी है। होना भी लाजिमी है क्योंकि राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र अमेठी जहां से गांधी परिवार का नाता काफी पुराना है। इस क्षेत्र में नगर निकाय के आये  हुए परिणामों की धमक पूरे देश में सुनने को मिल रही है। इस संसदीय क्षेत्र की सभी छः सीटों में से चार पर भाजपा ने अपनी पताका फहराने में कामयाब रही है। एक सीट पर सपा व एक पर निर्दल ने बाजी मारी है। कांग्रेस को अपने गढ में ही करारी हार का सामना पडा है।  गुजरात चुनाव में अमेठी के विकास के मुद्दे पर राहुल को अक्सर ही ही भाजपा घेरती रही है। लेकिन नगर निकाय के परिणामों ने भाजपा को राहुल पर निशाना साधने का मौका दे दिया है। म