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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कासगंज की घटना देश के लिए अच्छा संकेत नहीं!

‌देश में जब हम 69वां गणतंत्र धूमधाम से समूचे भारत में मनाया जा रहा था कि ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश के कासगंज में एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया । जब देश में जिस दिन से कानून का राज्य कायम हुआ यानी संविधान लागू हुआ था। ठीक इसी दिन यानी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर कुछ युवाओं ने तिरंगे को लेकर कासगंज में एक यात्रा निकाली । इस तिरंगा यात्रा में जोश से वन्देमातरम् ,जय हिन्द,भारत माता के नारे लगाते शहर की गलियों में घूम रहे थे । उन्हें क्या पता था कि देश के दुश्मन भी इन्ही गलियों में रहते हैं। जैसे ही वे सभी तिरंगा यात्रा लेकर एक विशेष समुदाय के मुहल्ले के पास से गुजर रहे थे कि उन पर ईंट-पत्थरों से हमला बोल दिया ,जब इससे जी नही भरा तो फायरिंग भी शुरू कर दी जिसमें एक युवा अभिषेक गुप्ता उर्फ चन्दन की गोली लगने से मौत हो गई। वहीं दूसरे घायल युवक रोहित की इलाज के दौरान मौत हो गई। गणतंत्र दिवस मनाते हुए इनकी मौत शहीद से कमतर कतई नही है। इस घटना ने प्रदेश ही नही पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।  इस घटना से कई अहम् सवाल उठ रहे हैं। एक लोकतांत्रिक देश में  देश भावना को द

अपने ही क्षेत्र में विरोध का सामना कर रहे राहुल गांधी

देश की सियासत में अमेठी का मुकाम अहम है। हो भी क्यों न क्योंकि इसका रिश्ता देश के सबसे बडे राजनीतिक घराने गांधी परिवार से जुडा हुआ है। इस राजनीति की विरासत को वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सम्भाल रहे हैं। लेकिन मंगलवार को राहुल गांधी के अमेठी दो दिवसीय दौरे की समाप्ति के बाद राजनीतिक विश्लेषकों को इस तरफ सोचने को मजबूर हो चला है।इस बार का दौरा काफी हंगामें पूर्ण रहा। गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट पर इस प्रकार भारी विरोध का सामना करना कहीं न कहीं सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। गौरतलब है कि सत्तर के दशक में अमेठी से गांधी परिवार के पहले सदस्य के रूप में संसदीय सीट पर संजय गांधी ने चुनाव लडा था , लेकिन 77 की जनता लहर में जनसंघ के प्रत्याशी से चुनाव हार गये। 1980 में पुनः चुनाव लडा और भी गये। उनकी आसमयिक मौत के बाद राजीव गांधी यहां लगातार चार चुनाव जीते लेकिन 1991 के चुनाव दौरान ही उनकी हत्या हो गई और उनकी चरण पादुका लेकर आये उनके सखा कैप्टन सतीश शर्मा को भी हाथों हाथ लिया लेकिन अगले चुनाव में भाजपा के डा0 संजय सिंह से हार गये। अगले चुनाव में श्रीमती सोनिया गांधी क

विश्वास-अविश्वास के भँवर में फंसी केजरीवाल-कुमार की आप !

  राजनीति में भी शतरंज की तर्ज पर बिसात बिछती है,और शह-मात शुरू हो जाता है। इस समय ये खेल आम आदमी पार्टी में पूरे शबाब पर है। इसके शीर्ष नेताओं में एक दूसरे को मात देने में जुटे हुए है। आज स्थिति ये है कि आप का विश्वास अब अविश्वास में बदल चुका है, ये मैं नही कह रहा हूँ। ये तो आप के नेताओं के विचार हैं। आप के संस्थापकों में से एक डॉ0 कुमार विश्वास पर पार्टी के एक वर्ग  का मानना कि वे एक डेढ़ साल से वो पार्टी लाइन से हटे हुए हैं। और पार्टी संयोजक अरविन्द केजरीवाल पर हमलावर रहे। उधर कुमार विश्वास व उनके समर्थकों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल ने कुमार के साथ विश्वासघात किया है, इतना ही नही अपना पार्टी में वर्चस्व बनाने के लिए आप के संस्थापक सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं, इसी कड़ी का एक हिस्सा कुमार विश्वास भी हैं। जो भी हो आप की आपसी लड़ाई एक और टूट की ओर बढ़ रही है। प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, किरण बेदी,कपिल मिश्रा जैसे नेताओं की बगावत ने पार्टी की नीतियों और पार्टी संयोजक की कार्यशैली पर अवश्य प्रश्नचिन्ह लगा है। अब बात करते हैं डॉ0 कुमार विश्वास की जिन पर पार्टी लाइन से हट

नववर्ष की शुभकामनाएं

मेरी तरफ नवर्ष 2018 की सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं, 💐  आपका नववर्ष मंगलमय हो💐