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अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कौवा पंचायत बन के रह गयी है हमारे देश की स्ंसद

स्ंसद की कार्यवाही शायद सांसदों के लिए राजनीति का अखाडा मात्र रह गया है। उसकी अहमियत क्या है, देश की प्रगति विकास के लिए कितनी अहम है, जनता के नजर में क्या मायने रखती है! इन सवालों का जबाब देने की आवश्यकता नही है। जनप्रतिनिधियों को इससे कोई लेना देना नही रह गया है। हां रह गया ये जरूर है कि देश हित के कार्य न होकर व्यक्तिगत अरोपों प्रत्यारोपों का केन्द्र बन रह गया है विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र का संसद भवन। सैकडों साल के राजनीतिक अनुभव वाली कांग्रेस हो या जनसंघ वाली भाजपा या फिर समाजवादी और वामपंथी विचाराधारा वाले दल सभी अपने गौरवमयी इतिहास को भुलाकर सिर्फ कौवा पंचायत बन के रह गयी है हमारे देश का सबसे बडा अंग जहां से देश की दिशा व दशा तय होती है। देश में स्वास्थ्य,शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, सुरक्षा, रोजगार जैसे ज्वलंत मुद्दों को छोड हमारे सांसद एक दूसरे को नीचा दिखाने का कार्य किया जा रहा है। आखिर जनता पूंछती है क्या हम इसी लिए अपना अमूल्य वोट देकर भेजा है कि सुषमा स्वराज क्यों ललित मोदी की मदद की जैसे बिना सिर पैर के मुद्दों पर बहस हो कि हमारी समस्याओं के निराकरण के लिए चुना है, ये अहम सवाल

सिस्टम में नासूर बन चुका है भ्रष्टाचार

सिस्टम में नासूर बन चुका है भ्रष्टाचार दोस्तों ---- आयुक्त कार्यालय गया था एक कार्य के सिलसिले में वहां पहुंच कर पता किया कि इस कार्य से संबंधित बाबू जी कौन है।जिससे पूछा उस बाबू ने सामने पड़ी कुर्सी पर बैठे सज्जन की ओर संकेत करते हुए कहा कि वह ही है। मैं उनके पास गया तो पूछा कि क्या काम है;मैंनेअपना कार्य बताया तो बड़ी शालीनता का परिचय देते हुए कहा कि आपके सारे कागजात अभी नहीं आये हैं।उसे लेकर आएंगे तभी काम संभव है। मैंने उसी समय जिले के बाबू से पूछा कि आपने कहा था कि कागजात भेजे हैं लेकिन यहां तो नहीं है। तब बाबू ने जो जबाब दिया मैं सन्न रह गया ।जरा जबाब सुनिये ---भाई ऐसे काम नहीं होता है कुछ ले देकर बाबू को सेट करो नहीं तो घूमते रहोगे। ये हालत है हमारे सिस्टम की। मैं पत्रकार हूँ मैं समझता था कि कोई भ्रष्टाचारी ये बातें नहीं करने की हिम्मत नहीं करेगा। लेकिन आज ये दम्भ भी टूट गया। आखिर इस भोली भाली जनता कैसे इन भेडियों के रूप में बैठे भ्रष्टाचारियों को झेलते होंगे। कार्यपालिका के पूरे सिस्टम में वायरस की तरह फैल चुका है। और खुले आम जनता को जोंक की तरह चूस रहे हैं। नीचे से लेकर ऊपर

लोकतांत्रिक विचारधारा का हास !

लोकतांत्रिक विचारधारा का हास ! स्ंासद की कार्यवाही शायद सांसदों के लिए राजनीति का अखाडा मात्र रह गया है। उसकी अहमियत क्या है, देश की प्रगति विकास के लिए कितनी अहम है, जनता के नजर में क्या मायने रखती है! इन सवालों का जबाब देने की आवश्यकता नही है। जनप्रतिनिधियों को इससे कोई लेना देना नही रह गया है। हां रह गया ये जरूर है कि देश हित के कार्य न होकर व्यक्तिगत अरोपों प्रत्यारोपों का केन्द्र बन रह गया है विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र का संसद भवन। सैकडों साल के राजनीतिक अनुभव वाली कांग्रेस हो या जनसंघ वाली भाजपा या फिर समाजवादी और वामपंथी विचाराधारा वाले दल सभी अपने गौरवमयी इतिहास को भुलाकर सिर्फ कौवा पंचायत बन के रह गयी है हमारे देश का सबसे बडा अंग जहां से देश की दिशा व दशा तय होती है। देश में स्वास्थ्य,शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, सुरक्षा, रोजगार जैसे ज्वलंत मुद्दों को छोड हमारे सांसद एक दूसरे को नीचा दिखाने का कार्य किया जा रहा है। आखिर जनता पूंछती है क्या हम इसी लिए अपना अमूल्य वोट देकर भेजा है कि सुषमा स्वराज क्यों ललित मोदी की मदद की जैसे बिना सिर पैर के मुद्दों पर बहस हो कि हमारी समस्याओं के