सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये सन्नाटा क्यूँ है भाई............

आप सभी इस डायलॉग से परचित अवश्य होंगे क्यों की ये डायलॉग मशहूर फ़िल्म शोले का है। ये आज की राजनीतिक माहौल में सटीक बैठ रहा है। ममता दीदी के आज दिये बयान ने धर्मनिरपेक्ष का ढोंग रचने वाले नेताओं में इस विवादित बयान ने सन्नाटा  फैला दिया है । सब इसे लेकर गूँगे बन गए हैं। ममता ने दुर्गा पूजा व मोहर्रम के एक साथ पड़ने पर लाइन ऑडर की दुहाई देकर एक दिन यानी 01 अक्टूबर के दिन मूर्ति विसर्जन पर पूरे बंगाल में रोक लगा दी है। कोई सेक्युलर नेता ममता सरकार के घटिया निर्णय का विरोध करने हिमाकत  कर नही पा रहा है। क्योंकि कही विशेष समुदाय नाराज न हो जाये। इतना ही नही ममता के धुर विरोधी वामपंथी भी विरोध के बजाय हाँ में हाँ मिलाते tv चैनलों के डिवेट में दिख जायेंगे क्योंकि मामला अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा है।  ममता दीदी के इस राजनीति को देख यही लगता है कि उनकी सरकार सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए ही बनी है। बाकी बंगाली जनता के लिए उनकी सरकार में कोई जगह नही है। माँ,मानुष व माटी का नारा शायद ममता सरकार भूल चुकी हैं।  जिस प्रकार एक विशेष धर्म की भावनाओं के लिए बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं हहत किया जा रहा है।

धर्म व गुरु प्रथा को बदनाम करने एक और कोशिश.....!

हद हो गई इन धर्म के ठेकेदारों से जो कुकर्मो में ही विश्वास करते हैं । इतना ही नही अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किस स्तर गिर जाते हैं इसका सबसे बड़ा नमूना आशाराम बापू व राम रहीम हैं। जो अपने समर्थकों को अपने सम्मोहन से मोहित कर विशाल अनुआइयों की सेना मिल जाती और उसके बल प्ईर अनाप शनाप कार्य करते हैं। जब फंसते हैं तो इन्ही  को आगे कर देते हैं जैसा की आज पंचकूला में हुआ।  समर्थक भी गुमराह हो जाता है गुरु जो कभी सद मार्ग पर चल कर अपनों का अच्छा कार्य किये जाने की बातें बताकर आगे जाने का मार्ग बताया करते थे अब ये सभी बातें कलयुग में बेनामी साबित हो गयी है आशा राम से लेकर कई बाबा आखिर हवस की आग में क्यों झुलस जाते है क्या कभी किसी ने इस तरफ सोचा है नहीं, क्यों ये बाबा भरोसे का खून कर अपना हित साध लेते है आशा राम को जब उनके आश्रम में एक लड़की के साथ बलात्कार किये जाने के जुर्म में उनके ही आश्रम से गिरफ्तार किया गया था तब भी हज़ारो आशा राम के समर्थको ने सड़को पर उतर कर यही साबित करने का काम किया था की उनकी नज़र में बाबा भगवन का रूप है। आशा राम से लेकर कई धार्मिक गुरु अपनी हवश की आग को शांत किये

राजनीति को परिभाषित करते आज के नेता, बदल रहे राजनीति के मायने

देश की राजनीतिक दशा व दिशा आजादी के बाद से परिवर्तित होते जा  रहे हैं। राजनीतिक भाषा अब दो अर्थी हो चली है। राजनीति का मतलब सेवा माना जाना अब दूर की कौड़ी साबित हो रही है। अब सिर्फ वोट की राजनीति बन कर रह गई है।हमारे कर्णधार सेवा शब्द का प्रयोग भाषणों में ही करते हैं। अगर सच में सेवा भाव होता तो शायद गोरखपुर में दर्जनों मासूमों की जान न जाती । दोष भले ही डाक्टरों व सिस्टम को दे रहे हैं, कहीं न कहीं आप भी हैं,हम भी हैं क्योंकि ये देश सेवा कम अपनी सेवा करने ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। राजनेताओं की क्रियाकलापों से राजनीति का मायने ही बदल दिया है। धर्मनिरपेक्ष देश में कुछ तथाकथित राजनीतिक पार्टियों के तथाकथित नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ कर हद ही कर दी है,संविधान की व्याख्या अपने ही नजरिए से करना शुरू कर दिया है। सम्वैधानिक नियमों की धज्जियां सरेआम उड़ाना उनकी शान में शामिल होता है। भ्रष्टाचार व अपराध की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं। गांधी,सुभाष, भगत,सरदार पटेल के आदर्शों को याद उनकी जयंती व पुण्य तिथि पर या फिर चुनावी भाषणों में आते हैं। ये जरूर है कि उनके नाम को जप कर जनता को आसानी

देश की संवैधानिक आजादी के कैसे बदले मायने ......*आजादी के 70 साल का सफरनामा*

    देश की संवैधानिक आजादी के कैसे बदले मायने ...... आजादी के 70 साल का सफरनामा  ‌देश की आजादी का 70साल हो गया है। इस दरमियान हमने बहुत सारे उतार चढ़ाव देखा है। चीन,पाकिस्तान,व कारगिल युद्ध देखा तो देश को परमाणु महाशक्ति बनते भी देखा। विकास की नई ऊंचाइयों की तरफ देश बढ़ा तो एवरेस्ट पर फतेह व अंतरिक्ष में कदम भी भारतीयों के रखते देखा । नेहरू, पटेल,लाल बहादुर,इन्दिरा ,व अटल का दौर देखा है। भोपाल गैस त्रासदी, भुज का भूकंप, बद्रीनाथ का जल प्रलय को भी इस देश ने झेला है। अब देश में बाहरी व आंतरिक आतंकवाद को झेल रहा है। फिर भी हमारी आजादी अक्क्षुण अखण्ड व अटूट है। जब भी देश को इसकी जरूरत पड़ी सभी देशवासी सदैव तैयार  रहते हैं। इन सत्तर सालों एक बात जरूर बदलते देखने को मिल रहा है वो है संवैधानिक आजादी। जिसका मायने हो राजनीतिक दलों ने बदल कर रख दिया है। मौलिक अधिकारों का दुरुपयोग अगर इन 70 सालों इतना शायद कभी नही हुआ है। इन अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी की परिभाषा को कुछ समाज के ठेकेदारों ने ही बदल कर रख दिया। और उन्हें राजनीतिक दलों का वरदहस्त मिला हुआ है। जब भी इन पर नकेल कसने का प्

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष--------आजादी के सपूत बाबू गुरूप्रसाद सिंह

आज हम देश की आजादी के 70 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। जाने कितने राष्ट्र प्रेमियों ने अपनी जान न्यौछावर कर दिया । और बहुत सारे माँ के सपूत जीवन का बहुमूल्य समय देश को दिया तभी जाकर भारत माँ गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुई थी। उन्हीं में से एक सेनानी अमेठी के विकास खण्ड जामों की दतनपुर धरती पर जन्म लिया था।गौरीगंज विधान सभा जोकि आजादी के बाद गौरा जामों   के नाम थी उसके प्रथम विधायक बाबू गुरुप्रसाद जी थे।जिन्होंने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया। चाहे आजादी की लड़ाई में या आजादी के बाद स्वतन्त्रता सेनानियों के लिए हो , सारा जीवन ही देश सेवा के लिए अर्पित कर दिया था।   स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय   गुरु प्रसाद सिंह का जन्म 4 दिसंबर सन 19 २० को दतनपुर रिछौरा पोस्ट कटारी ब्लाक जामो में हुआ   था । 20 वर्ष की अवस्था में सन् 1940 में कांग्रेस में शामिल होकर भारत छोड़ो आंदोलन के सिलसिले में 15 अगस्त 1942 को पकड़े गए जिल

गिरधर गोपाल ,दूसरो न कोई....अनेक रूपों में हमारी भारतीय संस्कृति

 गिरधर गोपाल ,दूसरो न कोई........ मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥ उक्त बातें भारतीय संस्कृति में ही सम्भव हैं। प्रभु को माता,पिता,भाई,व पति सभी रूपों में वंदन व पूजन होता है । मीरा जैसी भक्ति कि प्रभु को ही पति मान कर सारा जीवन ही भक्ति में लीन कर दिया। ऐसे उदाहरण आदि सनातन हिन्दू धर्म  में मिलता है ,जिसका दूसरा उदाहरण पूरे विश्व में नही मिलता है। संस्कार समाज को सभ्य बनाती है। जितने अच्छे संस्कार होंगे ,उतनी अच्छी सभ्यता होगी। सभ्यता सुन्दर होती है। संस्कृति सभ्यता अन्तः करण में बहने वाली एक धारा है। धर्म व्यक्तिगत होता है। लेकिन संस्कृति सार्वजनिक है।  संस्कृति अच्छी होती है ,खराब भी होती है।बुरी संस्कृति अच्छी में कतई समाहित नही हो सकती है। प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, क्योंकि संस्कार से परिपूर्ण थे। पिता के आदेश पर 14 वर्ष वनवास गुजार दिया। तो कन्हैया ने अपने प्रेमलीला से सारे संसार का मन मोह लिया था और अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर मानव को जीवन जीने की सीख दी।हमारी संस्कृति और संस्कार का जोड़ जगत म

मुझे भी पढ़ना है...........!

‌आँखों में विश्वास लिए हुए दोनों हाथ जोड़े हुए इशारे से  कहता है कि मुझे भी पढ़ना है। उसकी आस लिए आँखे देख मेरा मन द्रवित हो गया । मेरे मन के सागर में उसकी निवेदन भरा चेहरा तैरने लगा। मैं भी उसे मुस्कुराते हुए हामी भरते हुए सिर हिलाया और अपनी कार आगे बढ़ा दिया। ये देखा कि मेरी स्वीकृत भर से उसका चेहरा आत्मविश्वास से दमकने लगा। आप भी सोच रहे होंगे कि ये किसकी बात कर  रहे हैं । सही सोच रहें हैं हम बात कह रहे हैं एक सामान्य लड़के की नही बल्कि एक मूक बघिर की बात कर रहूँ ,वो एक सच घटना है जोकि मेरे साथ घटित हुई, जब हम स्वयं संचालित कॉलेज जा रहा था। ये बच्चा हमारे यहाँ कक्षा 08 से पढ़ता था। इसकी कॉलेज में इंट्री भी एक इतेफाक ही था। ये बच्चा मुस्लिम धर्म से belong करता था। इसके father जब इसके छोटे भाई व बहनों  का प्रवेश दिलाने आये और जब सभी का प्रवेश करा चुके तो मुझसे कहा कि सर एक परेशानी और है ,तब हमने कहा कि बताइये उसका निदान हो सके। तब उन्होंने जो बताया कि हम विश्वास नही कर पाये की इतने पिछड़े इलाकों में ऐसा भी है जोकि शिक्षा के क्षेत्र में अतिपिछड़ा है। उन्होंने बताया कि मेरे एक बेटा है जिसका

त्योहारों में रचा बसा हुआ है भारतीय संस्कृति !

 आज रक्षाबंधन का त्योहार पूरे देश में मनाया जा रहा है। भाई -बहन के प्यार का प्रतीक  रक्षाबंधन हमारी संस्कृति को दर्शाता है कि हमारे समाज में रिश्तों के कितने मायने हैं। भारत देश विविधताओं से भरा है, विशाल सांस्कृतिक विरासत ने भी हमारी पहचान विश्व जगत में अलग ही स्थान दिया है। अपने अनूठे स्वरूप के हजारों वर्षों के बाद भारतीय संस्कृति आज भी धरोहर के रूप में विद्यामान है।         न जाने कितने आक्रांता भारत की संस्कृति को बदल नही पाये । भारत विविध रीतिरिवाजों व त्योहारों के लिए जाना जाता है। USA,UK,Rasia जैसे देश भले ही विश्व की महाशक्तियां हों, लेकिन अपनी संस्कृति को बचाने में कामयाब नही हो सके लेकिन भारत की संस्कृति आज भी पूर्ण विद्यमान है। इस देश में पत्नी पति के लिए कारवा चैथ का व्रत रखती हैं,माता बेटे के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती हैं तो वहीं बहनें अपने भाई के दीर्घायु के लिए राखी बांधती हैं वहीं भाई बहन की रक्षा के लिए संकल्प लेता है।          इस त्योहार को हम रक्षाबंधन कहते हैं।इसी तरह भैया दूज में भी बहनें भाईयों के हाथों में राखी बांधती हैं।आज रक्षाबंधन है तो आज इस

कसौटी पर भारतीय विदेश नीति!

देश में मोदी की केंद्र सरकार पर विदेश नीति को लेकर हाल विपक्ष ने खूब हमले किये और जनता में भी पड़ोसी देशों के साथ संबन्धों को लेकर काफी असहज महसूस कर रहा है। एक प्रकार से ये माना जाय कि मोदी सरकार की विदेश नीति कसौटी पर कसी जा रही है। देश की विपक्षी दलों के साथ साथ जनता भी जानना चाहती है कि आखिर क्या बात है कि अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध क्यों ख़राब हो रहे हैं!  इन सवालों के जबाब का देश की जनता को काफी समय से इंतजार है। मोदी का विदेशी दौरा फ्लॉप रहा है?इन दौरों से देश को क्या लाभ मिल रहा है? पाकिस्तान ,चीन से सीमा पर तनाव क्यों बना हुआ है!  भारत-पाक वार्ता होगी या फिर युद्ध ही एक मात्र चारा बचा हुआ है।कश्मीर के भी हालात बिगड़े हुए हैं? ये सवालों की बौछार से सरकार को दो चार होना पड़ रहा है। आज विदेश नीति को लेकर देश की संसद के राज्यसभा में चार घण्टे  से अधिक इसी मुद्दे पर बहस हुई। केंद्र सरकार की ओर से बहस का जबाब विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज ने दिया।  उन्होंने केंद्र की विदेश नीति को अच्छी व सफल बताते हुए कहा कि पाक से दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो नवाज शरीफ ने आतंकी बुराहान को शहीद बताकर सम्बन