गिरधर गोपाल ,दूसरो न कोई........
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
उक्त बातें भारतीय संस्कृति में ही सम्भव हैं। प्रभु को माता,पिता,भाई,व पति सभी रूपों में वंदन व पूजन होता है । मीरा जैसी भक्ति कि प्रभु को ही पति मान कर सारा जीवन ही भक्ति में लीन कर दिया। ऐसे उदाहरण आदि सनातन हिन्दू धर्म में मिलता है ,जिसका दूसरा उदाहरण पूरे विश्व में नही मिलता है। संस्कार समाज को सभ्य बनाती है। जितने अच्छे संस्कार होंगे ,उतनी अच्छी सभ्यता होगी। सभ्यता सुन्दर होती है। संस्कृति सभ्यता अन्तः करण में बहने वाली एक धारा है। धर्म व्यक्तिगत होता है। लेकिन संस्कृति सार्वजनिक है। संस्कृति अच्छी होती है ,खराब भी होती है।बुरी संस्कृति अच्छी में कतई समाहित नही हो सकती है। प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, क्योंकि संस्कार से परिपूर्ण थे। पिता के आदेश पर 14 वर्ष वनवास गुजार दिया। तो कन्हैया ने अपने प्रेमलीला से सारे संसार का मन मोह लिया था और अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर मानव को जीवन जीने की सीख दी।हमारी संस्कृति और संस्कार का जोड़ जगत में मिलना दुश्वार है। इस संस्कृति पर न जाने कितने आक्रान्ता ने इसे समाप्त करने के आक्रमण किया लेकिन इसे ख़त्म नही कर सके। इसी संस्कृति से मिस्र, चीन,कम्बोडिया,जापान आदि देश की संस्कृति व परम्परा प्रभावित हैं। हमारी संस्कृति ने जीवन में रिश्तों का मायने बताया है। ढाई अक्षर के शब्द से मानव को परिचित कराने कार्य किया है। प्रेम रूपी इस शब्द से दुनिया को जीत लेने की शक्ति से परिचय कराया। भारतीय संस्कृति में चार मूल्य होते हैं धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष, इन चारों को अपने जीवन में एक साथ नही कर सकते है। इन्हें अलग अलग समय में ही किया जाएगा। हमारी संस्कृति का तीज त्योहारों से झलक मिलती है ,ये सभी त्योहारों में दुःख दर्द नाम की चीज नही होती है ,जैसा कि अन्य धर्मों व सभ्यता की परम्पराओं में मिलते हैं। यहाँ सभी त्योहारों में हर्ष,उमंग,सदभाव् सहित संस्कारों से प्रेरित होता है,जोकि जीवन में नई सीख देने वाला होता है। होली रंगों से परिपूर्ण प्यार,उमंग भाईचारा का सन्देश है तो दीपावली जीवन में रौशनी लाने व आज जन्माष्टमी के दिन प्रभु श्री कृष्ण के जन्म पर याद करते हैं। जोकि पापियों का नाश करते हैं , तो कालिया नाग का मान मर्दन करते हैं। वहीं गोपियों संग रासलीला रचाते हैं। प्रेममयी प्रभु श्रीकृष्ण की लीलाओं से प्रभावित हो गोपियों व मीरा जैसी भक्ति उन्ही को अपना पति मान जीवन गुजार दिया। उन्होंने अपनी पत्नी रुक्मणी को वो दर्जा नही दिया जो कि अपनी प्रेमिका राधिका दिया। प्रेम को पहला स्थान दिया। उधर प्रभु ने बाल सखा विप्र सुदामा का पैर धुल कर मोक्ष का रास्ता दिखलाया। ये है हमारे संस्कार, जिससे प्रभावित होकर अनेकों देशों के लोग भारत में ही आकर बस गए और हमारी संस्कृति व संस्कार को अपना लिया है और कहते हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई..........
@NEERAJ SINGH
सभी पाठकों को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।
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