
देश की संवैधानिक आजादी के कैसे बदले मायने ......
आजादी के 70 साल का सफरनामा
देश की आजादी का 70साल हो गया है। इस दरमियान हमने बहुत सारे उतार चढ़ाव देखा है। चीन,पाकिस्तान,व कारगिल युद्ध देखा तो देश को परमाणु महाशक्ति बनते भी देखा। विकास की नई ऊंचाइयों की तरफ देश बढ़ा तो एवरेस्ट पर फतेह व अंतरिक्ष में कदम भी भारतीयों के रखते देखा । नेहरू, पटेल,लाल बहादुर,इन्दिरा ,व अटल का दौर देखा है। भोपाल गैस त्रासदी, भुज का भूकंप, बद्रीनाथ का जल प्रलय को भी इस देश ने झेला है। अब देश में बाहरी व आंतरिक आतंकवाद को झेल रहा है। फिर भी हमारी आजादी अक्क्षुण अखण्ड व अटूट है। जब भी देश को इसकी जरूरत पड़ी सभी देशवासी सदैव तैयार रहते हैं। इन सत्तर सालों एक बात जरूर बदलते देखने को मिल रहा है वो है संवैधानिक आजादी। जिसका मायने हो राजनीतिक दलों ने बदल कर रख दिया है। मौलिक अधिकारों का दुरुपयोग अगर इन 70 सालों इतना शायद कभी नही हुआ है। इन अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी की परिभाषा को कुछ समाज के ठेकेदारों ने ही बदल कर रख दिया। और उन्हें राजनीतिक दलों का वरदहस्त मिला हुआ है। जब भी इन पर नकेल कसने का प्रयास होता है तो ये अभिव्यक्ति की आजादी का कवच धारण कर धर्मनिरपेक्ष का चोला पहन कर अपना बचाव करना शुरू कर देते हैं। जिस देश के लिए हिन्दू,मुस्लिम सहित सभी धर्मों के तिरंगे की शान के लिए व आजादी की चाह में अपना जीवन बलिदान कर दिया ,अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया ,आज इसी तिरंगे को फहराने के लिए कोर्ट को सरकारों के लिए आदेश जारी करना पद रहा है , कितनी दुःखद बात है। जिस गीत की धुन पर शहीदों ने अंग्रेजों की बन्दूकों की गोलियों के सामने नही डरे , इसे गाते हुए अशफाक उल्ला, भगत सिंह, विस्मिल आदि आजादी के दीवाने फांसी पर चढ़ गए। आज उस वन्देमातरम् को गाने से इस्लाम खतरे में पड़ रहा है। भारत में रह कर भारत को ही गाली देना व दुश्मन देश व उसके आतंकियो की वाह वाही ही असली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानी जा रही है। कहते हैं आजादी जितनी पुरानी होगी उतनी ही मजबूत बनती जायेगी। लेकिन यहाँ तो कुछ और ही दिख रहा है। शिक्षा के बढ़ते स्तर के बावजूद हमारे नौजवानों को भटकाने का काम राष्ट्र विरोधी शक्तियां कर रही हैं। और कुछ तथाकथित राजनीतिक दलों के नेताओं की भूमिका चन्द वोटों की खातिर सत्ता की भूँख इन्हें संदिग्ध बनाती हैं। इनके बयानों की शैली से देश विरोधी ताकतों को बल देने का कार्य किया जा रहा है। विशेष रूप से इसका सबसे साइड इफेक्ट कश्मीर में हो रहा है। अनेक TV Chanalon पर सार्वजनिक रूप से देश के अंदर के गद्दार आतंकियों का पक्ष लेते हैं और टोकने पर अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देते हैं। जिन्होंने संवैधानिक आजादी जो संविधान में दी गई थी उन्हें भी मालूम नही था देश तथाकथित नेता ,समाज सुधारक व धर्म के ठेकेदार संवैधानिक मायने हो बदल देंगे।अब सवाल ये है कि एक बार फिर आजादी की वर्षगांठ मना रहे हैं, क्या हमने देश के इन भितरघातियों के बारे में सोचा की इनका क्या करें ! जो दीमक की तरह देश को खोखला करने का काम कर रहे हैं। आज 70 साल बीत जाने के बाद देश विकास की पथ की ओर अग्रसर है । लेकिन अशिक्षा , बेरोजगारी, गरीबी, जैसी समस्याओं से आज भी जनता जूझ रही है। हमें आवश्यकता है इन सबसे मुक्त कराने की जिससे देश समृद्धशाली बन सके। लेकिन ऐसा नही हो पा रहा है। राजनीति का विकृत रूप ने संबैधानिक व्यवस्था को ही बदल कर रख दिया है। भला हो न्यायपालिका का जिसने संवैधानिक व्यवस्था को बदलने वाले प्रयासों पर काफी हद तक अंकुश लगा रखा है,वर्ना राजनीतिक स्वार्थो के लिए ये नेता देश की अस्मिता को भी बेचने में गुरेज नही करते । देश की आंतरिक सुरक्षा का सबसे बड़ा खतरा आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनती जा रही है । लोग इसका दुरुपयोग कर देश के ही खिलाफ जहर उगलने लगे हैं। सरकार को इस पर विचार करने की जरूरत है,नही तो देश की युवाओं को अराजकता की ओर जाने से कोई नही रोक सकता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण कश्मीरी बच्चों के हाथों में पत्थर अलगाववादियों ने थमा दिया। वहाँ की मौजूद मस्जिदों में होने होने वाली तक्करीरों ने युवाओं के हाथों में बंदूके थमाने का कार्य किया है। अगर समय पर ध्यान सरकार देती तो शायद देश को इतनी बड़ी संख्या में सेना के जवानों को शहादत न देनी पड़ती । अभिव्यक्ति की आजादी पर आकलन कर इस पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस हो रही है। जिससे देश की एकता, अखण्डता ,सुरक्षा अक्षुण्य बनी रहे।
जय हिन्द ,जय भारत।
@NEERAJ SINGH
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