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जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पीएम मोदी की हत्या की साजिश खुलासे को लेकर राजनीति क्यों....!

पीएम मोदी की हत्या की साजिश में राजनीति क्यों ....! ‌देश की राजनीति की दिशा किस मोड़ पर पंहुच रही है, अनेक सवाल उठने लगे हैं। आज की राजनीतिक उठापटक लोकतांत्रिक ढांचे को कितना मजबूत या कमजोर करेगी इसका आकलन होना बाकी है। जिस देश में आतंक की बेदी पर दो-दो प्रधानमंत्रियों के जीवन का बलिदान हो गया हो , वहीं प्रधानमंत्री की नक्सलियों द्वारा हत्या की साजिश मामले में विपक्षियों ने दलित मुद्दा खोजना शुरू कर दिया है, कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। आतंकी हों या फिर नक्सली हों । ये सभी मानवीय दुश्मन ही हैं। अगर इनमें भी मुस्लिम या फिर दलित के नाम पर इनका बचाव किया जाय तो एक लोकतंत्र के लिए इससे शर्मनाक घटना और क्या हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का खुलासा हाल में हुई कोरेगांव के दंगे की  सुरक्षा एजेंसियों की जांच के दौरान हुई। इस घटना के तार तो नक्सलियों से जुड़े हैं।इस जांच के दायरे में कई जाने माने वामपंथी सोच के प्रोफेसर आये जो नक्सलियों के पक्षधर के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया और इनके घरों में सुरक्षा एजेंसी को अनेक दस्तावेज व चिट्ठियां

आरएसएस के कार्यक्रम में जाना अपराध है क्या...!

देश में एक ही मुद्दा छाया है कि  पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में नागपुर जा रहे हैं। उन्हें जाना नही चाहिए । ये बिल्कुल सही नही है। अनेक पार्टियों के प्रवक्ता बयानबाजी में मशगूल है। अब हम बात करते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ,जिसकी स्थापना डॉ0 बलिराम हेगड़ेवार द्वारा 27 सितम्बर 1925 में नागपुर, महाराष्ट्र में की गई। इस संगठन का ध्येय मातृभूमि की सेवा करना ,और राष्ट्र की रक्षा करना । ये एक हिन्दू वादी संगठन माना जाता है। इसके आब तक 09 सर संघचालक हुए हैं।वर्तमान में सरसंघ चालक मोहन भगवत् हैं।संघ का कहना है कि हमारा संगठन मातृभूमि की सेवा , निरीह,दबे कुचले गरीबों की सेवा के लिए तत्पर रहता है। इसका उदाहरण 1962 का भारत -चीन युद्ध रहा हो जिसमें घायलों की मदद किया या फिर गुजरात के कच्छ व भुज के भूकंप पीड़ितों की सहायता रही हो। ऐसे अनेक मौकों पर संघ के स्वयं सेवकों पर लोगों की मदद के लिए आगे आया है। आज देश 70हजार से अधिक आरएसएस की शाखाएं चल रही हैं। लेकिन ये संगठन विवादों में भी रहा है। इनके आलोचकों का मानना है कि ये संगठन कट्टर हिंदूवादी है,समाजसेवा का मात्र चोला पह

आमजन के ज़हन बसा बीजेपी का अहम , बना हार का कारक..!

देश में 10 विधानसभा व 04 लोकसभा उपचुनाव  में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि 2019 के आम चुनाव से पहले जनता का मोदी सरकार व बीजेपी को बदलाव का  संकेत तो नही हैं। एक बड़ा सवाल उभर कर सामने आ रहा कि कहीं  आमजन के जहन में ये तो नही बस गया है की  बीजेपी की लगातार राज्यों में हुई जीत से पार्टी व उनके नेताओं में  अहम तो नही आ गया है जोकि बीजेपी के हार का कारक बन गया हो । इस चुनाव को इसलिये भी महत्वपूर्ण माना जा रहा था कि अब लोकसभा आम चुनाव होने एक साल से भी कम रह गए हैं। भले ही बीजेपी नेता व उनके प्रवक्ता चिल्ला चिल्ला कर सफाई दे रहे हैं कि उपचुनाव से आम चुनाव अलग होते  हैं।आइए गौर करें तो 2014 में बीजेपी की सरकार प्रचण्ड बहुमत आई।दो वर्ष तो सब कुछ ठीक रहा । लेकिन 2016 से 37 उपचुनाव में से बीजेपी को 31 में हार का मुँह देखना पड़ा , एक सकून 2017 में रहा जब बीजेपी की यूपी में भारी बहुमत की सरकार योगी जी के नेतृत्व में बनी।लेकिन उसके बाद से बीजेपी के लिए कोई अच्छीखबर लेकर नही आयी है। लोकसभा गोरखपुर, फूलपुर, और अब कैराना साथ में नूरपुर विधानसभा में