पीएम मोदी की हत्या की साजिश में राजनीति क्यों ....!
देश की राजनीति की दिशा किस मोड़ पर पंहुच रही है, अनेक सवाल उठने लगे हैं। आज की राजनीतिक उठापटक लोकतांत्रिक ढांचे को कितना मजबूत या कमजोर करेगी इसका आकलन होना बाकी है। जिस देश में आतंक की बेदी पर दो-दो प्रधानमंत्रियों के जीवन का बलिदान हो गया हो , वहीं प्रधानमंत्री की नक्सलियों द्वारा हत्या की साजिश मामले में विपक्षियों ने दलित मुद्दा खोजना शुरू कर दिया है, कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। आतंकी हों या फिर नक्सली हों । ये सभी मानवीय दुश्मन ही हैं। अगर इनमें भी मुस्लिम या फिर दलित के नाम पर इनका बचाव किया जाय तो एक लोकतंत्र के लिए इससे शर्मनाक घटना और क्या हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का खुलासा हाल में हुई कोरेगांव के दंगे की सुरक्षा एजेंसियों की जांच के दौरान हुई। इस घटना के तार तो नक्सलियों से जुड़े हैं।इस जांच के दायरे में कई जाने माने वामपंथी सोच के प्रोफेसर आये जो नक्सलियों के पक्षधर के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया और इनके घरों में सुरक्षा एजेंसी को अनेक दस्तावेज व चिट्ठियां मिली, जिससे ये पता चला कि रोड शो के दौरान पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के तर्ज पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रची जा रही है। इस चिट्ठी का मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हुआ। बस यही चिट्ठी देश की राजनीति में लेटर बम साबित हुआ। फिर क्या था बयानों के धमाके पर धमाके शुरू हो गए।इन धमाकों से हमारे देश की लोकतांत्रिक ढांचा कितना क्षतिग्रस्त हो रहा है, इसका किसी जिम्मेदार राजनैतिक दल से कोई मतलब नही है। सिर्फ अपनी वोट राजनीति साधने में व्यस्त हैं। कांग्रेस के प्रवक्ताओं का कहना है कि कोरेगांव में दलित मारे गए ,इससे ध्यान भटकाने के लिए इस तरह का प्रोपोगंडा फैलाया जा रहा है। 2009 से अब तक प्रधानमंत्री मोदी को 11बार मारने की साजिश हुई तो इनकी जांच कहाँ तक पहुंची बताया जाय! तो लेफ्ट का कहना ये तो एक नाटक है। न जाने कितने बयान तरह तरह के पूंछे जा रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठ रहा कि प्रधानमंत्री क्या किसी एक दल का होता है? जब इतने सम्वेदनशील मामले को हल्के में लिया जा रहा है। नक्सलियों को दलित आंदोलन का स्वरूप देना कितना उचित है! जाँच एजेंसियों की कार्यवाही पर सवाल उठाना क्या सही है! कदापि नही । राजनीति का इतना स्तर गिरेगा सोचा नही जा सकता है। सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना से सुबूत माँगना, जाँच एजेंसियों पर सवाल उठाना ,नक्सलियों का दलित का नाम देना ये सब करके राजनीतिक दल क्या कहना चाहता है ,समझ से परे है। अब हम विपक्षी दल की ही बात क्यों करें, सत्तादल भी कम नही है,जिस प्रकार जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजों से मुकदमा वापस लिए जा रहे हैं,सीजफायर का आदेश दे रहे हैं , ये सब कहीं न कहीं सेना का मनोबल तोड़ने का कार्य बीजेपी सरकार कर रही है। इसमें कहीं न कहीं मुस्लिम तुष्टीकरण की बू आ रही है। लेकिन इससे अमनपसंद मुस्लिम खुश नही होगा। क्योंकि आतंकियों की कोई जाति नही होती है। हाल के वर्षों में राजनीति दलों के नेताओं का रवैया देश की आंतरिक व बाहरी सुरक्षा को चोट पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं वो वो चंद स्वार्थों के लिए। लेकिन इन्हें कौन समझाये जब देश का लोकतांत्रिक ढांचा नही सुरक्षित होगा ,तो राजनीति कैसे होगी! प्रधानमंत्री की सुरक्षा देश से जुड़ा है, इसलिये इस प्रकरण को लेकर सभी दलों व बुद्धिजीवियों को गम्भीरता से लेने व समझने की जरूरत है।
@NEERAJ SINGH
एक और दस्तक
जवाब देंहटाएंबढ़िया....बड़ा बयान तो महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता का था....मतलब बड़ा सवाल कांग्रेस ने ही उठाया....
हटाएंजी सही फरमाया
हटाएं