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आरएसएस के कार्यक्रम में जाना अपराध है क्या...!


देश में एक ही मुद्दा छाया है कि  पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में नागपुर जा रहे हैं। उन्हें जाना नही चाहिए । ये बिल्कुल सही नही है। अनेक पार्टियों के प्रवक्ता बयानबाजी में मशगूल है। अब हम बात करते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ,जिसकी स्थापना डॉ0 बलिराम हेगड़ेवार द्वारा 27 सितम्बर 1925 में नागपुर, महाराष्ट्र में की गई। इस संगठन का ध्येय मातृभूमि की सेवा करना ,और राष्ट्र की रक्षा करना । ये एक हिन्दू वादी संगठन माना जाता है। इसके आब तक 09 सर संघचालक हुए हैं।वर्तमान में सरसंघ चालक मोहन भगवत् हैं।संघ का कहना है कि हमारा संगठन मातृभूमि की सेवा , निरीह,दबे कुचले गरीबों की सेवा के लिए तत्पर रहता है। इसका उदाहरण 1962 का भारत -चीन युद्ध रहा हो जिसमें घायलों की मदद किया या फिर गुजरात के कच्छ व भुज के भूकंप पीड़ितों की सहायता रही हो। ऐसे अनेक मौकों पर संघ के स्वयं सेवकों पर लोगों की मदद के लिए आगे आया है। आज देश 70हजार से अधिक आरएसएस की शाखाएं चल रही हैं। लेकिन ये संगठन विवादों में भी रहा है। इनके आलोचकों का मानना है कि ये संगठन कट्टर हिंदूवादी है,समाजसेवा का मात्र चोला पहन रखा है। इनका मानना ये भी कि आरएसएस ने ही गांधी जी हत्त्या नाथूराम गोडसे से कराई थी। इस संगठन को 1952 में प्रतिबंधित भी किया था ,अंतिम बार 1992 कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने आरएसएस को प्रतिबंधित किया था। लेकिन ऐसा भी नही है कि सभी इसे अछूत मानते थे।  जिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व सरदार पटेल ने आरएसएस को प्रतिबंधित किया था उन्होंने ही 26 जनवरी की परेड में आगे चल कर शामिल भी किया था। इतना ही नही जिनकी हत्या का इल्जाम लगा वही बापू जी उनके कार्यक्रम में शामिल हुए थे। अम्बेडकर जी,  लाल बहादुर शास्त्री व इंदिरा व राजीव गांधी के रिश्ते संघ से अच्छे रहे थे। ये उन्ही पार्टी के पुरोधा रहे हैं ,जिनके नाम पर कांग्रेस पार्टी चल रही है। आज वही कांग्रेस इस संगठन को भगवा आतंक करार दिया। राहुल गांधी संघ को बापू जी के हत्त्यारे बता रहे। 2010 में हिन्दू आतंक का पर्याय बताने वाले प्रणव दा उनके कार्यक्रम में भाग लेते हैं तो इसे क्या कहा जाय। कोई प्रणव दा को लेटर तो कोई मैसेज व फोन कर रोका । कांग्रेसी उनके पूरे जीवन की कांग्रेसियत विचार धारा की दुहाई दे डाली। हद हो गई प्रणव दा देश में ही तो हैं विदेश नही गए । जो हायतौबा मचा रखा है। लेकिन इन सब के बीच कांग्रेस का आलाकमान कमान कुछ भी बोलने तो तैयार नही है क्यों!इसका भी जबाब है अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का ठप्पा हटा रही कांग्रेस के लिए ये मामला पेचीदा है । एक तरफ मंदिर -मंदिर जाकर अपने को हिंदुओं का हितैषी बता रही है। अगर आरएसएस पर हमलावर होगी तो एक बार फिर वही ठप्पा लग जायेगा। इसलिये कांग्रेस इससे बच रही है। वहीं बीजेपी मुस्कुरा रही है कि कांग्रेस का बड़ा विचारक व पार्टी का चेहरा आरएसएस कार्यक्रम पहुंचकर पुनः इतिहास दोहरा रहा है,जिसका दूरगामी परिणाम देख रहा है।आरएसएस की विचारधारा को एक और बड़ा समर्थन मिलना अपने बड़े राजनीतिक मायने हैं। अगर देखा जाय कहीं न कहीं इस घटनाचक्र का 2019 पर एक नया राजनितिक दांव तो नही है!फिलहाल राजनीतिक पार्टियों के अपने अपने विचार व मत हैं। लेकिन संगठन की तुलना जिस प्रकार हाफिज सईद के संगठन से की जा रही है ,ये सही नही है। आरएसएस एक राष्ट्रीय सोच का संगठन है,हिन्दुत्व सोच है ,पर ये दर्जनों सह संगठन बनाकर सामाजिक कार्य कर रहे हैं। उसमें जाति धर्म नही देख रहे हैं। जब गांधी,अम्बेडकर, नेहरु जैसे देश की महान विभूतियों ने अछूता नही समझा तो कोई विद्वान के आरएसएस के कार्यक्रम में जाना कतई अपराध नही है।
@NEERAJ SINGH

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