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सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भक्तों की मुरादें पूरी करती हैं माँ अहोरवा

द्वापर कालीन माँ अहोरवा देवी के मंदिर में भक्तों आस्था है कि सच्चे मन से मांगी गयी मुराद माँ अहोरवा अवश्य पूर्ण करती हैं शारदीय नवरात्रि तथा चैत्र नवरात्रि में भक्त माँ की विशेष पूजा अर्चना करतें हैं देवी माँ के नौ रूपों की पूजा करने वाले भक्त माँ अहोरवा के एक दिन में तीन रूपों के दर्शन कर अपने कल्याण की कामना करतें हैं| रायबरेली-इन्हौना मार्ग पर सिंहपुर ब्लाक मुख्यालय के निकट स्थित माँ अहोरवा देवी के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव अज्ञातवास में थे तो माता कुंती समेत द्रोपदी व पांडवों ने देवी माँ की पूजा की थी प्राकृतिक रूप से विद्यमान माँ अहोरवा की मूर्ति के बारे में मान्यता है कि माँ के दर्शन से भक्तों के कष्ट तो दूर होतें ही हैं सच्चे मन से मांगी गयी मुराद भी माँ पूरी करती हैं|बड़ी संख्या में ऐसे भक्त हैं जो प्रत्येक सोमवार माँ के दर्शन कर परिक्रमा करतें हैं|मान्यता है कि दूध और पूत से परिवारों को संतृप्त रखने की शक्ति माँ अहोरवा में है| कई प्रकार के शारीरिक कष्टों वाले भक्त माँ के दर्शनों से निजात पाते हैं बड़ी संख्या में ऐसें भक्

लोगों की मन्नतों को फलीभूत करता रहा है सिद्धपीठ टीकरमाफी आश्रम

भारत देश में यूपी के अमेठी जनपद में मौजूद सिद्धपीठ स्वामी परमहंस आश्रम टीकरमाफी में भक्तों द्वारा सिद्धपीठ पर मंथा टेका और पूजा अर्चना कर अपनी मनौती को पूरा करने के लिए स्वामी जी की आराधना करते हैं।न जाने कितने के दुख दूर हुए और कितने परिवारों में कलह से शांति मिली। और नव वधूओं की गोद हरीभरी हुई। कितने अपने रोजगार और पढाई के लिए मन्नते मांगी। पीठ के महंत दिनेशानंद महाराज लोगों को स्वामी जी की भभूती और प्रसाद वितरित किया। और स्वामी जी की नीरि घर-घर शांति का संदेश देने परिवार के बीच पहुची। जो एक बार आया वह बिना दुबारा प्रसाद ग्रहण किये बेचैन हो जाता है। जिनकी मत मार जाती है जो पागल हो जाते है वो भी गोसेवा और समाधि के दर्शन सुबह शाम आरती प्रसाद ग्रहण करने से उनमें बदलाव सा आ जाता है। देश के कोने कोने के अतिरिक्‍त सुलतानपुर, प्रतापगढ, चिलबिला, आदि स्‍थानों के व्यापारी भी समाधि पर पूजा अर्चना कर स्वामी जी से सुख शांति की मंगल कामना करते हैं। यहां पर विशाल गौशाला है जो विशाल जंगल में अपना चारा स्वयं तलाशती है। जबकि आश्रम के आस-पास के किसान भूषा और अनाज दोनों का दान कर आश्रम में श्रद्धा के