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नववर्ष 2019 की शुभकामनाएं

सभी ब्लॉग पाठकों को लोकदस्तक परिवार की तरफ से की हार्दिक शुभकामनायें @NEERAJSINGH Blogger

अब राहुल होंगे यूपीए के सर्वमान्य नेता !

@NEERAJ SINGH देश में पांच राज्यों के चुनाव संपन्न हुआ, जिसमें पांच राज्य में से  तीन राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई, जबकि तेलंगाना में बीआरएस बीआरएस एवं मिजोरम में कांग्रेस की सरकार के हटने के बाद एनडीएफ की सरकार बन गई । इस चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है क्योंकि ये राज्य हिंदी बेल्ट वाले राज्य हैं  जिन्हें भाजपा का गढ़ माना जाता है । मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद भाजपा की सरकार हटी है और जनता ने कांग्रेस की सरकार बनाई । 15 वर्षों से चल रहे पार्टी की सूखे को समाप्त किया । आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इन राज्यों के चुनाव सेमीफाइनल की तरह देखे जा रहे थे । यह चुनाव अपने में कई मायनों में अहम थे भारतीय जनता पार्टी अनेक फैसलों व मुद्दों की कसौटी पर कसी जा रही थी  । मोदी की लोकप्रियता एवं सरकार बनाने की क्षमता का भी आकलन होना था। उधर राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी की लगातार हो रही हार से उनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे थे! लगने लगा था कि बीजेपी का भारत मुक्त अभियान कहीं सफल तो नही हो जायेगा! देश के अनेक दल राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के योग्य तक नही समझते

कसौटी पर सीबीआई की साख !

देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी सीबीआई यानि कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की साख उसके ही टॉप लेबल के दो बड़े ऑफिसरों के कारण कसौटी पर कसी जा रही है। ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो। हमारे देश हर नागरिक को न्याय मिलने का अगर सबसे विश्वासनीय जाँच एजेंसी मानता है तो वो सीबीआई को सर्वोपरि रखता है। आजादी से छः वर्ष पूर्व 1941 में इसका गठन हुआ था । दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम1946 के तहत इसका पुर्नगठन 1963 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो यानी सीबीआई के रूप में अवतरित हुई जो कि अपराध, भ्रष्टाचार व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलुओं  पर जांच करने का कार्य निरन्तर रूप से करती आ रही है। और अपराधियों को अपनी ही अदालत में मुकदमा चला कर सजा देने का भी कार्य बड़ी निष्पक्षता से करती आ रही है। और जनता के दिलों में विश्वास की कसौटी पर खरा उतरती रही है।  लेकिन जिस प्रकार सीबीआई के डाइरेक्टर आलोक वर्मा व स्पेशल डाइरेक्टर राकेश अस्थाना एक-दूसरे आरोप-प्रत्यारोप की जंग छेड़ दिया है, इस प्रकरण से सीबीआई के साख पर आंच आना तय है । सीबीआई की आपसी लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट  से राजनीतिक अखाड़े तक पहुँच गया। इतना ही नहीं इस मामले

वूमेन, टू मी कैम्पेन का सामाजिक असर !

                                                                                                                                                                                                          आजकल दुनिया के एक कोने से चली हवा अब सुनामी का रूप ले चुकी है। इस सुनामी का नाम रखा गया मी टू । ये समुद्रीय तटों पर असर नही डाल सका पर सामाजिक ढांचों को जरूर हिला कर रख दिया है। समाज में पुरुषों से पीड़ित महिलाओं को टू मी कैम्पेन से एक नई रोशनी अवश्य दिखी है,लेकिन इनके लिए कितना कारगर साबित होगा ये आंदोलन वक्त ही तय कर पायेगा। अनेक जानकारों का मानना है कि ये आंदोलन ज्यादा समय तक चलना संशय के घेरे में है। इसका असर सबसे पहले विश्व सबसे पॉवरफुल देश अमेरिका में दिखा जब राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने अपने द्वारा नियुक्त जज के मी टू में फसने पर जांच के आदेश देने पड़े ,भले ही इस मामले जज दोषमुक्त हुए और अपना कार्यभार पुनः संभाला। इस आंदोलन की आग में अनेक देशों में खलबली मचा रखी है। भारत में भी मी टू ने देश के नामचीन हस्तियों के जीवन में सुनामी ला दिया है। उनका वर्षों की मेहनत से खड़ा किया हुआ

राफेल डील, बोफोर्स काण्ड की पुनरावृत्ति तो नहीं!

  देश की राजनीति में राफेल डील को लेकर घमासान मचा हुआ है । आए दिन नए खुलासे किए जा रहे हैं , उनका खंडन भी हो रहा है । एक अहम् सवाल यह है कि राहुल की कांग्रेस 2019 लोकसभा के चुनाव बोफोर्स सौदा साबित कर सकेंगे ! राफेल के सहारे ही अपनी चुनावी वैतरणी पार कर लेंगे बी पी सिंह की तरह,इनकी यह मुहिम सफल होगी ! स्व0 राजीव गांधी जी को 1989 के लोकसभा चुनाव में हारना पड़ा था और उन पर बोफोर्स तोप सौदा भारी पड़ा था । बी पी सिंह प्रधानमंत्री तो  गए थे,लेकिन जिस रूप बोफोर्स को  घटिया  किस्म का तो बता रहे थे, वही घटिया बोफोर्स तोप ने ही कारगिल की लड़ाई को जीत में बदला था। दशौल्ट कंपनी के साथ राफेल के लिए किए गए सौदे के बाद से ही राहुल गांधी इस मुद्दे को हर हाल में आगामी लोकसभा व पांच राज्यों के चुनाव में बनाने का पूरी कोशिश कर रहे हैं । कई बार उन्होंने मीडिया और रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चोर और भ्रष्ट कहने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं ।इसके पलटवार में भाजपा ने भी गांधी परिवार को भ्रष्ट सिद्ध करने में कोई कसर नहीं रखना चाहती है। अब बात करें राफेल सौदे की 36 राफेल विमानों के सौदे पर 23 सित

ये दोस्ती हम नही छोड़ेंगे......

उक्त गीत की लाइन मशहूर फिल्म शोले की है । जिसमें दो दोस्त जय व बीरू अपनी दोस्ती की कसमें खाते हैं,और ये गीत गुनगुनाते हुए दिखते हैं। ठीक उसी प्रकार भारत और रूस के बीच की दोस्ती भी किसी भी कीमत पर ना टूटने पाये, इसके लिए दोनों देश के सरकारें हर कुर्बानी देने के लिये तैयार रहती हैं। दशकों के पुराने रिश्ते को एक बार फिर मजबूत करने के लिए रशियन राष्ट्रपति आज दो दिन के भारत के दौरे पर हैं। वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत जैसे विकासशील देशों को अमेरिका और रूस जैसी विकसित महाशक्तियों की जरूरत है । भारत को वायु रक्षा प्रणाली की जरूरत है जो कि राष्ट्रपति पुतिन इसी दौरे में इसे लेकर समझौता करने वाले है। लेकिन ट्रम्प सरकार आने के बाद 50 व 60 के दशक जैसे हालात बन गए हैं । एक प्रकार से शीत युद्ध जैसा माहौल विश्व में बन चुका है । आज देश दो गुटों में बंटा हुआ दिख रहा है।एक तरफ की अगुवाई अमेरिका कर रहा है तो दूसरी तरफ की अगुवाई रूस कर रहा है। इन दोनों महा शक्तियों के बीच बीच में विकासशील व गरीब देश पिस रहे हैं ।आज भारत जैसे देशों को दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने की कठिन चुनौती सामने  है । अगर दे

अपने ही मातृभूमि में बेगानी हो गई है मातृभाषा हिन्दी

 देश हर वर्ष की तरह इस बार भी 15 सितम्बर से हिन्दी पखवाडा चल रहा है। जोकि 29 सितम्बर को समापन होगा।बात करें हिन्दी की तो मातृभाषा जिसे राजभाषा का दर्जा मिला है पर पूर्ण दर्जा पाने के लिए आज भी जद्दो जहद हिन्दी अपनी ही जन्मभूमि में ही बेगानी नजर आ रही है। वहीं कम्प्यूटरीकरण से हिन्दी को करारा झटका लगा है। स्थित यह कि सरकारी दफ्तरो में अधिकांश कामकाज अंग्रेजी भाषा मे होता है। परिणाम स्वरूप हिन्दी को व्यवसायिक राज्यभाषा का दर्जा नही मिल सका है। राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए केन्द्र सरकार के दफ्तररों मे हिन्दी अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, स्पष्ट आदेश हेै कि हिन्दी मे। कामकाज किए जाएं। लेकिन बी एस एन एल, डाक, रेल आदि जैसी महत्वपूर्ण विभाग हिन्दी का इस्तेमाल नही करते है। जिसमे लम्बे चौड़े दावे होेते हैं, लेकिन जब इन दावों के क्रियान्वयन की बारी आती है तो जिम्मेदार अधिकारी हाथ खडा कर लेते है। आम तोैर पर बी एस एन एल दफ्तर है जिसमे टेलीफोन, मोबाइल बिल अग्रेजी भाषा मे जारी होते है। कनेक्शन फार्म भी अग्रेजी मे होता है यह तक कि टेंण्डर भी अंग्रेजी भाषा के अखबार में प्रकाशित किया जाता है।

सोलह बनाम चौरासी की सियासत के भंवर में अटके सियासी दल !

‌सामाजिक न्याय व समरसता का ढिंढोरा पीटने वाले राजनीतिक दल पहले तो सवर्णों को आरक्षण के जाल में उलझा कर रखने और अब एससी एसटी एक्ट के बहाने उन्हें और प्रताड़ित कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का एक और जरिया ढूंढ लिया है । जिस तरह भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का कृत्य किया है । इसे भी जातीय राजनीति करने वालों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।  राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी क्षेत्रीय दलों की श्रेणी में शामिल हो गई है ,जो कि क्षेत्रवाद और जातिवाद की राजनीति करते हैं। बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने संविधान में आरक्षण को 10 वर्ष के लिए लागू किया किया था।  जिसकी उस समय सामाजिक समरसता लाने की व अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए अति आवश्यकता थी। इस अधिनियम को समय-समय पर हर 10 वर्ष पर आगे बढ़ाया गया ,जो कि तर्कसंगत भी है । लेकिन अब इसका भी दुरुपयोग होने लगा है , क्योंकि इसका लाभ क्रीमी लेयर के लोग भी उठा रहे हैं । इसलिए काफी समय से मांग उठ रही है कि इसे गरीबी के आधार पर लागू किया जाए । लेकिन राजनीतिक दल अपनी वोट की राजनीति के खातिर सभी वर्गों के साथ अन्याय कर

‌आग से आग तक का सफ़र .......आर0के0स्टूडियो

‌जाने कहाँ गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे चाहे कहीं भी तुम रहो, चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे जाने कहाँ गए वो दिन ...जी हाँ ये पंक्तियाँ देश के सबसे बड़े शोमैन स्व0 राजकपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकर के गाने की हैं। जिनके हर शब्द आज के समय में माकूल बैठ रहा है। कभी मुम्बई की फिल्मसिटी का सिरमौर रहा आर0के0 स्टूडियो अब बिकने के कगार पर है। उसकी दीवारें गुजरे ज़माने को याद कर रही हैं। सच भी है जब इस इमारत में नए कलाकारों की किस्मत लिखी जाती थी ,उनका भविष्य तय होता था उस ज़माने में आर0के0 स्टूडियो की बादशाहत हुआ करती थी। लेकिन आग से शुरू और आग पर ही ख़त्म हो रही इस स्टूडियो की कहानी। अभिनेता स्व0 राजकपूर द्वारा 1951 में स्थापित आर0के0 स्टूडियो ने अपने 70 साल के सफर में बहुत सी यादों को समेटे हुए हैं। राजकपूर अभिनेता के साथ साथ प्रोडूसर डायरेक्टर भी रहे ।इनकी फिल्मों में विविधता के साथ सामाजिक सरोकार भरी होती थी। जीवन के अनेक करेक्टर को उन्होंने अपने अभिनय से जीवंत किया है ।इसलिए इन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा शोमैन भी कहा जाता था। उनकी पहली फिल्म आग थी

दोराहे पर खड़ी है, देश की राजनीति

देश की राजनीति ऐसे मुहाने पर खड़ी है कि राजनेताओं की बुद्धि कुंद होती जा रही है। सोचने समझने की समझ पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।  आखिर इस लोकतांत्रिक देश का भविष्य दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है,कि जनता भी नहीं समझ पा रही है , क्या सही है, क्या गलत है, हर बात , हर घटना को मीडिया भी ऐसा पेश कर रही है  कि जनता के लिए सही गलत का फैसला करना भी कठिन हो रहा है। इस विशाल लोकतंत्र में तरह - तरह की भाषाएं बोलने वाले अलग-अलग जाति व धर्म के लोग रहते हैं, उनका रहन सहन रीति रिवाज व अलग अलग प्राकृतिक माहौल में जीवन यापन करते हैं। यही अनेकता में एकता का बोध कराते हैं । लेकिन पिछले कुछ दशक से देश में जाति भाषा धर्म क्षेत्र आदि जैसे मुद्दे पर देश को बांटने का काम किया जा रहा है। इतना ही नहीं अनेक तथाकथित राजनीतिक दलों के नेता  देश में लिंचिंग जैसे मामलों को लेकर देश के बंटवारे की बात करते हैं। अभी हाल ही में BJP व पीडीपी के बीच जम्मू कश्मीर में सरकार का समझौता टूटने के बाद पूर्व मंत्री मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती व उनकी  पार्टी के नेता अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे हैं । महबूबा मुफ्ती को कश्मीर में सलाउद्

पीएम मोदी की हत्या की साजिश खुलासे को लेकर राजनीति क्यों....!

पीएम मोदी की हत्या की साजिश में राजनीति क्यों ....! ‌देश की राजनीति की दिशा किस मोड़ पर पंहुच रही है, अनेक सवाल उठने लगे हैं। आज की राजनीतिक उठापटक लोकतांत्रिक ढांचे को कितना मजबूत या कमजोर करेगी इसका आकलन होना बाकी है। जिस देश में आतंक की बेदी पर दो-दो प्रधानमंत्रियों के जीवन का बलिदान हो गया हो , वहीं प्रधानमंत्री की नक्सलियों द्वारा हत्या की साजिश मामले में विपक्षियों ने दलित मुद्दा खोजना शुरू कर दिया है, कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। आतंकी हों या फिर नक्सली हों । ये सभी मानवीय दुश्मन ही हैं। अगर इनमें भी मुस्लिम या फिर दलित के नाम पर इनका बचाव किया जाय तो एक लोकतंत्र के लिए इससे शर्मनाक घटना और क्या हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का खुलासा हाल में हुई कोरेगांव के दंगे की  सुरक्षा एजेंसियों की जांच के दौरान हुई। इस घटना के तार तो नक्सलियों से जुड़े हैं।इस जांच के दायरे में कई जाने माने वामपंथी सोच के प्रोफेसर आये जो नक्सलियों के पक्षधर के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया और इनके घरों में सुरक्षा एजेंसी को अनेक दस्तावेज व चिट्ठियां

आरएसएस के कार्यक्रम में जाना अपराध है क्या...!

देश में एक ही मुद्दा छाया है कि  पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में नागपुर जा रहे हैं। उन्हें जाना नही चाहिए । ये बिल्कुल सही नही है। अनेक पार्टियों के प्रवक्ता बयानबाजी में मशगूल है। अब हम बात करते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ,जिसकी स्थापना डॉ0 बलिराम हेगड़ेवार द्वारा 27 सितम्बर 1925 में नागपुर, महाराष्ट्र में की गई। इस संगठन का ध्येय मातृभूमि की सेवा करना ,और राष्ट्र की रक्षा करना । ये एक हिन्दू वादी संगठन माना जाता है। इसके आब तक 09 सर संघचालक हुए हैं।वर्तमान में सरसंघ चालक मोहन भगवत् हैं।संघ का कहना है कि हमारा संगठन मातृभूमि की सेवा , निरीह,दबे कुचले गरीबों की सेवा के लिए तत्पर रहता है। इसका उदाहरण 1962 का भारत -चीन युद्ध रहा हो जिसमें घायलों की मदद किया या फिर गुजरात के कच्छ व भुज के भूकंप पीड़ितों की सहायता रही हो। ऐसे अनेक मौकों पर संघ के स्वयं सेवकों पर लोगों की मदद के लिए आगे आया है। आज देश 70हजार से अधिक आरएसएस की शाखाएं चल रही हैं। लेकिन ये संगठन विवादों में भी रहा है। इनके आलोचकों का मानना है कि ये संगठन कट्टर हिंदूवादी है,समाजसेवा का मात्र चोला पह

आमजन के ज़हन बसा बीजेपी का अहम , बना हार का कारक..!

देश में 10 विधानसभा व 04 लोकसभा उपचुनाव  में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि 2019 के आम चुनाव से पहले जनता का मोदी सरकार व बीजेपी को बदलाव का  संकेत तो नही हैं। एक बड़ा सवाल उभर कर सामने आ रहा कि कहीं  आमजन के जहन में ये तो नही बस गया है की  बीजेपी की लगातार राज्यों में हुई जीत से पार्टी व उनके नेताओं में  अहम तो नही आ गया है जोकि बीजेपी के हार का कारक बन गया हो । इस चुनाव को इसलिये भी महत्वपूर्ण माना जा रहा था कि अब लोकसभा आम चुनाव होने एक साल से भी कम रह गए हैं। भले ही बीजेपी नेता व उनके प्रवक्ता चिल्ला चिल्ला कर सफाई दे रहे हैं कि उपचुनाव से आम चुनाव अलग होते  हैं।आइए गौर करें तो 2014 में बीजेपी की सरकार प्रचण्ड बहुमत आई।दो वर्ष तो सब कुछ ठीक रहा । लेकिन 2016 से 37 उपचुनाव में से बीजेपी को 31 में हार का मुँह देखना पड़ा , एक सकून 2017 में रहा जब बीजेपी की यूपी में भारी बहुमत की सरकार योगी जी के नेतृत्व में बनी।लेकिन उसके बाद से बीजेपी के लिए कोई अच्छीखबर लेकर नही आयी है। लोकसभा गोरखपुर, फूलपुर, और अब कैराना साथ में नूरपुर विधानसभा में

जीवन जीने की कला ही जीवन का सार है ....!

                                                                       जीवन का सार शास्त्रों, उपनिषदों बाइबिल,कुरान आदि धार्मिक ग्रंथों में भरा पड़ा है। इसे लेकर अनेक विद्वान व विदुषी अपने विचार रखा है।अरस्तू, प्लेटो जैसे अनेक महान विचारकों में अपने अपने मत दिए हैं। सबके अपने विचार व मत हैं। सच तो ये है जीवन में घटित घटनाओं से जीवन के सार का अर्थ मिलता है और वही सही मनुष्यों को नजरिया प्रदान करता है। जीवन जीने कला है, जीवन एक संघर्ष है, जीवन अनमोल है न जाने किन किन वाक्यों से जीवन को अभिभूत किया जाता है। मेरा मानना ये कतई नही है कि ये सारी बातें गलत हैं। मैं तो अपने  नजरिये से जीवन को देखता हूँ।जीवन के सार की व्याख्या श्रीमद्भागवत गीता में है जिसमें न केवल धर्म का उपदेश देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। गीता के उपदेशों पर चलकर न केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं। ऐसे ही वर्तमान जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से लडऩे के लिए मनुष्य को गीता में बताए ज्ञान की तरह आचरण करना

सत्ता की बेदी पर जवानों की बलि....!

एक कहावत याद आ रही हम्माम में सभी नंगे होते हैं। इस कहावत को चरितार्थ कर रही हमारे देश की सत्ता लोलुप राजनीतिज्ञ। कोई भी ऐसी पार्टी नही है , जो सत्ता की कुर्सी से पहले देश हित की बात करती हो । देश की राजनीति जैसे दिशा व दशा दोनों बदलती जा रही है। अल्पसंख्यक समुदाय को रिझाने के लिए टोपी पहनी जाती है,नमाज पढे जाते हैं, रोजा खोले जाते हैं । वहीं बहुसंख्यक को रिझाने के लिए तिलक लगाना,दर्शन करना, पूजन किया जाता है। ये सब करना गलत नही है,लेकिन वोट लिए दिखावा करना बिल्कुल गलत है। राजनेताओं का तुष्टीकरण की नीति अपनाना बेहद निंदनीय कृत्य है, पर सबकुछ हो रहा है। लेकिन अपने को राष्ट्र वादी पार्टी का दम्भ भरने वाली केंद्र की सत्ता ने अक्सर आतंकियों का मुखाल्फत करने वाली जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा के अनर्गल फैसले पर मुहर लगाकर सत्ता की बेदी पर जवानों की बलि चढाने जैसा घृणित निर्णय लिया है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रमजान के महीने में आतंकियों व पत्थरबाजों के खिलाफ कार्यवाही रोकने की बात कही है। इस निर्णय के ठीक दो घण्टे के अंदर आतंकी हमला हो गया। पाक ने सीजफायर का उलंघन चालू है।  

दुश्मनों पर रहम का अनर्गल प्रलाप क्यों .....!

कश्मीर को आतंकी पंजे से मुक्त करने में लगे सेना के जवानों की मुहिम रंग लाने लगी है। कश्मीर की जम्हूरियत को शांति का सकून दिलाने की ओर अग्रसर भारतीय फौज के जवानों के मनोबल तोड़ने की साजिश के तहत प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का बयान आया है। उनका कहना है कि जिस प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी रमजान के मौके पर सीजफायर का ऐलान किया था उसी तर्ज पर इस बार भी रमजान के मौके पर आतंकियों के खिलाफ चल रहे मुहिम को रोक दिया जाना चाहिए। ये बयान कहाँ तक उचित है कि जो गलती पिछली सरकारों की हैं, उसी गलती को पुनः दोहराना कितना सही है,बजाय सबक लेने के! जब बाजपेयी सरकार ने सीजफायर करने का ऐलान किया था ,ठीक उसी दरम्यां जमकर सीजफायर का उलंघन आतंकी गतिविधियों में इजाफा भी हुआ था। एक बार फिर वही गलती दोहराने के संबंध में महबूबा मुफ़्ती का बयान नाकाबिले तारीफ है। अब जब कि घाटी में सेना की आतंक़ियों के खिलाफ चल रही ताबड़तोड़ एनकॉउंटर की कार्यवाही दहशतगर्दी की कमर तोड़कर रख दिया है। घाटी में बुरहान वानी से लेकर अनेक कमांडर सेना व पुलिस की  कार्यवाही में मारे जा चुके हैं। लेकिन रमजान के पाक महीने

राजनीति के बाहुबली ,भगवाधारी मोदी ने रचा इतिहास

इस लेख का शीर्षक अतिश्योक्ति नही, सार्थकता प्रदान कर रहा है। तीन राज्यों में चुनाव के परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय सियासत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई सानी है। वर्तमान में भारतीय राजनीति में इनके कद का राजनेता दूर दूर तक नही दिख रहा है।आज के परिणामों में न सिर्फ त्रिपुरा के 25 वर्षों से अजेय वामपंथियों के किले को ध्वस्त किया बल्कि नागालैंड में भी सरकार बनाने जा रही है।मेघालय में भी सत्ता के करीब हो सत्ताधारी कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की जुगत में हैं। त्रिपुरा व नागालैंड बीजेपी सरकार बनते ही देश के 20 राज्यों में भाजपा की सरकारें होंगी, ये भी भारत के राजनीति के इतिहास में पहली बार किसी एक पार्टी व उसकी सहयोगी की सरकार होगी। ये इतिहास बनाने का करिश्मा सिर्फ मोदी के ही बल पर संभव हुआ है। बताना मुनासिब होगा आजादी के बाद से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करिश्माई नेतृत्व में 18 राज्यों में कांग्रेस व उनके सहयोगी सरकारें बनी थी, लेकिन आज वो भी रिकार्ड टूट गया। अब राजनीतिक विश्लेषकों में एक नई बहस छिड़ गई है कि अब तक का सबसे लोकप्रिय, शक्तिशाली व करिश्माई प्र

प्रिय पाठकों होली की शुभकामनाएं.....

हवा हवाई हो गई चांदनी .......

‌आज सुबह चाय पी ही रहा था कि सोचा जरा देश दुनिया का हाल-चाल भी ले  लिया जाय और टीवी आन कर दिया । अरे ये क्या सुन रहा हूँ....शाक करने वाली खबर थी वो भी बालीवुड से कि जानी मानी फ़िल्म इण्डस्ट्री की अभिनेत्री श्री देवी का निधन होने की । न्यूज़ से जानकारी मिली कि उनकी मौत हार्ट अटैक से दुबई के जुबैरा होटल में मौत हो गई है। वो अपने भांजे की शादी में अपने पति बोनी कपूर व छोटी बिटिया ख़ुशी के शामिल होने आई थी। फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाली श्रीदेवी करीब 50 वर्ष तक का अदाकारी में बिताया । मात्र चार वर्ष में ही बाल कलाकार रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी। और तमिल ,कन्नड़, हिंदी  आदि भाषाओं में 200 से अधिक फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा। फ़िल्म फेयर, पद्मश्री जैसे अवार्ड से सम्मानित हुई थी।  चांदनी, सदमा,नगीना,मिस्टर इंडिया,लम्हे,खुदा गवाह, जुदाई, जैसी ब्लॉकबस्टर यादगार फिल्में दी हैं। हमेशा स्वस्थ रहने वाली श्रीदेवी की अचानक उनकी मौत से सारा फ़िल्म इंडस्ट्री सन्न रह गया ,लाखों प्रशंसकों में शोक की लहर फ़ैल गई।  इस घटना के बाद मैं भी बहुत ही शॉक्ड हो गया। ये सोचने पर

राजनीति के मंच पर छन रहे सियासी पकौड़े

‌आजकल देश में समस्याओं को दरकिनार कर राजनीतिक दल पकौड़े के पीछे  चुके हैं। सोशल साइट पर इसे लेकर कोहराम मचा है,कि मोदी जी ने ये कह डाला देश का युवा बेरोजगार पकौड़ा बेचे, घोर अपमान । इतना ही नही विभिन्न दल के नेता पकौड़ा तलते नजर आ रहे हैं। अब बात करें कि ये बात किधर से आई!  विगत 19 जनवरी को देश के एक बड़े चैनल में इंटरव्यू के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बहुत से बेरोजगार लोगों को बैंक से ऋण दिया गया है , जिससे वे अपना छोटा मोटा व्यवसाय खोल सकें। उदाहरण के रूप में चाय व पकौड़े की दुकान खोलने की बात कही, जिससे अपना जीवन यापन कर सके। फिर क्या था विपक्षी राजनीतिक दलों के भी पकौड़े  छनने लगे। इसे तो मुद्दा ही बना दिया गया और युवाओं से जोड़ दिया । कांग्रेस हो या फिर समाजवादी पार्टी के नेता आजकल सड़कों पर उतर कर पकौड़ा तलने  में जुट गए हैं । इनका मानना है कि देश के बेरोजगारों को पकौड़े बनाने की सलाह देकर उनका मोदी जी ने अपमान किया है। ये तो हुई राजनीति की बातें । मोदी जी के बयान के मायने चाहे जितने लगाये जा रहे हों,लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि आज भी देश में लाखो

कासगंज की घटना देश के लिए अच्छा संकेत नहीं!

‌देश में जब हम 69वां गणतंत्र धूमधाम से समूचे भारत में मनाया जा रहा था कि ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश के कासगंज में एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया । जब देश में जिस दिन से कानून का राज्य कायम हुआ यानी संविधान लागू हुआ था। ठीक इसी दिन यानी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर कुछ युवाओं ने तिरंगे को लेकर कासगंज में एक यात्रा निकाली । इस तिरंगा यात्रा में जोश से वन्देमातरम् ,जय हिन्द,भारत माता के नारे लगाते शहर की गलियों में घूम रहे थे । उन्हें क्या पता था कि देश के दुश्मन भी इन्ही गलियों में रहते हैं। जैसे ही वे सभी तिरंगा यात्रा लेकर एक विशेष समुदाय के मुहल्ले के पास से गुजर रहे थे कि उन पर ईंट-पत्थरों से हमला बोल दिया ,जब इससे जी नही भरा तो फायरिंग भी शुरू कर दी जिसमें एक युवा अभिषेक गुप्ता उर्फ चन्दन की गोली लगने से मौत हो गई। वहीं दूसरे घायल युवक रोहित की इलाज के दौरान मौत हो गई। गणतंत्र दिवस मनाते हुए इनकी मौत शहीद से कमतर कतई नही है। इस घटना ने प्रदेश ही नही पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।  इस घटना से कई अहम् सवाल उठ रहे हैं। एक लोकतांत्रिक देश में  देश भावना को द

अपने ही क्षेत्र में विरोध का सामना कर रहे राहुल गांधी

देश की सियासत में अमेठी का मुकाम अहम है। हो भी क्यों न क्योंकि इसका रिश्ता देश के सबसे बडे राजनीतिक घराने गांधी परिवार से जुडा हुआ है। इस राजनीति की विरासत को वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सम्भाल रहे हैं। लेकिन मंगलवार को राहुल गांधी के अमेठी दो दिवसीय दौरे की समाप्ति के बाद राजनीतिक विश्लेषकों को इस तरफ सोचने को मजबूर हो चला है।इस बार का दौरा काफी हंगामें पूर्ण रहा। गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट पर इस प्रकार भारी विरोध का सामना करना कहीं न कहीं सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। गौरतलब है कि सत्तर के दशक में अमेठी से गांधी परिवार के पहले सदस्य के रूप में संसदीय सीट पर संजय गांधी ने चुनाव लडा था , लेकिन 77 की जनता लहर में जनसंघ के प्रत्याशी से चुनाव हार गये। 1980 में पुनः चुनाव लडा और भी गये। उनकी आसमयिक मौत के बाद राजीव गांधी यहां लगातार चार चुनाव जीते लेकिन 1991 के चुनाव दौरान ही उनकी हत्या हो गई और उनकी चरण पादुका लेकर आये उनके सखा कैप्टन सतीश शर्मा को भी हाथों हाथ लिया लेकिन अगले चुनाव में भाजपा के डा0 संजय सिंह से हार गये। अगले चुनाव में श्रीमती सोनिया गांधी क

विश्वास-अविश्वास के भँवर में फंसी केजरीवाल-कुमार की आप !

  राजनीति में भी शतरंज की तर्ज पर बिसात बिछती है,और शह-मात शुरू हो जाता है। इस समय ये खेल आम आदमी पार्टी में पूरे शबाब पर है। इसके शीर्ष नेताओं में एक दूसरे को मात देने में जुटे हुए है। आज स्थिति ये है कि आप का विश्वास अब अविश्वास में बदल चुका है, ये मैं नही कह रहा हूँ। ये तो आप के नेताओं के विचार हैं। आप के संस्थापकों में से एक डॉ0 कुमार विश्वास पर पार्टी के एक वर्ग  का मानना कि वे एक डेढ़ साल से वो पार्टी लाइन से हटे हुए हैं। और पार्टी संयोजक अरविन्द केजरीवाल पर हमलावर रहे। उधर कुमार विश्वास व उनके समर्थकों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल ने कुमार के साथ विश्वासघात किया है, इतना ही नही अपना पार्टी में वर्चस्व बनाने के लिए आप के संस्थापक सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं, इसी कड़ी का एक हिस्सा कुमार विश्वास भी हैं। जो भी हो आप की आपसी लड़ाई एक और टूट की ओर बढ़ रही है। प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, किरण बेदी,कपिल मिश्रा जैसे नेताओं की बगावत ने पार्टी की नीतियों और पार्टी संयोजक की कार्यशैली पर अवश्य प्रश्नचिन्ह लगा है। अब बात करते हैं डॉ0 कुमार विश्वास की जिन पर पार्टी लाइन से हट

नववर्ष की शुभकामनाएं

मेरी तरफ नवर्ष 2018 की सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं, 💐  आपका नववर्ष मंगलमय हो💐