देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी सीबीआई यानि कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की साख उसके ही टॉप लेबल के दो बड़े ऑफिसरों के कारण कसौटी पर कसी जा रही है। ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो। हमारे देश हर नागरिक को न्याय मिलने का अगर सबसे विश्वासनीय जाँच एजेंसी मानता है तो वो सीबीआई को सर्वोपरि रखता है। आजादी से छः वर्ष पूर्व 1941 में इसका गठन हुआ था । दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम1946 के तहत इसका पुर्नगठन 1963 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो यानी सीबीआई के रूप में अवतरित हुई जो कि अपराध, भ्रष्टाचार व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर जांच करने का कार्य निरन्तर रूप से करती आ रही है। और अपराधियों को अपनी ही अदालत में मुकदमा चला कर सजा देने का भी कार्य बड़ी निष्पक्षता से करती आ रही है। और जनता के दिलों में विश्वास की कसौटी पर खरा उतरती रही है। लेकिन जिस प्रकार सीबीआई के डाइरेक्टर आलोक वर्मा व स्पेशल डाइरेक्टर राकेश अस्थाना एक-दूसरे आरोप-प्रत्यारोप की जंग छेड़ दिया है, इस प्रकरण से सीबीआई के साख पर आंच आना तय है । सीबीआई की आपसी लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट से राजनीतिक अखाड़े तक पहुँच गया। इतना ही नहीं इस मामले को राहुल गांधी ने राफेल से जोड़ते हुए और गर्माने का कार्य कर दिया कि सीबीआई डाइरेक्टर ने रॉफेल सौदे के जांच की बात जैसे किया वैसे ही उनपर आरोप मढ़कर हटा दिया गया है। चार दिनों से चल रहे इस घटना क्रम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संज्ञान लेते हुए सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया गया।
सीबीआई डाइरेक्टर आलोक वर्मा व स्पेशल डाइरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी भेज दिया और 13 अधिकारियों के तबादले कर दिए गए हैं। भारत सरकार की तरफ से इस बात पर अपना पक्ष रखते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा सीबीआई की संस्थागत ईमानदारी और विश्वसनीयता को कायम रखने के लिए इसके निदेशक और विशेष निदेशक को हटाने का फैसला लिया गया। और जिससे मामले की निष्पक्ष जाँच हो सके। अब इसी बात को लेकर विपक्ष भी सरकार पर हमलावर हो चुका है। क्योंकि ये मौका हाथ से जाने नही देना चाहती है। हो भी क्यों न आखिर पांच राज्यों का चुनाव एवम् अगले वर्ष लोकसभा चुनाव जो है। विपक्ष का कहना है कि सीवीसी द्वारा सीबीआई के भ्रष्टाचार मामले की जाँच नही करनी चाहिये। जबकि 1964 में सीवीसी का गठन ही इसलिए किया गया कि केंद्र की विभिन्न विभागों के भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करेगी। उनका कहना है कि सरकार इस तरह डाइरेक्टर नही बदल सकते हैं, क्योंकि 2013 में लोकायुक्त कानून के तहत तीन सदस्यीय समिति का गठन हुआ था जिसमें प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नियुक्त अन्य जज व प्रतिपक्ष के नेता शामिल होते हैं ,जो डाइरेक्टर की नियुक्त करते हैं। इसलिए इन्हें हटाने में भी समिति की सहमति होनी जरूरी है। फिलहाल इस कार्यवाही से सरकार भी कठघरे में है। वही नए डाइरेक्टर एम0नागेश्वर राव ने भी बीती रात अपने विभाग के आलोक वर्मा व राकेश अस्थाना के कमरों को सील कर दिया है। इस प्रकरण से सीबीआई व सरकार दोनों की किरकिरी हो रही है। जिस संस्थान पर लोगों ये भरोसा था कि किसी भी गंभीर मामले पर कहते नही थकते कि इस मामले की सीबीआई जाँच करा लिया जाय । आज उसी संस्थान पर घूसखोरी का आरोप लग रहे हैं । एक अधिकारी दूसरे अधिकारी को भ्रष्ट बता रहा है, इस दुःखद बात और क्या हो सकती है।जनता के मनोभावों पर इस प्रकरण का राजनीतिकरण करना और चोट पहुँच रहा है। ये कोई छोटी मोटी घटना है ,ये विश्वास पर बड़ा आक्षेप है। लोकतंत्र की सबसे पाक मानी जाने वाली जाँच एजेंसी की साख आज कसौटी पर है। पहले भी इस आरोप लगते थे। सीबीआई को बंद पिंजरे में तोता की उपमा तक दी जा चुकी है। इस बात से बहुत सारे राजनीतिक जानकार सहमत हैं क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से सीबीआई में सत्ताधारी दलों के हस्तक्षेप बढे हैं। ये आरोप बीजेपी ही नही कांग्रेस पर इसके दुरुपयोग के आरोप लग चुके हैं। सरकार निष्पक्ष व विपक्ष सरकार की कठपुतली के रूप में सीबीआई को पेश करती आ रही है। जिस आलोक वर्मा के चयन पर विपक्ष ने सवाल उठाये थे आज वही आलोक वर्मा के पक्ष में प्रेसवार्ता करते हुए उनकी पैरवी कर रहे हैं। यही ताकत है कि आलोक वर्मा अब सुप्रीम कोर्ट की शरण में हैं। उनका कहना है समिति ने चुना है उसे ही हटाने का अधिकार है लेकिन वो भी 02 वर्ष से पहले नही हटा सकती है क्योंकि ये प्राविधान है।फिलहाल जो भी हो देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी पर इस वाकये से प्रश्नचिन्ह अवश्य लग गया है। सीबीआई की विश्वासनीयता , प्रतिष्ठा व साख सबकुछ तो दांव पर लग गया है। भ्रष्टाचार रूपी दानव जनता सीबीआई रूपी विश्वासनीयता को निगलने को तैयार बैठा है। अब एक ही रास्ता बचा है दोनों अधिकारियों की निष्पक्ष जाँच करा कर दोषी को दण्डित कर जनता में एक बार फिर विश्वास जगाने कार्य सभी जिम्मेदार संस्थाये करें ,और इस मुद्दे पर राजनीति न हो।क्योंकि ये जनमानस की भावनाओं से जुड़ा प्रकरण है।
@NEERAJ SINGH
बढ़िया..👍
जवाब देंहटाएं😊
हटाएंSahi kaha aapne CBI ke sakh par sawal uth Raje hain.
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