जाति-धर्म के फैक्टर में, कोई नहीं है टक्कर में....उक्त स्लोगन आज की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय बिल्कुल सटीक बैठता है I विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में वर्तमान में जिस तरह की राजनीति चल रही है ,आने वाले समय में विषम परिस्थितियों को आमंत्रित करने का कार्य किया जा रहा है I जो न तो लोकतंत्र के सेहत के लिए ठीक होगा न ही आवाम के लिए ही हितकारी होगा I हमारे राजनीतिक दलों के आकाओं को भी चिन्तन करने की जरूरत है कि सत्ता के लिए ऐसी ओछी राजनीति कर देश की स्थिरता को संकट में डालने का कार्य कर रहे हैं I देश के बड़े-बड़े अलम्बरदार माइक सम्हालते ही सबसे बड़े देश-भक्त बन जाते हैं I लेकिन चुनाव आते ही वोट पहले और देश बाद में होता है I मंचों पर जो विचारधारा प्रस्तुत करते हैं ,वो चुनावी रणनीति में बदल जाती है I बस एक ही एजेंडा होता है जीत सिर्फ जीत इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं I पार्टी का सिद्धांत तो तेल लेने चला जाता है I अभी हाल के दिनों में कुछ राजनीतिक घटनाओं में उक्त झलक दिखी I पंजाब, उत्तर प्रदेश में 2022 में चुनाव होने हैं I जातिगत आधार पर राजनीति शुरू हो गयी है I यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार में इसकी झलक देखने को मिली ,जब ब्राह्मण, ओबीसी व एससी को मंत्री बना कर वोटों की राजनीतिक समीकरण साधने की कोशिश की जा रही है I जरा गौर करने की बात है कि बीजेपी वहीं पार्टी जो अपने को सबसे बड़ी देशभक्ति पार्टी मानती है I और वोट के लिए जाति पर उतर आती है I अब बात करें देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को जो अपने को धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहती है I जाति धर्म की राजनीति से उठकर कार्य करने का दम भरती है I और पंजाब में मंत्री तो दूर सीधे एससी मुख्यमंत्री बना कर बीजेपी को संदेश दे डाला कि हम किसी से कम नहीं हैं I गुजरात में जिगनेश जैसे जातीय नेताओं को अपनी पार्टी में मिलाने की फिराक में हैं I कन्हैया कुमार कामरेड से कांग्रेसी बन चुके हैं I और कहते हैं कि कांग्रेस को बचाने का काम करना है I फिलहाल समय बतायेगा ये पार्टी को बचाते हैं या फिर डुबाने का कार्य करते हैं I आजकल सारी पार्टी सिर्फ धर्म जाति की राजनीति में सक्रिय है I इससे देश को कितना नुकसान हो रहा है, कोई भी मतलब नहीं है I सिर्फ एक लक्ष्य वोट की गणित बैठा कर गद्दी हासिल करना भर रह गया है I धर्म की राजनीति करने वाली बीजेपी ओबीसी आरक्षण में पिछड़ी ,अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दों को हवा दे रही है I सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों ने जातीय सम्मेलन कर रही हैं I जब बड़े बड़े दल संकुचित सोच की राजनीति कर रहे हैं , तो क्षेत्रीय दलों को कुछ कहना उचित नहीं है I क्योंकि उनका जन्म ही क्षेत्र व जाति के आधार पर हुआ है I इस प्रकार की परंपरा समाज को जोड़ने का काम नहीं, बल्कि तोड़ने की है, जोकि लोकतंत्र की मजबूती को खोखला कर रही है I सरदार बल्लभ भाई पटेल ने आज़ादी के बाद देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया था I आज उन्हीं अनुयायियों द्वारा जाति धर्म की राजनीति कर उसी धागे को कमज़ोर करने का कुत्सित प्रयास हो रहा है I हमें गैरों से नहीं अपनों से खतरा बना हुआ है I इस ज्वलन्त मुद्दे पर देशवासियों को सोचना होगा I वरना बाहरी शक्तियों को बल मिलेगा I
*जय हिंद ,जय भारत*
@NEERAJ SINGH
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