सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

यूपी चुनाव ने गढ़े नये आयाम

 


यूपी में का ....बा ! यूपी में बाबा ... जैसे गीतों की धुन विधानसभा चुनाव 2022 में खूब चले अरे उठापटक के बीच आखिरकार विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ I एक बार फिर योगी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने जा रही है I संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अनेकानेक सवाल भी अपने पीछे छोड़ कर गया है I इस बार यह चुनाव धर्म जाति पर लड़े या फिर राष्ट्रवाद सुरक्षा सुशासन महंगाई बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चुनाव हुए ? राजनीतिक दलों ने मुद्दे तो खूब उठाएं धर्म जाति दोनों पिचों पर दलों ने जम कर बैटिंग किया चुनाव की शुरुआत में जिन्ना का प्रवेश हुआ हिंदुत्व मुद्दा बना कई दलों में मुस्लिम हितैषी बनने को लेकर होड़ मची दिखी चुनाव का अंत में EVM पर आकर टिक गया I चुनाव काफी दिलचस्प रहा लोगों में अंत तक कौतूहल बना हुआ था कि किसकी सरकार बनेगी I फिलहाल योगी सरकार बन ही गई इस चुनाव में सभी मुद्दों दोही मुद्दे सफल हुए जिसमें राशन व सुशासन I ये सभी मुद्दों पर भारी रहे I पश्चिम उत्तर प्रदेश में सुशासन तो पूर्वी में राशन का प्रभाव दिखा I इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय का एक तरफा वोटिंग ने समाजवादी पार्टी को 125 सीटों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई I इसी का परिणाम था कि कांग्रेस व बसपा पूरे प्रदेश में दहाई भी नहीं पहुंच सकी I पूरे प्रदेश में भाजपा व सपा में सीधी टक्कर हुई I भाजपा को सामन्य जाति, दलित जाति के साथ-साथ पिछड़ा वर्ग का भी साथ मिला I वहीं सपा को मुस्लिम व यादव वर्ग my फ़ार्मूला जबरदस्त मिला I लेकिन अन्य ने साथ छोड़ दिया I भाजपा की जीत में महिलाओं का अहम रोल रहा I करीब 16% महिलाओं ने योगी व भाजपा का साथ दिया और पार्टी को बड़ी जीत दिलाई I ये तो पक्का है कि योगी-मोदी का जादू एक बार फिर जनता के सिर चढ़कर बोला है I जनता को को विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान योगी-मोदी ही करेंगे I चाहे आवारा पशुओं की समस्या हो या फिर मंहगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे हों। इससे योगी सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ गई है I इस सरकार आने से अनेक मिथक भी टूटे जैसे सरकार का दोबारा ना आना ,मुख्यमंत्री का नोयडा जाने पर सरकार में ना आना जैसे मिथक इस बार के परिणाम ने धो ड़ाला है I ये तय हो गया कि विशेष जाति सम्प्रदाय के बल पर सरकार नहीं बनती है I जबतक सभी वर्गों का समर्थन ना मिले I इस बार जाति, धर्म मुख्य मुद्दा नहीं बना I 25 मार्च को 70 हज़ार लोगों के बीच इकाना स्टेडियम लखनऊ में योगी आदित्यनाथ दूसरी बार शपथ ग्रहण ले रहे हैं I इस चुनाव ने अखिलेश यादव को भी एहसास दिला दिया कि हाई प्रोफाइल नहीं जमीनी राजनीति से बात बनेगी I शायद यही कारण है कि इस बार विधानसभा में रहकर अंदर व बाहर जनता की आवाज बनने का मन बनाया और लोकसभा से इस्तीफा दे कर विधानसभा में रहकर जिम्मेदार विपक्ष के नेता के रूप में भूमिका निभाने का मन बना लिया है I ये भी सही है कि लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की अहम भूमिका होती है I इस बार सब कुछ बा मजबूत सत्ता है तो दूसरी तरफ मजबूत विपक्ष बा I इस चुनाव में जनता ने बड़े बड़ों को सबक सिखा दिया I दलबदल नेताओं की तो जमकर ख़बर ली, जिसमें अधिकांश चुनाव हार बैठे। रही बात मुद्दे की तो सभी मुद्दों पर बाबा का बुलडोजर जनता पर हावी रहा I अखिलेश के my (मुस्लिम-यादव) फ़ार्मूला पर बीजेपी का my (मोदी-योगी) फ़ार्मूला भारी पड़ा I फिलहाल चुनाव संपन्न हो चुका है। पक्ष-विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी बढ़ गई है I ये चुनाव सिर्फ विधानसभा का ही नहीं, लोकसभा चुनाव -2024 से पूर्व का सेमीफाइनल के रूप में राजनीति के जानकार देखते हैं I क्योंकि केंद्र में बनने वाली सरकार का रास्ता इसी राज्य यूपी से होकर गुजरता है I

@NEERAJ SINGH 


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आओ मनाएं संविधान दिवस

पूरे देश में  संविधान दिवस मनाया जा रहा है। सभी वर्ग के लोग संविधान के निर्माण दिवस पर अनेकों ने कार्यक्रम करके संविधान दिवस को मनाया गया। राजनीतिक पार्टियों ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की चित्र पर माल्यार्पण कर संगोष्ठी कर के संविधान की चर्चा करके इस दिवस को गौरवमयी बनाने का का प्रयास किया गया। प्रशासनिक स्तर हो या  फिर विद्यालयों में बच्चों द्वारा शपथ दिलाकर निबंध लेखन चित्रण जैसी प्रतियोगिताएं करके दिवस को मनाया गया। बताते चलें कि 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान मसौदे को अपनाया गया था और संविधान लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ था। संविधान सभा में बनाने वाले 207 सदस्य थे इस संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी थे। इसलिए इन्हें भारत का संविधान निर्माता भी कहा जाता है । विश्व के सबसे बड़े संविधान को बनाने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को समिति की स्थापना हुई थी । जिसकी अध्यक्षता डॉ भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में समिति गठित गठित की गई थी । 19 नवंबर 2015 को राजपत्र अधिसूचना के सहायता से

एक कानून दो व्यवस्था कब तक !

हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर  आमजन  कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर  बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह

अपनो के बीच हिंदी बनी दोयम दर्जे की भाषा !

  हिंदी दिवस पर विशेष---  जिस देश में हिंदी के लिए 'दो दबाएं' सुनना पड़ता है और 90% लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं..जहाँ देश के प्रतिष्ठित पद आईएएस और पीसीएस में लगातार हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ हो रहा अन्याय और लगातार उनके गिरते हुए परिणाम लेकिन फिर भी सरकार के द्वारा हिंदी भाषा को शिखर पर ले जाने का जुमला।। उस देश को हिंदी_दिवस की शुभकामनाएं उपरोक्त उद्गगार सिविल सेवा की तैयारी कर रहे एक प्रतियोगी की है। इन वाक्यों में उन सभी हिंदी माध्यम में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे प्रतिभागियों की है । जो हिन्दी साहित्य की दुर्दशा को बयां कर रहा है। विगत दो-तीन वर्षों के सिविल सेवा के परिणाम ने हिंदी माध्यम के छात्रों को हिलाकर रख दिया है। किस तरह अंग्रेजियत हावी हो रही है इन परीक्षाओं जिनमें UPSC व UPPCS शामिल है इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। हाल ही में दो दिन पूर्व UPPCS की टॉप रैंकिंग में हिन्दी माध्यम वाले 100 के बाहर ही जगह बना पाए । जो कभी टॉप रैंकिंग में अधिकांश हिंदी माध्यम के छात्र सफल होते थे । लेकिन अब ऐसा नही है। आज लाखों हिंदी माध्यम के प्रतिभागियों के भव