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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवन जीने की कला ही जीवन का सार है ....!

                                                                       जीवन का सार शास्त्रों, उपनिषदों बाइबिल,कुरान आदि धार्मिक ग्रंथों में भरा पड़ा है। इसे लेकर अनेक विद्वान व विदुषी अपने विचार रखा है।अरस्तू, प्लेटो जैसे अनेक महान विचारकों में अपने अपने मत दिए हैं। सबके अपने विचार व मत हैं। सच तो ये है जीवन में घटित घटनाओं से जीवन के सार का अर्थ मिलता है और वही सही मनुष्यों को नजरिया प्रदान करता है। जीवन जीने कला है, जीवन एक संघर्ष है, जीवन अनमोल है न जाने किन किन वाक्यों से जीवन को अभिभूत किया जाता है। मेरा मानना ये कतई नही है कि ये सारी बातें गलत हैं। मैं तो अपने  नजरिये से जीवन को देखता हूँ।जीवन के सार की व्याख्या श्रीमद्भागवत गीता में है जिसमें न केवल धर्म का उपदेश देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। गीता के उपदेशों पर चलकर न केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं। ऐसे ही वर्तमान जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से लडऩे के लिए मनुष्य को गीता में बताए ज्ञान की तरह आचरण करना

सत्ता की बेदी पर जवानों की बलि....!

एक कहावत याद आ रही हम्माम में सभी नंगे होते हैं। इस कहावत को चरितार्थ कर रही हमारे देश की सत्ता लोलुप राजनीतिज्ञ। कोई भी ऐसी पार्टी नही है , जो सत्ता की कुर्सी से पहले देश हित की बात करती हो । देश की राजनीति जैसे दिशा व दशा दोनों बदलती जा रही है। अल्पसंख्यक समुदाय को रिझाने के लिए टोपी पहनी जाती है,नमाज पढे जाते हैं, रोजा खोले जाते हैं । वहीं बहुसंख्यक को रिझाने के लिए तिलक लगाना,दर्शन करना, पूजन किया जाता है। ये सब करना गलत नही है,लेकिन वोट लिए दिखावा करना बिल्कुल गलत है। राजनेताओं का तुष्टीकरण की नीति अपनाना बेहद निंदनीय कृत्य है, पर सबकुछ हो रहा है। लेकिन अपने को राष्ट्र वादी पार्टी का दम्भ भरने वाली केंद्र की सत्ता ने अक्सर आतंकियों का मुखाल्फत करने वाली जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा के अनर्गल फैसले पर मुहर लगाकर सत्ता की बेदी पर जवानों की बलि चढाने जैसा घृणित निर्णय लिया है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रमजान के महीने में आतंकियों व पत्थरबाजों के खिलाफ कार्यवाही रोकने की बात कही है। इस निर्णय के ठीक दो घण्टे के अंदर आतंकी हमला हो गया। पाक ने सीजफायर का उलंघन चालू है।  

दुश्मनों पर रहम का अनर्गल प्रलाप क्यों .....!

कश्मीर को आतंकी पंजे से मुक्त करने में लगे सेना के जवानों की मुहिम रंग लाने लगी है। कश्मीर की जम्हूरियत को शांति का सकून दिलाने की ओर अग्रसर भारतीय फौज के जवानों के मनोबल तोड़ने की साजिश के तहत प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का बयान आया है। उनका कहना है कि जिस प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी रमजान के मौके पर सीजफायर का ऐलान किया था उसी तर्ज पर इस बार भी रमजान के मौके पर आतंकियों के खिलाफ चल रहे मुहिम को रोक दिया जाना चाहिए। ये बयान कहाँ तक उचित है कि जो गलती पिछली सरकारों की हैं, उसी गलती को पुनः दोहराना कितना सही है,बजाय सबक लेने के! जब बाजपेयी सरकार ने सीजफायर करने का ऐलान किया था ,ठीक उसी दरम्यां जमकर सीजफायर का उलंघन आतंकी गतिविधियों में इजाफा भी हुआ था। एक बार फिर वही गलती दोहराने के संबंध में महबूबा मुफ़्ती का बयान नाकाबिले तारीफ है। अब जब कि घाटी में सेना की आतंक़ियों के खिलाफ चल रही ताबड़तोड़ एनकॉउंटर की कार्यवाही दहशतगर्दी की कमर तोड़कर रख दिया है। घाटी में बुरहान वानी से लेकर अनेक कमांडर सेना व पुलिस की  कार्यवाही में मारे जा चुके हैं। लेकिन रमजान के पाक महीने