सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दुश्मनों पर रहम का अनर्गल प्रलाप क्यों .....!


कश्मीर को आतंकी पंजे से मुक्त करने में लगे सेना के जवानों की मुहिम रंग लाने लगी है। कश्मीर की जम्हूरियत को शांति का सकून दिलाने की ओर अग्रसर भारतीय फौज के जवानों के मनोबल तोड़ने की साजिश के तहत प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का बयान आया है। उनका कहना है कि जिस प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी रमजान के मौके पर सीजफायर का ऐलान किया था उसी तर्ज पर इस बार भी रमजान के मौके पर आतंकियों के खिलाफ चल रहे मुहिम को रोक दिया जाना चाहिए। ये बयान कहाँ तक उचित है कि जो गलती पिछली सरकारों की हैं, उसी गलती को पुनः दोहराना कितना सही है,बजाय सबक लेने के! जब बाजपेयी सरकार ने सीजफायर करने का ऐलान किया था ,ठीक उसी दरम्यां जमकर सीजफायर का उलंघन आतंकी गतिविधियों में इजाफा भी हुआ था। एक बार फिर वही गलती दोहराने के संबंध में महबूबा मुफ़्ती का बयान नाकाबिले तारीफ है। अब जब कि घाटी में सेना की आतंक़ियों के खिलाफ चल रही ताबड़तोड़ एनकॉउंटर की कार्यवाही दहशतगर्दी की कमर तोड़कर रख दिया है। घाटी में बुरहान वानी से लेकर अनेक कमांडर सेना व पुलिस की  कार्यवाही में मारे जा चुके हैं। लेकिन रमजान के पाक महीने से पूर्व इस तरह की मांग ने राजनीतिक हलके में बहस का मुद्दा बन कर उभरा है। थलसेनाध्यक्ष जनरल बीपी सिंह बाकायदा एक बयां दिया है कि इस तरह की मांग अगर केंद्र सरकार मानती है इससे देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा होगा, सेना का मनोबल टूटेगा ,साथ ही आतंकियों को संभलने का मौका मिल जायेगा। इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार को इन पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर इन बयानों की बात करें तो बहुत सी बातें उभर कर सामने आ ही जाती हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली से प्रदेश में चुनी गई सरकार की नुमाइन्दगी करने वाले हुक्मरान ही जब दहशतगर्दी फैलाने वालों के प्रति हमदर्दी होगी , तो उस लोकतांत्रिक राज्य का हाल होगा। वहां की जनता डर,खौफ में जीने के लिए मजूबर होगी, एकदम यही सूरते हाल कश्मीर की घाटियों मे फैल चुका है। और देश का पडोसी मुल्क आतंकियों का पनाहगार बन चुका है। पहले पथराव सेना पर होता था ,लेकिन अब तो सैलानियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, जिसमें एक युवक की मौत भी हो चुकी है। सैलानियों पर पत्थरबाजी करना ठीक उसी प्रकार की कहावत सटीक बैठती है ,जिसमें कहा गया है कि जिस डाल पर बैठे हो, उसी को काटना। यानि कि कश्मीरी अपनी ही रोजी रोटी पर लात मार रहे हैं। अगर सैलानी कश्मीर नही घूमने आते हैं, तो लोग बेरोजगार होंगे,खाने पीने के लाले पड़ जाएंगे। ये जो भी घटनाएं घाटी में हो रही है इसके पीछे पाकिस्तान के साथ अलगाव वादी संगठनों की सुनियोजित चाल है।जिसमें यहाँ के लोग बेरोजगार होंगे और इनका इस्तेमाल कश्मीर में अराजकता फ़ैलाने में किया जा सके। कश्मीर की समस्या को हल करना इतना कठिन भी नहीं है,इसका सबसे बड़ा रोड़ा कश्मीर को लेकर राजनीतिक घटिया सोच भी है। इसी का ताजा नमूना महबूबा मुफ़्ती का बयान है। अमनो चैन की घाटी आज संगीनों के साये में जीने को मजबूर हैं। जिन हाथों में किताबें और कलम होनी चाहिये ,उन हाथों में पत्थर थम दिया गया है।ये सब देख कलेजा फटने लगता है। दुनिया की सबसे खूबसूरत हसीन वादियों गिनी जाने वाली कश्मीर की पहचान अब बदल गई है ,अब इन्हें गोलियों की गूंज और लाशों के ढेर लगाने वाले दहशतगर्दों से होने लगी है। होंगी भी क्यों नही जब तक आतंक व अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली सरकारें बनती रहेंगी । पीडीपी हो या फिर नेशनल कांफ्रेंस पार्टी ये सभी दहशतगर्दी को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर सत्ता पर काबिज होती रही हैं। यही कारण है कि आतंक की जडें जमी हैं।जो कि कश्मीर की इंसानियत और जम्हूरियत दोनों को खतरा पैदा कर रखा है। दहशत के इन गुर्गों का सेना जो  मजम्मत कर रही है, काबिले तारीफ़ है। जिसे बद्दूस्तर जारी रखना आवश्यक है। फिलहाल केंद्र सरकार मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बयान को जरा भी तवज्जो नही दिया है। आतंक परस्त सरकार को समझना आवश्यक है कि यहाँ का कानून ऐसी हरकतों को कतई बर्दाश्त नही करेगी। इसलिये इन्हें अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है ,क्यों देशभक्ति व आतंक परस्ती एक साथ नही चलने वाली है । 
@नीरज सिंह

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक कानून दो व्यवस्था कब तक !

हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर  आमजन  कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर  बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह

आओ मनाएं संविधान दिवस

पूरे देश में  संविधान दिवस मनाया जा रहा है। सभी वर्ग के लोग संविधान के निर्माण दिवस पर अनेकों ने कार्यक्रम करके संविधान दिवस को मनाया गया। राजनीतिक पार्टियों ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की चित्र पर माल्यार्पण कर संगोष्ठी कर के संविधान की चर्चा करके इस दिवस को गौरवमयी बनाने का का प्रयास किया गया। प्रशासनिक स्तर हो या  फिर विद्यालयों में बच्चों द्वारा शपथ दिलाकर निबंध लेखन चित्रण जैसी प्रतियोगिताएं करके दिवस को मनाया गया। बताते चलें कि 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान मसौदे को अपनाया गया था और संविधान लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ था। संविधान सभा में बनाने वाले 207 सदस्य थे इस संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी थे। इसलिए इन्हें भारत का संविधान निर्माता भी कहा जाता है । विश्व के सबसे बड़े संविधान को बनाने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को समिति की स्थापना हुई थी । जिसकी अध्यक्षता डॉ भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में समिति गठित गठित की गई थी । 19 नवंबर 2015 को राजपत्र अधिसूचना के सहायता से

अपनो के बीच हिंदी बनी दोयम दर्जे की भाषा !

  हिंदी दिवस पर विशेष---  जिस देश में हिंदी के लिए 'दो दबाएं' सुनना पड़ता है और 90% लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं..जहाँ देश के प्रतिष्ठित पद आईएएस और पीसीएस में लगातार हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ हो रहा अन्याय और लगातार उनके गिरते हुए परिणाम लेकिन फिर भी सरकार के द्वारा हिंदी भाषा को शिखर पर ले जाने का जुमला।। उस देश को हिंदी_दिवस की शुभकामनाएं उपरोक्त उद्गगार सिविल सेवा की तैयारी कर रहे एक प्रतियोगी की है। इन वाक्यों में उन सभी हिंदी माध्यम में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे प्रतिभागियों की है । जो हिन्दी साहित्य की दुर्दशा को बयां कर रहा है। विगत दो-तीन वर्षों के सिविल सेवा के परिणाम ने हिंदी माध्यम के छात्रों को हिलाकर रख दिया है। किस तरह अंग्रेजियत हावी हो रही है इन परीक्षाओं जिनमें UPSC व UPPCS शामिल है इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। हाल ही में दो दिन पूर्व UPPCS की टॉप रैंकिंग में हिन्दी माध्यम वाले 100 के बाहर ही जगह बना पाए । जो कभी टॉप रैंकिंग में अधिकांश हिंदी माध्यम के छात्र सफल होते थे । लेकिन अब ऐसा नही है। आज लाखों हिंदी माध्यम के प्रतिभागियों के भव