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जीवन जीने की कला ही जीवन का सार है ....!

                                                                     
जीवन का सार शास्त्रों, उपनिषदों बाइबिल,कुरान आदि धार्मिक ग्रंथों में भरा पड़ा है। इसे लेकर अनेक विद्वान व विदुषी अपने विचार रखा है।अरस्तू, प्लेटो जैसे अनेक महान विचारकों में अपने अपने मत दिए हैं। सबके अपने विचार व मत हैं। सच तो ये है जीवन में घटित घटनाओं से जीवन के सार का अर्थ मिलता है और वही सही मनुष्यों को नजरिया प्रदान करता है। जीवन जीने कला है, जीवन एक संघर्ष है, जीवन अनमोल है न जाने किन किन वाक्यों से जीवन को अभिभूत किया जाता है। मेरा मानना ये कतई नही है कि ये सारी बातें गलत हैं। मैं तो अपने  नजरिये से जीवन को देखता हूँ।जीवन के सार की व्याख्या श्रीमद्भागवत गीता में है जिसमें न केवल धर्म का उपदेश देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। गीता के उपदेशों पर चलकर न केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं। ऐसे ही वर्तमान जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से लडऩे के लिए मनुष्य को गीता में बताए ज्ञान की तरह आचरण करना चाहिए। इससे वह उन्नति की ओर अग्रसर होगा। गीता में लिखा है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं। जब तर्क नष्ट होते हैें तो व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है। इससे वह इच्छित फल की प्राप्ति कर सकता है। मन पर नियंत्रण करना बेहद आवश्यक है। जो व्यक्ति मन पर नियंत्रण नहीं कर पाते, उनका मन उनके लिए शत्रु का कार्य करता है।
व्यक्ति को आत्म मंथन करना चाहिए। आत्म ज्ञान की तलवार से व्यक्ति अपने अंदर के अज्ञान को काट सकता है। जिससे उत्कर्ष की ओर प्राप्त होता है। मुनष्य जिस तरह की सोच रखता है, वैसे ही वह आचरण करता है। अपने अंदर के विश्वास को जगाकर मनुष्य सोच में परिवर्तन ला सकता है। जो उसके लिए काल्याणकारी होगा। में जीवन की व्याख्या करते हुए श्री कृष्ण भगवान ने कहा है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे उसके अनुरूप ही फल की प्राप्ति होती है। इसलिए सदकर्मों को महत्व देना चाहिए। मन चंचल होता है, वह इधर उधर भटकता रहता है। लेकिन अशांत मन को अभ्यास से वश में किया जा सकता है। मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे तो उसे सफलता प्राप्त होती है।प्रकृति के विपरीत कर्म करने से मनुष्य तनाव युक्त होता है। यही तनाव मनुष्य के विनाश का कारण बनता है।  धर्म व कर्म से ही तनाव से मुक्त मिलना संभव है।  कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति कार्य में निष्क्रियता देखता है। यही उत्तम रूप से कार्य करने का साधन है। क्योंकि इसे देखने पर ही सक्रियता और बढ़ती है। मनुष्य योनि को भगवान की सबसे सुंदर रचना मानी जाती है। ये हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है। इसलिये जीवन जीने के इस महत्वपूर्ण समय अच्छे से व्यतीत करना चाहिये और धर्म कर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। यही सच्चा जीवन का सार है।
@NEERAJ SINGH

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