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अक्तूबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कसौटी पर सीबीआई की साख !

देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी सीबीआई यानि कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की साख उसके ही टॉप लेबल के दो बड़े ऑफिसरों के कारण कसौटी पर कसी जा रही है। ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो। हमारे देश हर नागरिक को न्याय मिलने का अगर सबसे विश्वासनीय जाँच एजेंसी मानता है तो वो सीबीआई को सर्वोपरि रखता है। आजादी से छः वर्ष पूर्व 1941 में इसका गठन हुआ था । दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम1946 के तहत इसका पुर्नगठन 1963 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो यानी सीबीआई के रूप में अवतरित हुई जो कि अपराध, भ्रष्टाचार व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलुओं  पर जांच करने का कार्य निरन्तर रूप से करती आ रही है। और अपराधियों को अपनी ही अदालत में मुकदमा चला कर सजा देने का भी कार्य बड़ी निष्पक्षता से करती आ रही है। और जनता के दिलों में विश्वास की कसौटी पर खरा उतरती रही है।  लेकिन जिस प्रकार सीबीआई के डाइरेक्टर आलोक वर्मा व स्पेशल डाइरेक्टर राकेश अस्थाना एक-दूसरे आरोप-प्रत्यारोप की जंग छेड़ दिया है, इस प्रकरण से सीबीआई के साख पर आंच आना तय है । सीबीआई की आपसी लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट  से राजनीतिक अखाड़े तक पहुँच गया। इतना ही नहीं इस मामले

वूमेन, टू मी कैम्पेन का सामाजिक असर !

                                                                                                                                                                                                          आजकल दुनिया के एक कोने से चली हवा अब सुनामी का रूप ले चुकी है। इस सुनामी का नाम रखा गया मी टू । ये समुद्रीय तटों पर असर नही डाल सका पर सामाजिक ढांचों को जरूर हिला कर रख दिया है। समाज में पुरुषों से पीड़ित महिलाओं को टू मी कैम्पेन से एक नई रोशनी अवश्य दिखी है,लेकिन इनके लिए कितना कारगर साबित होगा ये आंदोलन वक्त ही तय कर पायेगा। अनेक जानकारों का मानना है कि ये आंदोलन ज्यादा समय तक चलना संशय के घेरे में है। इसका असर सबसे पहले विश्व सबसे पॉवरफुल देश अमेरिका में दिखा जब राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने अपने द्वारा नियुक्त जज के मी टू में फसने पर जांच के आदेश देने पड़े ,भले ही इस मामले जज दोषमुक्त हुए और अपना कार्यभार पुनः संभाला। इस आंदोलन की आग में अनेक देशों में खलबली मचा रखी है। भारत में भी मी टू ने देश के नामचीन हस्तियों के जीवन में सुनामी ला दिया है। उनका वर्षों की मेहनत से खड़ा किया हुआ

राफेल डील, बोफोर्स काण्ड की पुनरावृत्ति तो नहीं!

  देश की राजनीति में राफेल डील को लेकर घमासान मचा हुआ है । आए दिन नए खुलासे किए जा रहे हैं , उनका खंडन भी हो रहा है । एक अहम् सवाल यह है कि राहुल की कांग्रेस 2019 लोकसभा के चुनाव बोफोर्स सौदा साबित कर सकेंगे ! राफेल के सहारे ही अपनी चुनावी वैतरणी पार कर लेंगे बी पी सिंह की तरह,इनकी यह मुहिम सफल होगी ! स्व0 राजीव गांधी जी को 1989 के लोकसभा चुनाव में हारना पड़ा था और उन पर बोफोर्स तोप सौदा भारी पड़ा था । बी पी सिंह प्रधानमंत्री तो  गए थे,लेकिन जिस रूप बोफोर्स को  घटिया  किस्म का तो बता रहे थे, वही घटिया बोफोर्स तोप ने ही कारगिल की लड़ाई को जीत में बदला था। दशौल्ट कंपनी के साथ राफेल के लिए किए गए सौदे के बाद से ही राहुल गांधी इस मुद्दे को हर हाल में आगामी लोकसभा व पांच राज्यों के चुनाव में बनाने का पूरी कोशिश कर रहे हैं । कई बार उन्होंने मीडिया और रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चोर और भ्रष्ट कहने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं ।इसके पलटवार में भाजपा ने भी गांधी परिवार को भ्रष्ट सिद्ध करने में कोई कसर नहीं रखना चाहती है। अब बात करें राफेल सौदे की 36 राफेल विमानों के सौदे पर 23 सित

ये दोस्ती हम नही छोड़ेंगे......

उक्त गीत की लाइन मशहूर फिल्म शोले की है । जिसमें दो दोस्त जय व बीरू अपनी दोस्ती की कसमें खाते हैं,और ये गीत गुनगुनाते हुए दिखते हैं। ठीक उसी प्रकार भारत और रूस के बीच की दोस्ती भी किसी भी कीमत पर ना टूटने पाये, इसके लिए दोनों देश के सरकारें हर कुर्बानी देने के लिये तैयार रहती हैं। दशकों के पुराने रिश्ते को एक बार फिर मजबूत करने के लिए रशियन राष्ट्रपति आज दो दिन के भारत के दौरे पर हैं। वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत जैसे विकासशील देशों को अमेरिका और रूस जैसी विकसित महाशक्तियों की जरूरत है । भारत को वायु रक्षा प्रणाली की जरूरत है जो कि राष्ट्रपति पुतिन इसी दौरे में इसे लेकर समझौता करने वाले है। लेकिन ट्रम्प सरकार आने के बाद 50 व 60 के दशक जैसे हालात बन गए हैं । एक प्रकार से शीत युद्ध जैसा माहौल विश्व में बन चुका है । आज देश दो गुटों में बंटा हुआ दिख रहा है।एक तरफ की अगुवाई अमेरिका कर रहा है तो दूसरी तरफ की अगुवाई रूस कर रहा है। इन दोनों महा शक्तियों के बीच बीच में विकासशील व गरीब देश पिस रहे हैं ।आज भारत जैसे देशों को दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने की कठिन चुनौती सामने  है । अगर दे