सामाजिक न्याय व समरसता का ढिंढोरा पीटने वाले राजनीतिक दल पहले तो सवर्णों को आरक्षण के जाल में उलझा कर रखने और अब एससी एसटी एक्ट के बहाने उन्हें और प्रताड़ित कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का एक और जरिया ढूंढ लिया है । जिस तरह भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का कृत्य किया है । इसे भी जातीय राजनीति करने वालों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी क्षेत्रीय दलों की श्रेणी में शामिल हो गई है ,जो कि क्षेत्रवाद और जातिवाद की राजनीति करते हैं। बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने संविधान में आरक्षण को 10 वर्ष के लिए लागू किया किया था। जिसकी उस समय सामाजिक समरसता लाने की व अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए अति आवश्यकता थी। इस अधिनियम को समय-समय पर हर 10 वर्ष पर आगे बढ़ाया गया ,जो कि तर्कसंगत भी है । लेकिन अब इसका भी दुरुपयोग होने लगा है , क्योंकि इसका लाभ क्रीमी लेयर के लोग भी उठा रहे हैं । इसलिए काफी समय से मांग उठ रही है कि इसे गरीबी के आधार पर लागू किया जाए । लेकिन राजनीतिक दल अपनी वोट की राजनीति के खातिर सभी वर्गों के साथ अन्याय कर रही है। जिसका फायदा सामान्य , पिछड़े व अनुसूचित वर्ग के लोगों को नहीं मिल पा रहा है ।क्योंकि इसका फायदा इन सभी जातियों के अमीर लोगों को ही मिल रहा है । इस पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अब हम बात करते हैं SC /ST एक्ट की जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में एक्ट के तहत आरोपी लोगों के लिए तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा कर पुलिस के उच्चाधिकारी से मामले की तथ्यात्मक जांच कराकर कार्यवाही करने को कहा गया है। इसे लेकर अनेक संगठनों और राजनीतिक दलों ने जमकर हो हल्ला मचाया और बताया कि अनुसूचित वर्ग के लिए बड़ा अन्याय है , इस फैसले को बदलना चाहिए । वहीं भाजपा को लगा कि अनुसूचित वर्ग के वोट पार्टी से फिसलने लगा है । इसलिए उसने आनन-फानन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलते हुए SC/ ST मामले में तत्काल गिरफ्तारी के लिए संविधान संशोधन पास कराया और जिस वर्ग के सहयोग से देश की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा अपने आधारभूत वोट बैंक पर ही चोट पहुंचा दी। इसके पीछे केंद्र सरकार की क्या मंशा है, उसे क्या लाभ होने वाला है 16% जनता के लिए 84% जनता को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। पहले भी एससी एसटी एक्ट विवादों में रहा है । यूपी में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने जब इसे लागू किया था तब उसको शोषित समाज के न्याय का मिलने का बड़ा रास्ता बताया गया था । लेकिन इसका धीरे धीरे न्याय के बजाय सवर्णों के साथ अन्याय का जरिया बन गया । लोग बदले की भावना में अनुसूचित वर्ग के लोग को बरगलाकर अपने विपक्षी को दंडित करने के लिए इसे जरिया बना लिया था । इससे त्रस्त जनता ने मायावती को हटाने का कार्य किया था। बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने इस फैसले को पलट दिया था। और उन्होंने पुलिस के सीओ स्तर के अधिकारी से जांच कराने के बाद दोषी पाए जाने पर ही गिरफ्तारी की जाने का आदेश जारी किया। लेकिन एक बार फिर SC/ST एक्ट को लेकर देश में फिर बहस छिड़ गई है और जगह-जगह आंदोलन शुरू हो गए हैं । एक आधिकारिक सर्वे के मुताबिक एससी एसटी एक्ट के 74 प्रतिशत से अधिक मामले फर्जी पाए गये, उसके बावजूद भी भाजपा सरकार ने संविधान संशोधन करके हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी ने हिंदुओं को ही अनुसूचित बनाम सवर्ण में बांटकर रख दिया है। अगर देखा जाय तो SC/ST Act की अनुसूचित वर्ग का उत्पीड़न रोकने के लिए बना हुआ है। लेकिन इसका दुरुपयोग शुरू हो गया। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए तथ्यपरक जांच के बाद ही गिरफ्तारी की चाहिए। जिसने गलत किया है, उसको दण्डित करने का प्रावधान अवश्य हो। लेकिन एक बेगुनाह भी दंडित न हो। एक सामाजिक दलित चिंतक का कहना था कि सवर्ण अपनी सामन्ती मानसिकता बदले तो इस एक्ट की आवश्यकता ही नही है। तो जिन्हें राजनीतिक व आपसी द्वेष से फंसाया गया और बाद छूट भी गए । उनको कौन सी मानसिकता बदलनी होगी। फिलहाल बीजेपी के अंदर भी इस फैसले को लेकर विरोध के स्वर फूटने लगे हैं। यूपी के देवरिया के बीजेपी विधायक सुरेन्द्र सिंह ने शुरू से ही मोर्चा खोल रखा है। वहीं बीजेपी के वरिष्ठ सांसद कलराज मिश्र ने दिल्ली में ब्राह्मण परिवार को फर्जी ढंग से SC/ST एक्ट के तहत फंसाये जाने का उदाहरण देते हुए इस फैसले पर पुनः विचार करने का आलाकमान से आग्रह किया है। देश भर में इस एक्ट के विरोध की गूँज दिल्ली के गलियारों तक पहुँचने लगी है। इसी का नतीजा 04 सितम्बर की शाम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों को लेकर इसी मुद्दे पर आवश्यक बैठक बुलाई थी। इस मसले में बीजेपी की वही हालत है , जैसे खिलाड़ी अपनी पोस्ट में गोल करके पछताता है। कांग्रेस को कोसने के लिए जिस शाहबानो केस का बीजेपी गला फाड़ फाड़ कर हवाला देती थी। वही गलती बीजेपी भी दोहरा गई है,तो किरकिरी होना तय है। आज स्थिति ये है कि जनता का भाजपा के नेताओं व जनप्रतिनिधियों को नाराजगी का कोपभाजन होना पड़ रहा है। मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज पर जूते फेंके जा रहे हैं। अनेक बीजेपी सहित विपक्षी दलों को भी सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। एक महिला सांसद ने अपने ही कार्यकर्ताओं की नाराजगी से हतोत्साहित हो कर कह डाला कि क्या कर सकती हूँ। चाहो तो तलवार लाओ मेरा गला काट डालो। बीजेपी गान करने वाले मुँह छिपाते फिर रहे हैं।अब जब पोस्ट डालते हैं तो सरकार जाने से नुकसान गिनाते हैं। उधर पेट्रोलियम पदार्थों की महंगाई ने तो सरकार को बैकफुट पर ला दिया है। विपक्षियों को तो संजीवनी जैसे मिल गई हो। कांग्रेस भी इन मुद्दों पर चटखारे ले रही है। हो भी क्यों न मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित चार राज्यों में चुनाव सन्निकट हैं। अब देखने की बात है कि इन राज्यों के चुनावों पर कितना असर पड़ता है। वही 2019 के चुनाव की दिशा तय करेगा। फिलहाल आज जिस तरह इस एक्ट का विरोध हो रहा है। इतना तो सम्भव है कि राजनीतिक गलियारे में इसका प्रभाव पड़ना तय है।
@NEERAJ SINGH
बढ़िया👍
जवाब देंहटाएंThanx Bhai
जवाब देंहटाएंइस पर पुनः विचार होना अति आवश्यक हैं। क्योंकि विगत कुछ वर्षों में इसका बहुत दुरुपयोग हुआ। इसलिए सरकार को जातिगत भावना से उठकर सामाजिक न्याय हेतु इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
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