देश हर वर्ष की तरह इस बार भी 15 सितम्बर से हिन्दी पखवाडा चल रहा है। जोकि 29 सितम्बर को समापन होगा।बात करें हिन्दी की तो मातृभाषा जिसे राजभाषा का दर्जा मिला है पर पूर्ण दर्जा पाने के लिए आज भी जद्दो जहद हिन्दी अपनी ही जन्मभूमि में ही बेगानी नजर आ रही है। वहीं कम्प्यूटरीकरण से हिन्दी को करारा झटका लगा है। स्थित यह कि सरकारी दफ्तरो में अधिकांश कामकाज अंग्रेजी भाषा मे होता है। परिणाम स्वरूप हिन्दी को व्यवसायिक राज्यभाषा का दर्जा नही मिल सका है। राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए केन्द्र सरकार के दफ्तररों मे हिन्दी अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, स्पष्ट आदेश हेै कि हिन्दी मे। कामकाज किए जाएं। लेकिन बी एस एन एल, डाक, रेल आदि जैसी महत्वपूर्ण विभाग हिन्दी का इस्तेमाल नही करते है। जिसमे लम्बे चौड़े दावे होेते हैं, लेकिन जब इन दावों के क्रियान्वयन की बारी आती है तो जिम्मेदार अधिकारी हाथ खडा कर लेते है। आम तोैर पर बी एस एन एल दफ्तर है जिसमे टेलीफोन, मोबाइल बिल अग्रेजी भाषा मे जारी होते है। कनेक्शन फार्म भी अग्रेजी मे होता है यह तक कि टेंण्डर भी अंग्रेजी भाषा के अखबार में प्रकाशित किया जाता है।
उपभोक्ता चाहकर भी बी एस एन एल दफ्तर मे हिन्दी भाषा का प्रयोग नही कर पाते हैं। रेल व डाकघर मे वही प्रक्रिया है, हिन्दी को सही माने मे राजभाषा बनाने के लिए जारी शासनादेश कागजों तक सीमित है। अधिकारियो का कहना है जब कम्प्यूटर का साफ्टवेयर अंग्रेजी में है तो हिन्दी का प्रयोग कैसे किया जा सकता है भूमण्डलीयकरण से बोलचाल मे भी हिन्दी भाषा के सरगार्भित शब्द गायब होते जा रहे है। उपेक्षा के बावजूद विश्व मे अग्रणी है।अभिभावक अपने बच्चो को इंग्लिश मीडियम मे ही पढाना चाहते है। पहले भारतीय महापुरूषो के नाम से विद्यालय खोलते थे। जिनका अपना अलग आर्कषक होता था लेकिन अब सेन्ट, कान्वेन्ट, पब्लिक, पीर्टस, जैसे नाम से स्कूल की बाढ दिख रही है। अंग्रेजी नाम के स्कूलो मे पढाना स्टेटस सिम्बल बन गया है। हिन्दी मीडिएम के स्कूल की पढाई को व्यर्थ माना जाने लगा है । एक अभिभावक सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि शिक्षा का पैटर्न बदला है, अग्रेजी की पढाई रोजगार व समाज में इज्जत दिलाती है। वही हिन्दी की पढाई बेरोेजगारी फैला रही है। हिन्दी मीडियम स्कूलों मे बच्चो को पढाना इनके भविष्य के साथ खिलवाड करना है। उच्च शिक्षा के पाठयक्रम अंग्रेजी में है ।यदि हिन्दी मीडिएम में है तो आगे चलकर बच्चों को दिक्कत होना स्वाभाविक है । हिन्दी हमारी आन बान शान ही नही प्रस्तुत पहचान है, इसकी प्रतिष्ठा मे ही हमारी प्रतिष्ठा है। अस्तु इसे अपनाना ही नही अपितु हद्रय से स्वीकृति देना ही हमारा नेतृत्व देना हमारा कत्र्तव्य है। इसके में ही हमारी अस्तिव एंव प्रतिष्ठा युग युगान्तर तक बनी रहेगी । आम जनता का भी रूझान हिन्दी के प्रति नही दिख रहा है।
हां फिर भी हम हिन्दी पखवाडा मना रहे हैं। आईये संकल्प लेते हैं कि हिन्दी को विस्तार प्रदान करने में अपनी महती भूमिका निभायेंगे।
इनसेट-
क्या कहते हैं, हिन्दी के जानकार.......
हिन्दी भाषा के जानकार व साहित्यकार राकेश ऋषभ जोकि प्रशासनिक अधिकारी भी हैं, उन्होंने कहा कि जिस भाषा को हमें बोलने में गौरवान्वित होने का अहसास होता है आज हमारी वर्तमान पीढी विदेशी भाषा बोलने में ही अपनी शान समझते हैं।इसके प्रचार प्रसार के लिए और अधिक मेहनत की आवश्यकता है। वहीं जिले के युवा साहित्यकार व कवि चिन्तामणि मिश्र का कहना है हिन्दी भाषा केवल भारत की नही विश्व भाषा की ओर अग्रसर है। सोशल साईट हो या फिर कार्पोरेट घराने हों आज उनकी नजरे हिन्दी पर ही टिकी हैं। बानगी के तौर पर हिन्दी ब्लाॅग को 2010 से पहले पढने व लाईक करने वाले कम पाठक ही मिलते थे, जबकि अंग्रेजी ब्लाॅग को लाखों में पाठक मिलते हैं। लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। ब्लाॅग पर एक छत्र राज करने वाली अंग्रेजी भाषा को हिन्दी भाषा से कडी चुनौती मिल रही है। श्री मिश्र ने कहा कि हिन्दी को विश्वभाषा बनाना है तो इसमें फैली रूढिता व व्याकरण के कडे शब्दों को बाहर करने की जरूरत है।
हिन्दी प्रवक्ता सुरजीत सिंह ने कहा कि उपेक्षा के बावजूद भी विश्व में हिन्दी अग्रिम भाषाओं में गिनी जाती है। हिन्दी बोलने वाले समाज को यह पता ही नही है कि हिन्दी सर्व सम्पन्न व दिल को छू लेने वाली प्रिय भाषा है। अब वो दिन दूर नही कि हिन्दी विश्व भाषा की ओर अग्रसर है।
@NEERAJ SINGH
मित्रों,आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा।
जवाब देंहटाएंभारत सरकार के द्वारा हिंदी भाषा को नए उत्थान तक पहुँचाने के लिए अनवरत प्रयास जारी है और आशा है हिंदी भाषा को जिस विश्व ख्याति की आवश्यकता है वो अवश्य प्राप्त होगी।
जवाब देंहटाएंजो जन जन की भाषा हो गई हिंदी होती है ऐसी भाषा कई भाषाओं के शब्दों से मिलकर बनी है
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