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कासगंज की घटना देश के लिए अच्छा संकेत नहीं!


‌देश में जब हम 69वां गणतंत्र धूमधाम से समूचे भारत में मनाया जा रहा था कि ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश के कासगंज में एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया । जब देश में जिस दिन से कानून का राज्य कायम हुआ यानी संविधान लागू हुआ था। ठीक इसी दिन यानी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर कुछ युवाओं ने तिरंगे को लेकर कासगंज में एक यात्रा निकाली । इस तिरंगा यात्रा में जोश से वन्देमातरम् ,जय हिन्द,भारत माता के नारे लगाते शहर की गलियों में घूम रहे थे । उन्हें क्या पता था कि देश के दुश्मन भी इन्ही गलियों में रहते हैं। जैसे ही वे सभी तिरंगा यात्रा लेकर एक विशेष समुदाय के मुहल्ले के पास से गुजर रहे थे कि उन पर ईंट-पत्थरों से हमला बोल दिया ,जब इससे जी नही भरा तो फायरिंग भी शुरू कर दी जिसमें एक युवा अभिषेक गुप्ता उर्फ चन्दन की गोली लगने से मौत हो गई। वहीं दूसरे घायल युवक रोहित की इलाज के दौरान मौत हो गई। गणतंत्र दिवस मनाते हुए इनकी मौत शहीद से कमतर कतई नही है। इस घटना ने प्रदेश ही नही पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।  इस घटना से कई अहम् सवाल उठ रहे हैं। एक लोकतांत्रिक देश में  देश भावना को दबाने का प्रयास किया जाना, राष्ट्रगान व राष्ट्रीय गीत का विरोध, राष्ट्रीय ध्वज के फहराये जाने पर विवाद, अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने देश के खिलाफ जहर उगलना एक चलन बन गया है।  ये सारी बातें एक लोकतांत्रिक देश के लिए किसी अभिशाप से कम नही है। धर्म ,जाति के नाम बांटने का कार्य वोट के सौदागर कोई कसर नही छोड़ रहे हैं। कभी जेएनयू, तो कभी हैदराबाद या फिर कश्मीर में देश विरोधी क्रियाकलापों से भारत माँ को घाव दिए हैं। लेकिन अब तो हद हो गई है कासगंज की घटना से कि हम अपने ही देश में वन्देमातरम का उद्दघोष भी कहना जुर्म हो गया है। गोलियों से मार दिया जा रहा है यही सहिष्णुता है क्या! राजनीति के ठेकेदारों के मुँह सिल गए हैं। संविधान बचाने वाले का नारा देने वाले मुम्बई की सड़कों पर पदयात्रा करने वाले धर्मनिरपेक्ष का चोला पहनने वाले इन तथाकथित नेताओं इस कांड को लेकर गूंगेबहरे बन गए हैं। इन्हें इन दोनों युवकों की मौत नही दिख रही है। अब संविधान दिवस को मनाने वाले की हत्या होना क्या लोकतंत्र पर हमला नही है! कासगंज की घटना एक आम घटना नही है।  दंगे होते है मारपीट या फिर हत्या होना अलग बात है,परन्तु ये घटना उस समय हुई जब देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा था, ठीक उसी समय  वन्देमातरम कहना मौत का कारण बनना देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। देश के कर्णधारों को सिर्फ वोट चाहिए ,देश का भविष्य सुरक्षित रहे या न रहे उन्हें इसका क्या फर्क उन्हें तो अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है। ओवैसी  जैसे नेता युवाओं में कुंठित मानसिकता भर कर  देश को बांटने व कमजोर करने का काम कर रहे हैं। अगर ऐसे नेताओं तुष्टीकरण की राजनीति से नही रोका गया , तो देश का भविष्य अंधकार में ठेलने का कार्य करेंगे। और कासगंज जैसी घटना होती रहेगी। 

@NEERAJ SINGH

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