आज रक्षाबंधन का त्योहार पूरे देश में मनाया जा रहा है। भाई -बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन हमारी संस्कृति को दर्शाता है कि हमारे समाज में रिश्तों के कितने मायने हैं। भारत देश विविधताओं से भरा है, विशाल सांस्कृतिक विरासत ने भी हमारी पहचान विश्व जगत में अलग ही स्थान दिया है। अपने अनूठे स्वरूप के हजारों वर्षों के बाद भारतीय संस्कृति आज भी धरोहर के रूप में विद्यामान है।
न जाने कितने आक्रांता भारत की संस्कृति को बदल नही पाये । भारत विविध रीतिरिवाजों व त्योहारों के लिए जाना जाता है। USA,UK,Rasia जैसे देश भले ही विश्व की महाशक्तियां हों, लेकिन अपनी संस्कृति को बचाने में कामयाब नही हो सके लेकिन भारत की संस्कृति आज भी पूर्ण विद्यमान है। इस देश में पत्नी पति के लिए कारवा चैथ का व्रत रखती हैं,माता बेटे के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती हैं तो वहीं बहनें अपने भाई के दीर्घायु के लिए राखी बांधती हैं वहीं भाई बहन की रक्षा के लिए संकल्प लेता है। इस त्योहार को हम रक्षाबंधन कहते हैं।इसी तरह भैया दूज में भी बहनें भाईयों के हाथों में राखी बांधती हैं।आज रक्षाबंधन है तो आज इसी पर हम बात करते हैं। कहा जाता है कि ये त्योहार हिन्दू धर्म के लोग पौराणिक काल से ही मनाते आये हैं। अनेक किदवंतियां चर्चित हैं , जिसमें एक बार देवों व दानवों के बीच में चले महासंग्राम के समय देवों पर दानव सेना हावी होने लगी तब देवताओं के राजा इन्द्र ने ब्रहमा जी से सहायता मांगी थी। जब उन्होंने कोई जबाब नही दिया तब उनकी पत्नी इन्द्राणी ने उनको रक्षा बांधकर जीत की कामना किया था।
इसी प्रकार मुगलकाल में मेवाड की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी व पत्र भेज कर आक्रान्ता बहादुर शाह से अपनी व अपने राज्य की रक्षा के लिए कहा था। जिस पर हुमायूं ने बहन की रक्षा के वास्ते सेना सहित मेवाड पहुंचकर बहादुरशाह को परास्त करके महारानी कर्मावती को दिया वचन निभाया और मुस्लिम होते हुए हिन्दू रानी का भाई बन राखी बंधवाया। इतना ही नहीं स्वतंत्रता आन्दोलन में भी इस परम्परा का प्रयोग किया गया। महान कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंगाल में बंग-भंग आन्दोलन में लोगों को महिला आंदोलनकारियों द्वारा रक्षा बंधवाकर बंगाल एकता संदेश दिया गया।
इस रक्षाबंधन त्योहार में बहनों द्वारा भाईयों को रक्षा बांधकर अपना प्यार उडेल देती हैं। भारत के विभिन्न भागों में अलग अलग तरीके से रक्षाबंधन मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में राखी या रक्षाबंधन का त्योहार कहा जाता है, उत्तरांचल में श्रावणी,महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी राजस्थान में रामराखी और चूडाराखी या लूम्बाबंधन कहते हैं। वहीं दक्षिण के राज्यों केरल,तमिलनाडु व उडीसा में अविम अवित्तम कहा जाता है । पहले भी राजपूत राजाओं द्वारा युद्व के लिए निकलने से पहले उनकी पत्नियां अपने पति को टीका लगाती और रक्षा बांधकर जीत की कामना करती थी।
बचपन में हम सभी को इस त्योहार का बडी बेसब्री से इंतजार रहता था। रक्षा बांधने के लिए छौटी छोटी बच्चियां सुबह ही नहा धोकर तैयार होकर आ जाती थी। और रक्षा बांधती थी। बहुत अच्छा लगता था, उससे भी अधिक मिठाई पर नजर रहती जब तक राखी हाथों में बंधती रहती थी। ये क्या होता था कि रक्षा बांधने वाली बहन और बंधवाने वाला भाई दोनों में उस समय सिर्फ प्यार और उमंग ही रहता था बिना किसी स्वार्थ के एक दूसरे पर बडी मासूमियत से प्यार उडलते दिखते थे। आज भी इस प्यार भरे रक्षाबंधन त्योहार वही उमंग दिखता है। आज के समय में जब भारतीय संस्कृत को कठिन दौर से गुजरना पड रहा है,इन त्योहारों में बच्चे,युवा व बुर्जुग के उल्हासपूर्ण माहौल में बढ चढकर मनाया जाना एक सुखद अनुभव है। ओर हमें लगता है कि हमारी संस्कृति किसी भी मायने में कमजोर नही हुई है। त्योहार आदि त्योहार मानवीय रिश्तों को मजबूत करने का कार्य करते हैं।
आज की सामाजिक व्यवस्था से आर्थिक व्यवस्था की तरफ बढ रहे समाज को देख कर वर्तमान में इन त्योहारों की आवश्यकता और बढती जा रही है। चंद पैसों व सम्पत्तियों के लिए माता का पुत्र द्वारा पिता का पुत्र-पुत्रियों के द्वारा व बहन द्वारा भाई की हत्यायें कर दी जा रही हैं। लहू के रिश्तों को लालच के दानव तार तार कर रहे हैं। थोडे से लाभ के लिए अपने ही अपनों के खून के प्यासे हो रहे हैं। आखिर क्या रहा है इस समाज को कि स्वार्थ ने लोगों अंधा बना दिया है। बदल रही इस वीभत्स रूप धारण कर रहे सामाजिक व्यवस्था को बचाने के लिए सदियों से चल रही संस्कृति की रीति रिवाजों को मजबूती के साथ इसी रास्ते पर चलने की आवश्यकता है। इसका सबसे बढिया माध्यम हमारी परम्परायें और त्योहार हैं। इन त्योहारों में ही हमारी संस्कृति झलकती है।
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