सिस्टम में नासूर बन चुका है भ्रष्टाचार
दोस्तों ----
आयुक्त कार्यालय गया था एक कार्य के सिलसिले में वहां पहुंच कर पता किया कि इस कार्य से संबंधित बाबू जी कौन है।जिससे पूछा उस बाबू ने सामने पड़ी कुर्सी पर बैठे सज्जन की ओर संकेत करते हुए कहा कि वह ही है। मैं उनके पास गया तो पूछा कि क्या काम है;मैंनेअपना कार्य बताया तो बड़ी शालीनता का परिचय देते हुए कहा कि आपके सारे कागजात अभी नहीं आये हैं।उसे लेकर आएंगे तभी काम संभव है। मैंने उसी समय जिले के बाबू से पूछा कि आपने कहा था कि कागजात भेजे हैं लेकिन यहां तो नहीं है। तब बाबू ने जो जबाब दिया मैं सन्न रह गया ।जरा जबाब सुनिये ---भाई ऐसे काम नहीं होता है कुछ ले देकर बाबू को सेट करो नहीं तो घूमते रहोगे। ये हालत है हमारे सिस्टम की। मैं पत्रकार हूँ मैं समझता था कि कोई भ्रष्टाचारी ये बातें नहीं करने की हिम्मत नहीं करेगा। लेकिन आज ये दम्भ भी टूट गया। आखिर इस भोली भाली जनता कैसे इन भेडियों के रूप में बैठे भ्रष्टाचारियों को झेलते होंगे। कार्यपालिका के पूरे सिस्टम में वायरस की तरह फैल चुका है। और खुले आम जनता को जोंक की तरह चूस रहे हैं। नीचे से लेकर ऊपर तक अगर देश में किसी भी प्रकार विकास हुआ है तो वह है भ्रष्टाचार जिसकी वृद्धि दर का कोई मानक ही नहीं है।क्या हम इस सिस्टम को बनाने में उन भ्रष्टाचारियों की मदद नही किया है। जरूर हमने कहीं न कहीं कुछ न कुछ गलत किया है सिर्फ चन्द स्वार्थो के लिए जोकि अब यह रोग लाइलाज हो चला है और पूरे सिस्टम नासूर की तरह जम चुका है। भ्रश्टाचारियों के रग रग में हराम की कमाई बह रही है। कुछ इस प्रकार भी जिम्मेदार हैं कि लोगों का परीक्षण उनके बौद्धिक, शैक्षिक और चरित्रिक के मापदंड से न तौलकर उसके धन से सामाजिक स्टेटस मापने का काम होता है। इसी कारण लोग अपना कद बढाने के चक्कर में भ्रश्टाचार के गंदे तालाब में नहाने से गुरेज नही करता है। काली कमाई करने वालों के खिलाफ जबतक हम लामबंद होकर विरोध नही करेंगे तब तक ये बंद नही होंगे।
जय हो भ्रष्टाचार की -------
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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