गांधी परिवार की कसौटी व भाजपा की दीदी

<देश की सियासत में अहम हिस्सा रही अमेठी अक्सर ही अपनी धमक का अहसास कराती रही है। इसमें सबसे अहम रोल होता है देश के सबसे बडे राजनीतिक घराने गांधी परिवार से,जिसका दशकों से यहां की राजनीति में भागीदारी चली आ रही है। वैसे तो यहां इनका रिश्ता अमेठी राजघराने से पहले भी मोतीलाल,जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी से जुडा रहा है। लेकिन राजनीतिक समर में उतरने का फैसला इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी ने किया जोकि तत्कालीन अमेठी राजघराने के युवराज संजय सिंह के अभिन्न मि़त्र भी थे । कहा जाता कि उन्ही की प्रेरणा अमेठी में 1977 में लोकसभा चुनाव लडा। यहां से गांधी परिवार पूरी तरह से अमेठी से जुड गया और अमेठी को अपनी कर्मभूमि बना ली। इसके बाद राजीव गांधी,सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी यहां के सांसद हैं। यहां की जनता भी गांधी परिवार से आत्मिक व भावात्मक रिश्ते जोड लिए जिसका फायदा आज भी गांधी परिवार को मिलता रहता है।बडे बडे धुरंधर जिसमें बसपा के संस्थापक कांशीराम, महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी शरद यादव जैसे राजनीतिक गांधी परिवार के सामने धूल फांक चुके हैं। और हारने के बाद वापस नही आये। लेकिन स्मृति ईरानी ने विगत लोकसभा में हारने के बाद भी अमेठी आना नही भूलती हैं। आने पर दो कार्य अवश्य कर रही हैं पहला अब तक क्षेत्र हुए विकास पर राहुल गांधी को सवालों के घेरे में लेना व विकास की कुछ सौगात देना नही भूलती हैं। कांग्रेस के आलाकमान भी इनकी सक्रियता हजम नही कर पा रही हैं। राजनीतिक जानकारों मानना हे कि युवराज के लिए चुनौती बनती जा रही हंै।कई सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या भाजपा स्मृति को चुनावी प्रत्याशी न कि अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ एक गंभीर विकल्प देना चाहती है ! क्या राहुल गांधी को भाजपा अमेठी में ही घेरना चाहती!क्या राहुल गांधी को देश की राजनीति के बजाय अमेठी में विकास पर घेरना चाहती है। इन्ही सवालों में यहां कि जनता उलझी है। एक बात अवश्य है दशकों से गांधी परिवार का इस सीट पर कब्जा है लेकिन उम्मीद के मुताबिक विकास नही होने का मलाल जनता को जरूर है। इसका खमियाजा कांग्रेस के लिए भुगतना पडता रहता है। ये भावात्मक रिश्ते कमजोर दिखने लगे हैं इसी का लाभ भाजपा भावानात्मक रिश्ते से ही उठाने की फिराक में है। आज यहां जनता में राहुल भईया के रूप में देखते है लेकिन इससे कतई इंकार नही किया जा सकता है कि स्मृति ईरानी को दीदी जैसे भावनात्मक रिश्ते से जोड कर दिख रहा है।कांग्रेस भले ही हल्के में लेने की बात करती है,लेकिन अन्दरखाने में उलझन अवश्य है।जो भी हो अमेठी की सियासत धीरे धीरे युवराज बनाम दीदी बनता जा रहा है।

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