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अमेठी को कांग्रेस का दुर्ग कहना कितना मुनासिब !


देश की राजनीति की सुर्खियों में अमेठी एक बार फिर आ गई है। कांग्रेस का गढ कहे जाने वाली अमेठी में नगर निकाय चुनावमे जो किरकिरी कांग्रेस की हुई काफी सोचनीय है। 2009 के बाद जिस तरह कांग्रेस के इस दुर्ग में दिनों दिन हालात पार्टी के हाथ से फिसलते जा रहे हैं अब अमेठी को कांग्रेस का दुर्ग कहना बेमानी है ! नगर निकाय के परिणाम से राहुल की अमेठी एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है। देश की राजनीति में अमेठी-अमेठी की गूंज चंहुओर सुनाई पडने लगी है। होना भी लाजिमी है क्योंकि राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र अमेठी जहां से गांधी परिवार का नाता काफी पुराना है। इस क्षेत्र में नगर निकाय के आये  हुए परिणामों की धमक पूरे देश में सुनने को मिल रही है। इस संसदीय क्षेत्र की सभी छः सीटों में से चार पर भाजपा ने अपनी पताका फहराने में कामयाब रही है। एक सीट पर सपा व एक पर निर्दल ने बाजी मारी है। कांग्रेस को अपने गढ में ही करारी हार का सामना पडा है।  गुजरात चुनाव में अमेठी के विकास के मुद्दे पर राहुल को अक्सर ही ही भाजपा घेरती रही है। लेकिन नगर निकाय के परिणामों ने भाजपा को राहुल पर निशाना साधने का मौका दे दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में परिणामों के आने के बाद ही पे्रसवार्ता में अमेठी के परिणाम का जिक्र करना नही भूले और राहुल पर तंज कसा। इसके बाद ही स्मृति ईरानी , राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह  ने अमेठी के नतीजों पर राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा। इसके जबाब में कांग्रेस का कहना है कि लोकल चुनावों में पार्टी उम्मीदवार  नही उतारती है। लेकिन पार्टी सूत्रों की माने तो दो नगरपालिका में अधिकृत प्रत्याशी उतारा जो कि  हार गये , जबकि अन्य चार पर अंदरूनी समर्थन दिया गया था लेकिन वे भी हार गये। ऐसी दुर्दश पार्टी की पहले नही हुई थी। अमेठी की राजनीतिक हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। 2009 के बाद से अमेठी में कांग्रेस के दुर्ग में दरारे आने लगी थी। 2009 से पूर्व में लोकसभा से लेकर  पंचायत तक की लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहता था। जनता में गांधी परिवार के प्रति अगाध प्रेम दिखता था । कोई परिवार की पादुका तक लेकर आता तो उसे जिताने में अमेठी की जनता कोई कोर कसर नही छोडती थी। राहुल गांधी के सांसद बनने के बाद से विकास के प्रति उनकी उपेक्षा कहीं न कहीं विपक्ष को इस दुर्ग में सेध लगाने का मौका दे दिया है। अनेक चुनावों में मात खा रही कांग्रेस व खुद की सीट की जीत का अन्तर कम होना इस बात का प्रमाण है कि जनता का मोह देश की तरह अमेठी में भी भंग होता दिख रहा है। 2012 में लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी का चुनाव लडना  और यहां की राजनीति में हारने के बाद भी सक्रिय रहना कांग्रेस के लिए और ही खतरे की घंटी बज रही है। इस बात को लेकर राहुल व कांग्रेस को चिंतन की आवश्यकता है।कांग्रेस को इस बात का अवश्य ध्यान देने की जरूरत है कि जब गांधी परिवार से अमेठी की जनता ने परिवारिक रिश्ता बना कर दशकों अपनी पलकों पर बैठाया। वहीं अब स्मृति से दीदी रिश्ता भी जोड रही है , कहीं गांधी परिवार का रिश्ता इसके आगे कमजोर न पड जाये। नगर निकाय चुनाव कांग्रेस के लिए सबक है। वरना राहुल के लिए 2019 अमेठी के लिए भारी पड सकता है।अमेठी की एक भी राजनीतिक घटना देश की राजनीति में प्रभावित करती है। साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों के लिए ये घटना बहुत ही मायने रखती है।  गौर करने की बात है कि वाराणसी या गोरखपुर के चुनाव में बीजेपी को असफलता मिलती तो शायद कांग्रेस व अन्य विपक्षी मोदी व योगी को घेरने में कोई कोर कसर न छोड़ते। इसलिए बीजेपी को भी मौका मिला है तो राहुल को घेरने का कार्य कर रहे हैं। राहुल गांधी ने मोदी व शाह को उनके गृह प्रदेश गुजरात में चुनाव में हराने के लिए कमर कस कर चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। वही बीजेपी अमेठी में कांग्रेस की नगर निकाय में हार को हथियार बना गुजरात में चुनावी बैतरणी पार करना चाहते हैं। वैसे उत्तर प्रदेश का नगर निकाय चुनाव का परिणाम गुजरात चुनाव को प्रभावित करे अशियोक्ति नही होगी। फिलहाल ये 18 दिसंबर को ही पता चलेगा जब गुजरात चुनाव के परिणाम आएंगे। कांग्रेस को अपने दुर्ग अमेठी को सुरक्षित रखने के लिये सांगठनिक तौर पर मजबूत करने,कमियों को दूर करने व जनता के बीच काम करने की आवश्यकता है। तभी ये कांग्रेस का गढ़ कहलायेगा। साथ ही दुर्ग की नीव जिसे गांधी परिवार ने भावानात्मक रिश्ते से बनाया है ,उसे भी मजबूत की आवश्यकता है।

@NEERAJ SINGH


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