सेना को गाली देना भी एक सेक्युलरिज्म !
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत आज किस दिशा में अग्रसर हो रहा है ये कहना मुश्किल लग रहा है। एक बात तो सच है कि भारत विश्व में अपनी साख की धमक बनाने में कामयाब हुआ है। लेकिन हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं की सोच को क्या हो जा रहा है । ये समझ से परे लग रहा है। विगत कुछ समय से देश की सुरक्षा में लगी भारतीय सेना भी इन सेक्युलर नेताओं के निशाने पर आ गई है सेना की दुश्मनों के खिलाफ हर कार्यवाही का प्रमाण माँगा जा रहा है। कश्मीर में इनकी हर कार्यवाही में मुस्लिमों के विरुद्ध बदले की भावना वाली कार्यवाही लग रही है। इन्हें पत्थरबाजों के लिए प्रेम उमड़ता है,और सेना पर फेंके जा रहे पत्थर दिखते नही हैं। ये कैसी नेतागीरी है। अलगाववादियों से बात करने के लिए सरकार दबाव डालते है, जोकि पाकिस्तान व खाड़ी देशों से मिल रही फंडिंग से कश्मीर में युवाओं को उपद्रव के लिए उसकाने का काम करते हैं।
सवाल उठता है कि तथाकथित सेक्युलरिज्म भारत की अखण्डता पर कुठाराघात करने की छूट क्यों दी जा रही है। कहीं सेना पर सवाल, तो कहीं सेनाप्रमुख पर सवाल उठा देना कहाँ की धर्मनिरपेक्षता है। इन्हें नेता की नहीं देशद्रोही की श्रेणी रखना चाहिए। प्रकाश करात,दिग्गविजय, केजरीवाल,मणि शंकर अय्यर,अब संदीप दीक्षित ने तो हद ही कर दी। सेना प्रमुख जोकि 12 लाख सैनिकों की कमान सम्भाल रखी है उसे सड़क छाप गुंडा घोषित कर दिया। इससे बड़ा सेना का अपमान क्या हो सकता है। सेना का मनोबल गिराने वाले इन घटिया नेताओं को आखिर सरकार क्यों छूट दे रही है। इतना ही नही संदीप ने इस बयान पर तो माफ़ी भी मांगना उचित नही समझा। उधर कांग्रेस इस बयान को निजी बयान बता कर अपने को अलग कर लिया,नेता पर कार्यवाही करना भी मुनासिब नही लगा। कांग्रेस पार्टी ये कोई नई बात नही है जब कोई इनका नेता अनाप शनाप बयान देता है तो निजी बयान बताकर अपना फर्ज पूरा कर लेती है। इधर जिस तरह से पार्टी के बड़े नेता एक के बाद एक नया विवादित बयान दे रहे हैं, कहीं सोची समझी चाल तो नहीं है। एनडीए सरकार इस प्रकार चुप रहकर सेना व उनके अधिकारियों को अपमान देख रही है, कम दोषी नही है। सेना पर उंगली उठाने वाले की उठी उंगली तोड़ कर सलाखों के पीछे भेज देना चाहिए,जुबान को काटकर उनके हाथों में देने की आवश्यकता है। तभी इन तथाकथित सेक्युलर नेताओं के सिर से सेक्युलिरज्म का भूत उतरेगा । और सेना का अपमान करने वालों को बोलने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा …..जय हिन्द।
@नीरज सिंह
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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