भारत देश विविधताओं से परिपूर्ण है। यहां जनता का राज्य है जिसे प्रजातंत्र या लोतंत्र के रूप में पुकारा जाता है।आजादी के बाद से लोकतंत्र 67 वर्ष का लंबा सफर तय कर चुका है।आज देश की राजनीतिक हालात बेहद गंभीर हो चला है।विश्व के सबसे बडे लोक तंत्र के जनप्रतिनिधियों को देश के कर्णधार कहें तो अतिश्योक्ति नही होगी। गांधी,नेहरू पटेल, बोस या फिर अम्बेडकर जी के सपनों को आगे ले जाने वाले आज के नेताओं द्वारा जिस प्रकार लोकतंत्र की धज्जियां उडा रहे हैं।उन महान नेताओं की आत्माएं भी रो रही होगीं और चिल्ला चिल्लाकर कह रही होगीं कि हे भारत मां मुझको माफकर दे । मुझे नही पता था कि जो आजादी के बंधन से तुझे मुक्त कर प्यारा सुराज,सुख शांति ओैर प्रेम का स्वरूप देखने को मिलेगा,वह नेस्तनाबूद हो चुका है। और रह गयी है सिर्फ मक्कारी, भ्रष्टाचार,बेईमानी,झूठ फरेब,ठगी,चापलूसी,नैतिक पतन।ये नही मालूम मौजूदा पीढी के नेताओं का ये पर्यायवाची बन जायेगा। नैतिकता,चरित्र,ईमानदार,सच,व परोपकार जैसे शब्द शब्दकोश रह ही नही जायेंगे। होंगे भी तो इन नेताओं के भाषणों में समाहित होकर रह जायेंगें, चुनावी मौसम में बसंत के पतझड की तरह झर कर जमीन में गिरते जायेंगे। जोकि किसी काम के नही होते वेैसे ही इन शब्दों का हाल भी हेै। राजनीति का पतन हो रहा हेै या कहें हो चुका हेै गलत नही होगा। एक बानगी देखिये अपने लोकतंत्र के कानून को ठेंगा दिखाने का काम किया है, देश के बडे नेताओं में शुमार और देश के केन्द्रीय मंत्री रह चुके एनसीपी पार्टी के संस्थापक व अध्यक्ष शरद पवार एक कार्यक्रम में चुनाव नियमों की धज्जियां उडाते कहते हैं,कि एक वोट डालो,फिर स्याही मिटाकर दूसरी जगह वोट डालने जाओ। वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग बराबर चिल्लाकर कह रहा है कि दो स्थानों पर वोट डालना असंवैधानिक है,ऐसा करने पर दण्ड के भागीदार होंगे।आयोग पूछा पवार से तो सफाई में लिखकर जबाब दिया कि मजाक में कहा।और आयोग भी संतुष्ट उधर शरदपवार को जो कहना था कह दिया । उनका काम हो चुका था। आयोग इस बात को माने या मजाक समझे।ये देश जनप्रतिनिधि एक बात साफ कर दिया है कि लोकतंत्र की दुहाई लेते लेते मजाक बना कर रख दिया है, इस विशाल लोकतंत्र का क्या इसमें आपको कोई शक!
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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