कोरोना वायरस को रोकने के लिए देश में लॉक डाउन कर दिया गया, जिससे लोग अपने घरों में रहें, अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने का मौका मिले, लेकिन बहुत सारे प्रवासी मजदूर जो भरण पोषण के लिए अपने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर जाते हैं वो आज भी उस इंतजार में है कि घर कब जाने को मिलेगा? बहुत सारे मजदूरों को सरकार के द्वारा उनके गंतव्य स्थान तक भेजा गया और आगे यही आशा है कि उनको भेजा जाएगा; लेकिन बहुत सारे प्रश्न जो मन में कौंधते है जैसे-
१ कहा जाता है समय के साथ परिवर्तन बहुत आवश्यक है जो होना भी चाहिये लेकिन क्या उसके साथ मनोवृत्ति को संकीर्ण कर लेना भी आवश्यक है? जो आज इस व्यथित समाज में स्पष्ट रूप से दिख रहा है।
२ समाज में एक बड़ा वर्ग जो सक्षम है कि अपने आसपास रहने वाले गरीब परिवार को भोजन करा सके और उसमें से कुछ लोग यथासंभव प्रयास कर भी रहे है लेकिन जो अपने परिवार के चारदीवारी में कैद हो कर विलासिता के जीवन व्यतीत कर रहे हैं उनके मन में ये किंचित मात्र नहीं आता कि हमें भी थोड़ा सहयोग देना चाहिए लेकिन उनके पास इसका भी जवाब होता है कि हम अपने टैक्स को सही समय पर देते हैं और सरकार से जाकर पूछो वो क्यों नहीं कर रही; लेकिन उनको ये भी समझना जरूरी है जो गरीब बहुत कम पैसों में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है वो भी टैक्स देता है;लेकिन क्या ये उचित समय है कि हम जवाबदेही में फॅसे रहे। इस मामले पर सरकार से जवाबदेही आवश्यक भी है।
३ आज समाज में किसी भी चीज़ का राजनीतिकरण और साम्प्रदायिककरण हो रहा है जो किसी भी देश के लिए एक गंभीर समस्या है; इससे लोगो के मध्य द्वेषपूर्ण भावनाएँ जागृत हो रही हैं जो किसी भी देश के विकास में सहायता नहीं प्रदान करेंगीं बल्कि देश को पतन के मार्ग पर ले जाएँगी; जब कोई देश अपनी आंतरिक कलह में लिप्त रहेगा तब वो बाह्य संकटों से कैसे बचेगा? सबसे बड़ा प्रश्न है कौन ऐसा कर रहा है? क्यों कर रहा है?तो इसका अर्थ आपको विपरीत ही मिलेगा क्योंकि दोनों सम्प्रदाय एक दूसरे पर दोषारोपण करेंगें। क्या इससे समस्या का समाधान मिलेगा? दोनों सम्प्रदाय में एक शिक्षित वर्ग है जिनकी अहम भूमिका है समाज को आगे बढ़ाने में, आज वो समय है जब उन्हें राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सोचना पड़ेगा और ऐसे लोगो को सबक सिखाना पड़ेगा जो ऐसी साम्प्रदायिकता और द्वेषता समाज में फैला रहे है।
@ADITYA SINGH
Nice article
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