क्या आलोचना करना देशद्रोह है?
: महाराष्ट्र सरकार ने सर्कुलर जारी करके कहा है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ टिप्पणी करने पर देशद्रोह का केस दर्ज होगा. बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी सरकार भी अभिव्यक्ति का गला घोंटने वाली है. सवाल ये भी कि क्या आलोचना करना देशद्रोह है.
महाराष्ट्र सरकार ने इसी केस में हाईकोर्ट के निर्देश का हवाला सर्कुलर जारी किया है जिसके मुताबिक अगर कोई व्यक्ति लिखकर, बोलकर, संकेतों के जरिये या चित्रों के माध्यम से या किसी भी और तरीके से सरकार के प्रतिनिधि या जन प्रतिनिधि के खिलाफ नफरत, अपमान, अलगाव, दुश्मनी, असंतोष, विद्रोह या हिंसा का भाव पैदा करता है या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कार्रवाई हो सकती है.
महाराष्ट्र सरकार के इस आदेश में मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के अलावा ज़िला परिषद अध्यक्षों और पार्षदों को भी जन-प्रतिनिधि माना गया है. यानी इन सभी के खिलाफ की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी देशद्रोह के दायरे में मानी जा सकती है. आदेश में आईपीसी की जिस धारा 124ए का जिक्र किया गया है, वो देशद्रोह के मामले में लागू होती है.
देशद्रोह का कानून क्या है ?
भारतीय कानून संहिता के अनुच्छेद 124 A के मुताबिक अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे तरीकों से सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है. कुछ मामलों में ये सजा उम्रकैद तक हो सकती है.
अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए के लगातार हो रहे बेजा इस्तेमाल पर उसे तो निरस्त कर दिया था लेकिन ये साफ कर दिया थ कि इसका मतलब ये नहीं है कि किसी को कुछ भी कहने या लिखने की आजादी है. संविधान भले ही हर नागरिक को अभिवय्कित की आजादी देता लेकिन उसकी सीमाएं भी संविधान ने तय कर रखी है. उन सीमाओं से परे जाकर कही या लिखी गई बातों के लिए कानून की उचित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है.
कोर्ट के इस फैसले से सोशल मीडिया पर लिखने-बोलने वालों ने राहत की सांस ली थी लेकिन तब भी ये साफ था कि कुछ भी लिखने की छूट नहीं है. लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार कोर्ट के दिशानिर्देश के जरिये बोलने वालों की शह आजादी पर लगाम लगाना चाहता हैl
: महाराष्ट्र सरकार ने सर्कुलर जारी करके कहा है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ टिप्पणी करने पर देशद्रोह का केस दर्ज होगा. बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी सरकार भी अभिव्यक्ति का गला घोंटने वाली है. सवाल ये भी कि क्या आलोचना करना देशद्रोह है.
महाराष्ट्र सरकार ने इसी केस में हाईकोर्ट के निर्देश का हवाला सर्कुलर जारी किया है जिसके मुताबिक अगर कोई व्यक्ति लिखकर, बोलकर, संकेतों के जरिये या चित्रों के माध्यम से या किसी भी और तरीके से सरकार के प्रतिनिधि या जन प्रतिनिधि के खिलाफ नफरत, अपमान, अलगाव, दुश्मनी, असंतोष, विद्रोह या हिंसा का भाव पैदा करता है या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कार्रवाई हो सकती है.
महाराष्ट्र सरकार के इस आदेश में मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के अलावा ज़िला परिषद अध्यक्षों और पार्षदों को भी जन-प्रतिनिधि माना गया है. यानी इन सभी के खिलाफ की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी देशद्रोह के दायरे में मानी जा सकती है. आदेश में आईपीसी की जिस धारा 124ए का जिक्र किया गया है, वो देशद्रोह के मामले में लागू होती है.
देशद्रोह का कानून क्या है ?
भारतीय कानून संहिता के अनुच्छेद 124 A के मुताबिक अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे तरीकों से सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है. कुछ मामलों में ये सजा उम्रकैद तक हो सकती है.
अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए के लगातार हो रहे बेजा इस्तेमाल पर उसे तो निरस्त कर दिया था लेकिन ये साफ कर दिया थ कि इसका मतलब ये नहीं है कि किसी को कुछ भी कहने या लिखने की आजादी है. संविधान भले ही हर नागरिक को अभिवय्कित की आजादी देता लेकिन उसकी सीमाएं भी संविधान ने तय कर रखी है. उन सीमाओं से परे जाकर कही या लिखी गई बातों के लिए कानून की उचित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है.
कोर्ट के इस फैसले से सोशल मीडिया पर लिखने-बोलने वालों ने राहत की सांस ली थी लेकिन तब भी ये साफ था कि कुछ भी लिखने की छूट नहीं है. लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार कोर्ट के दिशानिर्देश के जरिये बोलने वालों की शह आजादी पर लगाम लगाना चाहता हैl
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