उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने आज एक पिटीशन पर एक बार फिर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा है कि मदरसों पर झण्डारोहण एवं राष्ट्रगान अनिवार्य है। अगर ऐसा नही है तो देश का अपमान है जोकि राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में है। माननीय न्यायालय ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि तत्काल सर्कुलर जारी करे। ये बात अहम नहीं कि फैसला कोर्ट ने क्या दिया । इससे अधिक अहम बात ये हैे कि देश की कार्यपालिका को जो करना है वो आज न्यायपालिका कर रही है। कार्यपालिका पर राजनीति इतनी हावी हो गई कि देश हित में क्या हो रहा है इससे अधिक देश के कर्णधारों की राजनीति नफा नुकसान अधिक देखा जा रहा है। इस दरम्यान न्यायपालिका के कुछ महत्वपूर्ण फैसले आये हैं। जोकि समानता के मूल अधिकार को परिलक्षित करता है। प्रोमोशन में आरक्षण, अधिकारियों, न्यापालिका से जुडे बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में पढाये के फैसलों समाज के हर तबकों से भूरि भूरि प्रशंसा मिली है। इसी कडी में मदरसों में झण्डारोहण एवं राष्ट्रगान अनिवार्य करना देश में सामाजिक समानता की ओर माननीय न्यायालय एक औेर कदम है। बिगत वर्षों में जिस प्रकार देश में राजनीति में संकीर्णता दिखी है वह सोचनीय विषय बन गया है। आमजन का भी मानना है कि अगर न्यायपालिका मजबूती से समय समय पर अहम फैसले नही लेती तो शायद देश के अस्तिव व विश्व के सबसे बडे लोकतं़त्र के लिए खतरा बन जाता । लेकिन ये खतरा अभी टला नही है। हाल के दिनों में कश्मीर के हालात पर नजर डालें तो जिस प्रकार पडोसी मुल्क एवं आतंकवादी संगठनों के झण्डे सरेआम फहराये जा रहे हैं। ये आने वाले नये खतरे की ओर संकेत दे रहा है। इसे देश की हुकूमत को रोकने की आवश्यकता बनती जा रही है। राज्य के हुक्मरानों की तो इसे लेकर बोलती ही बंद है। उधर आरक्षण को लेकर जिस प्रकार देश में युवाओं को भरमाने का काम हो रहा है। अस्थिरता का माहौल पैदा किया जा रहा है, निहायत ही गलत बात है। इन सभी के बीच न्यायपालिका के आ रहे महत्वपूर्ण फैसले देश को नई दिशा व संजीवनी देने का काम कर रहा है। हमारे बिगड रही व्यवस्था को सम्भालने का कार्य हमारी न्यायपालिका कर रही है।इसे हम साधुवाद देते हैं,नमन करते हैं।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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