नीरज सिंह
उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र का महापर्व विधानसभा चुनाव अब समापन की ओर है। करीब दो माह तक चले चुनाव में जनता जनार्दन ने खूब सोच समझ कर अपना मतदान कर दिया है। ये चुनाव मुद्दों को लेकर काफी चर्चा में रहा। विकास से लेकर नोटबंदी,रमजान से श्मशान तक मेड इन इंडिया से लेकर बाहुबली को कट्टप्पा ने क्यों मारा तक, रमजान से श्मसान तक,आजम की भैंस से लेकर मेंढक,हाथी, व गधा तक को खूब चर्चा में रहा। चुनाव ख़त्म होने तक विकास, बेरोजगारी, जैसे ज्वलंत गायब हो चुके थे। इस चुनाव में क्या खोया क्या पाया इसका जबाब न तो किसी नेता और न ही जनता के पास है। बेरोजगारों की फ़ौज और गरीबों के आशियाने खोज को इस चुनाव में किसी नेताओं नही दिखा। कहते हैं की जनता सब समझती है। देखना है कि अपने हितों का कितना ध्यान जनता रख पाती है ।सभी पार्टियों ने जोर आजमाइश में कोई कोर कसर नही रखा है। अब परिणाम के बाद ही पता चलेगा कि सोशल इंजीनियरिंग ,जाति, धर्म, क्षेत्रवाद व स्थानीय मुद्दे कितना चुनावों में हावी रहेंगे। धनबल भी चुनाव में इस्तेमाल किया गया ।फिलहाल इसमें कोई शक नही है कि सभी पार्टियां जनता के मूलभूत मुद्दों से भटक चुकी है।इतना जरूर रहा कि युवाओं में विकास व अपने भविष्य को लेकर जरूर मतदान किया है । इस दृष्टि से भाजपा को लाभ मिलता जरूर दिख रहा है। चुनाव संपन्न हो चुका है। पूरे चुनाव में राजनीतिकों ने अपने प्रचार में स्तरहीनता का प्रदर्शन करने में कोई कोर कसर नही छोड़ा है। दागियों का इस चुनाव में बोलबाला रहेगा। अब अन्य राज्यों पंजाब,गोवा,उत्तराखंड, मणिपुर में भी लगभग यही हालात हैं। जहाँ विकास के मुद्दे गौण ही रहे हैं। पंजाब मणिपुर, व उत्तराखण्ड में सत्ता विरोधी लहर दिखी है। वहीं गोवा में सत्ता धारी पार्टी की वापसी की भी सम्भावना दिखाई पड़ रही है। निचोड़ यही निकल रहा है कि आखिर कब राजनीतिक दल वोट से अलग देश व जनता के लिए काम करेंगे।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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