भारतीय राजनीति में कांग्रेस की तरफ से एक और गांधी की एंट्री हुई है ,नाम है प्रियंका गांधी । कभी रिश्तो की डोर लेकर अमेठी की राजनीति में सरगर्मी मचाने वाली कभी मां के चुनाव की कमान संभालती तो कभी भाई राहुल गांधी के चुनाव की कमान संभालने का कार्य प्रियंका गांधी करती थी । प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से उनका नाता राजनीति से जुड़ा रहा है और अक्सर कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में आने के लिए दबाव बनाया जाता रहा है या फिर मीडिया कि लोग जब पूछते कि आप कब आ रही हैं सक्रिय राजनीति में तब जबाब में बस मुस्कुरा कर आगे निकल जाती थी । आज वही प्रियंका गांधी भाई के साथ कदम से कदम मिलाने की सोच लेकर भारतीय राजनीति में आ चुकी हैं । ऐसा नहीं है कि राजनीति में पहली बार आई हैं, मां और भाई के चुनाव को बखूबी संभालती थी इतना ही नहीं उनकी सीटों के अलावा आसपास के जिलों की सीटों में प्रचार भी किया था। अब तक कितना डंका इनका बज चुका है यह तो पिछले इतिहास को देख कर ही पता चलता है ।लेकिन एक बात तय है कांग्रेस जिस हाल में आज खड़ी है प्रियंका गांधी कांग्रेस के नेताओं व कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी की तरह साबित हो सकती हैं ।क्योंकि अनेक कांग्रेसियों का मानना है कि प्रियंका गांधी में इंदिरा जी की छवि दिखाई पड़ती है ,कुछ का मानना है कि जो अब सक्रिय राजनीति में आई यह निर्णय पहले ही ले लेना चाहिए था शायद कांग्रेस की यह हालत न हुई होती । प्रियंका गांधी की राजनीति में इंट्री बीजेपी भले ही न असर करने की बात कहकर टाल दे रही है । लेकिन भीतर खाने में वोे भी चौकन्ना चुकी है। प्रियंका गांधी राष्ट्रीय महासचिव बनने के साथ ही उत्तर प्रदेश के पूर्वी 42 लोकसभा सीटों की प्रभारी भी बनाई गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इनका सक्रिय हो जाने से दलित व मुस्लिम वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ सकता है। जिसका सीधा नुकसान बहुजन समाज पार्टी को मिल सकता है। इससे बसपाई खेमे में बेचैनी अवश्य बढ़ी हुई है । प्रियंका गांधी के राजनीति में उतरने के बाद कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया और गठबंधन की राजनीति को दरकिनार कर दिया है । लेकिन जानकारों का मानना है कि यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच में कहीं ना कहीं अंदर खाने से तालमेल बना हुआ है । जिसे लेकर मायावती भी सशंकित नजर आ रही हैं ।राजनीतिक जानकारों ने अपने तर्क में कहा है कि सपा के लिए कांग्रेस का अधिक लोकसभा सीटें जीतना फायदे का सौदा साबित होगा । क्योंकि अगर बसपा अधिक सीटें जीती है, विधानसभा में भी सपा से अधिक सीटें मांगने का जतन करेगी । इस प्रकार देखा जाए प्रियंका गांधी की एंट्री भले ही जोरदार ना दिखाई दे रही हो। लेकिन अन्य विपक्षी दलों को अंदर ही अंदर बेचैन करने के लिए काफी है । इतना ही नहीं जहां अखिलेश कांग्रेस को एक भी सीट देने के लिए तैयार नहीं थे प्रियंका गांधी की राजनीति में आने के बाद उनकी बड़ी सीधी और सरल टिप्पणी रही । इतना ही नहीं देश के अनेक नेताओं के सुर बदल गए हैं । अब जबकि लोकसभा काफी नजदीक है। इस बीच प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा के ऊपर ईडी का कसता हुआ शिकंजा उनकी छवि को कहीं ना कहीं प्रभावित अवश्य कर रही है । भले ही कांग्रेसी इसे राजनीति का शिकार मानते हैं । इन सारी चुनौतियों को प्रियंका गांधी कैसे संभालती हैं। यह भी उनके लिए अग्निपरीक्षा के समान होगा । इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता वापसी को रोकना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा । साथ ही कांग्रेस पार्टी के संगठन को और मजबूत करने के लिए जी जान एक करना पड़ेगा । फिलहाल प्रियंका गांधी को राजनीति की बखूबी जानकारी है । वह एक अच्छी रणनीतिकार मानी जाती हैं। कहीं ना कहीं राहुल गांधी के लिए एक सशक्त साथी के रूप हर कदम पर साथ होंगी । लोक सभा 2019 के चुनाव में प्रियंका का डंका बजता है या नहीं। इस चुनाव में पता चल जाएगा और पार्टी के लिए कितना कारगर सिद्ध होगी! जो भी हो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और उनके पदाधिकारियों के चेहरे अवश्य खिल उठे हैं।
भारतीय राजनीति में कांग्रेस की तरफ से एक और गांधी की एंट्री हुई है ,नाम है प्रियंका गांधी । कभी रिश्तो की डोर लेकर अमेठी की राजनीति में सरगर्मी मचाने वाली कभी मां के चुनाव की कमान संभालती तो कभी भाई राहुल गांधी के चुनाव की कमान संभालने का कार्य प्रियंका गांधी करती थी । प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से उनका नाता राजनीति से जुड़ा रहा है और अक्सर कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में आने के लिए दबाव बनाया जाता रहा है या फिर मीडिया कि लोग जब पूछते कि आप कब आ रही हैं सक्रिय राजनीति में तब जबाब में बस मुस्कुरा कर आगे निकल जाती थी । आज वही प्रियंका गांधी भाई के साथ कदम से कदम मिलाने की सोच लेकर भारतीय राजनीति में आ चुकी हैं । ऐसा नहीं है कि राजनीति में पहली बार आई हैं, मां और भाई के चुनाव को बखूबी संभालती थी इतना ही नहीं उनकी सीटों के अलावा आसपास के जिलों की सीटों में प्रचार भी किया था। अब तक कितना डंका इनका बज चुका है यह तो पिछले इतिहास को देख कर ही पता चलता है ।लेकिन एक बात तय है कांग्रेस जिस हाल में आज खड़ी है प्रियंका गांधी कांग्रेस के नेताओं व कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी की तरह साबित हो सकती हैं ।क्योंकि अनेक कांग्रेसियों का मानना है कि प्रियंका गांधी में इंदिरा जी की छवि दिखाई पड़ती है ,कुछ का मानना है कि जो अब सक्रिय राजनीति में आई यह निर्णय पहले ही ले लेना चाहिए था शायद कांग्रेस की यह हालत न हुई होती । प्रियंका गांधी की राजनीति में इंट्री बीजेपी भले ही न असर करने की बात कहकर टाल दे रही है । लेकिन भीतर खाने में वोे भी चौकन्ना चुकी है। प्रियंका गांधी राष्ट्रीय महासचिव बनने के साथ ही उत्तर प्रदेश के पूर्वी 42 लोकसभा सीटों की प्रभारी भी बनाई गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इनका सक्रिय हो जाने से दलित व मुस्लिम वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ सकता है। जिसका सीधा नुकसान बहुजन समाज पार्टी को मिल सकता है। इससे बसपाई खेमे में बेचैनी अवश्य बढ़ी हुई है । प्रियंका गांधी के राजनीति में उतरने के बाद कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया और गठबंधन की राजनीति को दरकिनार कर दिया है । लेकिन जानकारों का मानना है कि यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच में कहीं ना कहीं अंदर खाने से तालमेल बना हुआ है । जिसे लेकर मायावती भी सशंकित नजर आ रही हैं ।राजनीतिक जानकारों ने अपने तर्क में कहा है कि सपा के लिए कांग्रेस का अधिक लोकसभा सीटें जीतना फायदे का सौदा साबित होगा । क्योंकि अगर बसपा अधिक सीटें जीती है, विधानसभा में भी सपा से अधिक सीटें मांगने का जतन करेगी । इस प्रकार देखा जाए प्रियंका गांधी की एंट्री भले ही जोरदार ना दिखाई दे रही हो। लेकिन अन्य विपक्षी दलों को अंदर ही अंदर बेचैन करने के लिए काफी है । इतना ही नहीं जहां अखिलेश कांग्रेस को एक भी सीट देने के लिए तैयार नहीं थे प्रियंका गांधी की राजनीति में आने के बाद उनकी बड़ी सीधी और सरल टिप्पणी रही । इतना ही नहीं देश के अनेक नेताओं के सुर बदल गए हैं । अब जबकि लोकसभा काफी नजदीक है। इस बीच प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा के ऊपर ईडी का कसता हुआ शिकंजा उनकी छवि को कहीं ना कहीं प्रभावित अवश्य कर रही है । भले ही कांग्रेसी इसे राजनीति का शिकार मानते हैं । इन सारी चुनौतियों को प्रियंका गांधी कैसे संभालती हैं। यह भी उनके लिए अग्निपरीक्षा के समान होगा । इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता वापसी को रोकना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा । साथ ही कांग्रेस पार्टी के संगठन को और मजबूत करने के लिए जी जान एक करना पड़ेगा । फिलहाल प्रियंका गांधी को राजनीति की बखूबी जानकारी है । वह एक अच्छी रणनीतिकार मानी जाती हैं। कहीं ना कहीं राहुल गांधी के लिए एक सशक्त साथी के रूप हर कदम पर साथ होंगी । लोक सभा 2019 के चुनाव में प्रियंका का डंका बजता है या नहीं। इस चुनाव में पता चल जाएगा और पार्टी के लिए कितना कारगर सिद्ध होगी! जो भी हो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और उनके पदाधिकारियों के चेहरे अवश्य खिल उठे हैं।
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