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जवानों की शहादत से घायल कश्मीर


किसी शायर ने कश्मीर की समस्या पर शायराना अंदाज में कहा.... ये मसला दिल का है , हल कर दे इसे मौला। ये दर्द-ए- मोहब्बत भी, कहीं कश्मीर ना बन जाए।। कवि ने इन कविता की लाइनों में कश्मीर के दर्द को बयां किया है कि कश्मीर का मसला ना सुलझने वाला मसला बनकर रह गया है। देश का कभी सिरमौर कहा जाने वाले कश्मीर को आतंक रूपी एक नासूर रोग लग चुका है। देश आजाद होने के बाद कश्मीर का दो भाग हुआ। जिसमें पाकिस्तान वाले हिस्से को पीओके कहा गया यानी कि पाक अधिकृत कश्मीर , वहीं भारतीय हिस्से को कश्मीर कहा गया गया। सरदार पटेल ने सैकड़ों रियासतों का भारत में मिलाया । केवल यही एक इकलौता राज्य रहा जिसे 35 ए, 370 धारा के तहत विशेष दर्जा के साथ भारत मे शामिल किया गया । एक अलग संवैधानिक अधिकार दिया गया । लेकिन यही विशेष अधिकारों का प्रतिफल रहा कि कश्मीर का एक तबका धीरे-धीरे इसे अपना सर्वोच्च अधिकार मानने लगा और इसी का परिणाम हुआ कश्मीर में एक अलग गुट उभर कर आया। जिसे अलगाववादी गुट कहा जाता है । अगर इस गुट को को पाक परस्त गुट कहा जाए तो अशियोक्ति नहीं होगी। देश व प्रदेश की सरकारों की नीतियों पर भी कश्मीर को लेकर सवाल उठ रहे हैं । आखिर जब सैकड़ों रियासतें भारत में शामिल हो गई तो ऐसी कौन सी बड़ी मजबूरी थी कि इसे भारत में सीधे तौर पर शामिल नहीं किया जा सकता था । क्या तब की सरकार कमजोर थी या फिर कोई और कारण था जो कि इस समस्या ने कश्मीर की जनता को ही नहीं देश को भी परेशान करके रख दिया है। अस्सी के दशक से शुरू हुए आतंकवाद ने कश्मीर की तस्वीर ही बदल कर रख दी है कभी कश्मीर खूबसूरती के लिए इसे जन्नत का नाम दिया जाता था आज वही कश्मीर खूनी मंजर देख रहा है इसकी खूबसूरती पर खून के धब्बे लग गए हैं । जवानों की शहादत से घायल कश्मीर है। आम जनता में त्राहि त्राहि मच गया है। कश्मीरी पंडितों को वहां से पलायन करना पड़ा। शांति का माहौल अशांत में बदल चुका है । बच्चों के हाथों में किताबों के बजाय अलगाववादियों ने पत्थर पकड़ा रखे हैं । युवाओं को रोजगार से विमुख कर वहां के मौलाना वह अलगाववादी इन्हें आतंकी बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने नहीं देना चाह रहे हैं वहीं इन अलगाववादी नेताओं के बच्चे विदेशों में शिक्षा ले रहे आतंक के लिए यह नेता चंदा इकट्ठा कर आतंकवादियों को भेजते हैं और सरकारी सुरक्षा व्यवस्था भारत की ले रखे हैं जिन पर पुलवामा कांड के बाद मोदी सरकार ने कड़ी कार्रवाई करते हुए उनकी सुरक्षा व्यवस्था के साथ-साथ सरकारी सुविधाओं को छीन लिया है यह चीजें पहले ही हो जाना चाहिए था लेकिन राजनीतिक फायदे के लिए अब तक की सरकारें इन्हें सरकारी सुविधाएं मुहैया कराने में ही व्यस्त रहे सब का नतीजा है कश्मीर के हालात इतने बिगड़ चुके हैं जिसकी कीमत जवानों की शहादत से चुकाना पड़ रहा है। अभी हाल में एक गोष्ठी के दौरान मौजूदा राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कश्मीर समस्या को लेकर कई बड़ी बातें कहीं । जिसमें प्रमुख रूप से अब तक की सरकारों की कश्मीर को लेकर उनकी नीतियों को ही दोषपूर्ण बतलाया और इन्हें इस समस्या पर जिम्मेवारी सही ना निभाने का आरोप भी लगाए । उन्होंने यहां तक कहा कि मैं इस पद पर रहूं या ना रहूं लेकिन सच्चाई जरूर कहूंगा क्योंकि हमारी सरकारों की त्रुटियों से कश्मीर समस्या गंभीर हुई है । राज्यपाल की बातों में कहीं ना कहीं सच्चाई जरूर छुपी है । अगर कश्मीर को लेकर केंद्र व राज्यों की सरकारों का नजरिया में सकारात्मक एवं गंभीरता रहा होता तो शायद कश्मीर में आतंकवाद और जवानों की शहादत से दो -चार न होना पड़ता । आज हम आतंकवाद से जूझ रहे हैं, इसके साथ ही देश के भीतर बैठे हुए भितरघातियों से भी जूझ रहे हैं। जिनके बयानों से जवानों का मनोबल तोड़ने का कार्य किया जाता है और आतंकवादियों को शह देने का घृणित कृत्य किया जाता है । जिसमें अलगाववादी नेताओं के साथ-साथ अनेक राजनीतिक पार्टियों के नेता भी शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर जब सरकार द्वारा उरी घटना के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी उस पर भी अनेक पार्टियों के नेताओं द्वारा सवाल उठाए थे । अभी हाल में पुलवामा कांड में में 40 जवानों की शहादत के बाद देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों के बीच घटिया स्तर की बयान बाजी की जा रही है । जोकि न तो देश के हित में है, न ही लोकतंत्र के लिए सही है। देश की जनता केंद्र की सरकार से भी जानना चाहती है कि कश्मीर को लेकर आप की क्या रणनीति है ! क्या जवानों की शहादत जारी रहेगी !आतंकवादियों को प्रायोजित करने वाले देश पाकिस्तान को कब तक जवाब दिया जाएगा ! नदियों का पानी बंद कर किया जा रहा है लेकिन क्या इस पर आने वाले समय में बराबर अमल किया जाएगा! इंपोर्ट एक्सपोर्ट का कारोबार जारी रहेगा ! खेलों पर प्रतिबंध लगेगा या नहीं ! शहीदों की शहादत का बदला लिया जाएगा ! क्या पाकिस्तान को उसी के हिसाब से माकूल जवाब दिया जाएगा जैसे सवालों का जवाब जनता मांग रही है । अलगाववादियों के नेताओं पर सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए सरकार का पैसा खर्च किया जा रहा था जिसे अब केंद्र सरकार ने हटा लिया है लेकिन यही कार्रवाई पहले हो गई होती तो शायद यह पत्थरबाजी भी बंद हो गई होती और जवानों को शहादत भी ना देनी पड़ती साथ ही इनके नापाक मंसूबे सफल नही होते और कश्मीर में शांति कायम होती। जन्नत के रूप में जानी जाने वाली कश्मीर की वादियां आज लहू से सराबोर है । वहां की मस्जिदों में इबादत के बजाय आतंक को ही जन्नत का रास्ता बताया है । यानी की घाटी में आतंक फैलाओ और मर जाने पर जन्नत मिलने की बात कही जा रही है।लेकिन इन नासमझ युवाओं को यह पता नहीं है मौत के बाद जन्नत मिलेगी या फिर नरक उसे तो ऊपर वाला ही जाने लेकिन इतना जरूर है कि जिस कश्मीर की वादियों को बहकावे में आकर नर्क बनाने में लगे हो । यही तुम्हारा जन्नत है। कश्मीर की खूबसूरती के बारे में कहा गया है कि, "गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं) शायद उपरोक्त पंक्तियां की समझ कश्मीर के युवाओं को आ जाये तब उनके हाथों में पत्थर नहीं होंगे ,आतंक नहीं होगा और न ही जवानों को शहादत देने पडेगी। और पूरे कश्मीर में शांति और अमन चैन मुकम्मल होगा । अब समय आ गया है कि कश्मीर की समस्या को हल्के में ना लिया जाए और राजनीति से परे होकर इसके हल के लिए ठोस कदम उठाया जाए ,साथ ही पड़ोसी मुल्क अगर आतंकी भेजने का कार्य करता है तो उसे भी कठोर सजा मिलनी चाहिए। चाहे वह युद्ध का ही परिणाम न हो । आए दिन जवानों की शहादत और उनकी लाशों को देख देखकर देश की जनता ऊब चुकी है । अब जनता फैसला चाहती है। इस समस्या का हल चाहती है। यह समस्या बातचीत से नहीं , बल्कि हथियारों से ही हल हो पाएगी। एक कहावत है कि। ''शठे शाठ्यं समाचरेत्" यानी कि जो जैसा हो उसके साथ उसी प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। @NEERAJ SINGH

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