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इतिहास के पन्नों में दफ्न थी दो भाइयों की अमर कहानी


गुलामी की जंजीर से जकड़े भारत को दासता से मुक्ति दिलाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना सर्वस्व लुटाया। ब्रिटिश शासन काल में भारतीय जनमानस पर हो रहे क्रूर अत्याचार के खिलाफ छिड़ी जंग में क्षेत्र के अनेकों ऐसे वीर योद्धा शामिल रहे जिनकी दास्तान इतिहास के पन्नों में भी जगह नही बना पाए।जिसके पीछे मुख्य कारण ये स्वयं अपने परिजनों से बिछुड़ गए तो समाज क्या परिवार भी इनके हाल व अंजाम से अंजान ही हो गया । इन देश भक्त स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों के परिवार की भी हालात और दशा इतनी खराब हो गयी कि समाज की मुख्य धारा से किनारे हो गए । मुसाफिरखाना क्षेत्र के नेवादा गॉव के ऐसे दो जांबाज देशभक्त भाई थे ।लल्लू सिंह व संकठा सिंह।इन दो सगे भाइयों में बड़े भाई लल्लू सिंह को देश के लिए शहीद होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जबकि छोटे भाई संकठा सिंह नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की ओर से स्वाधीनता आंदोलन की जंग लड़ते हुए ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए थे।नेवादा गॉव के निवासी ये देशभक्त सगे भाई स्वनाम धन्य पिता महादेव सिंह के पुत्र थे । साधारण ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े दोनों भाइयों को शुरू से ही व्यायाम शिकार आदि में अच्छी खासी रूचि थी ।राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने के कारण क्षेत्र युवाओं की फ़ौज में भर्ती होने की रुचि ने इन्हें भी सेना में भरती होने के लिए प्रेरित किया ।दोनों भाइयों की उम्र में भी काफी फर्क था ।लल्लू सिंह संकठा सिंह से उम्र में दस साल बढ़े थे ।इसी कारण लल्लू सिंह पहले फ़ौज में भर्ती हुए थे ।ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ड्यूटी के लिए हांगकांग भेज दिया दूसरी तरफ छोटे भाई संकठा सिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे।25 जनवरी 1931 को संकठा सिंह भी ब्रिटिश फ़ौज में भर्ती हो गए ।दोनों सगे भाई उन दिनों स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष से प्रभावित हुए।पहले लल्लू सिंह ने आजाद हिंद फौज की सदस्यता ग्रहण कर स्वाधीनता आंदोलन में कूदे।सन 1942 में छोटे भाई संकठा भी कहाँ पीछे रहते और ये भी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए ।बड़े भाई लल्लू सिंह देश के लिए शहादत में भी आगे रहे और हांगकांग में रिइनफोर्समेंट यूनिट की ओर से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए दूसरी तरफ संकठा सिंह भी हांगकांग भेज दिए गए ।लल्लू सिंह की शहादत से स्वयं उनका पैतृक गांव नेवादा भी लगभग अंजान ही है । बड़े भाई की शहादत ने छोटे भाई को और भी गौरवान्वित कर दिया और संकठा सिंह भी दूने उत्साह से जंगे आजादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे।इसी बीच सन 1945 में संकठा सिंह भी फिरंगियों की फ़ौज द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने हिंदुस्तान वापस भेज दिया।मद्रास में संकठा सिंह जिगरगच्छ कैंप लाएं गए ।कई वर्षों तक उन्हें मिलेट्री की कैद में रखा गया ।16 मार्च 1946 को संकठा सिंह को फतेहगढ़ से डिस्चार्ज कर दिया गया ।आजादी के बाद काफी दिनों तक अपने गॉव नेवादा में आकर रहे । वर्तमान समय में दोनों भाइयों के सगे भाई बजरंग सिंह का परिवार अपने पैतृक गांव में ही रह रहा है ।बजरंग सिंह के दो पुत्र क्रमशः जश करन सिंह व बृज करन सिंह खेती बाड़ी कर जीवन यापन कर रहे है ।बृज करन सिंह की कहना है कि उन्हें इस बात का गर्व महसूस होता है कि उनका परिवार देश के लिए कुर्बान हुआ है ।लेकिन उन्हें इस बात का मलाल भी रहता है उनका परिवार जिस सम्मान का हकदार है प्रशासन ऐसे कार्यक्रमों में परिजनों को आमंत्रित तक नही करता है ।बीते 15 मार्च को बृज करन सिंह ने जिलाधिकारी डॉ राम मनोहर मिश्र से इस सम्बन्ध में मुलाकात कर पत्र सौंपते हुए सम्बन्धित जानकारी को देने की मांग की थी। जिस पर अब तक कोई सकारात्मक जबाब नही मिला है ।उन्होंने बताया कि वे शीघ्र ही जिलाधिकारी से मिलकर प्रकरण से अवगत कराया जाएगा और यथोचित सम्मान दिलाने की माँग करेंगे । @NEERAJ SINGH

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