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असफलता में ही सफलता की कुंजी



मानव जीवन में सफलता और असफलता एक सिक्के के दो पहलू के समान होते हैं । जिससे हर मनुष्य को अपने जीवन काल रूबरू होना पड़ता है । हर मनुष्य का जीवन में एक मुकाम पाने के लिए सुंदर सपना गढ़ता है,उसे पाने के लिए हर प्रयास करता है । जो इस मुकाम को पाता है वही सफल कहलाता है,जो नहीं पाता है वह असफल कहलाता है ।  कभी-कभी  मनुष्य अपनी पहली ही असफलता में हार मान लेता है और उसका मन इतना कमजोर हो जाता है कि उसे लगता है कि सारा जीवन अब खत्म हो गया है । यहां तक की आत्महत्या तक कर बैठता है ।  यह सिर्फ  उसकी नाकाम सोच भर है,एक कहावत है कि मन के  हारे हार है,मन के जीते जीत है । लेकिन  उसे पता होना चाहिये कि उसकी असफलता ही उसके सफलता की कुंजी है और उसके सपनों के मुकाम पर पहुंचने की पहली सीढ़ी होती है । इसलिए मनुष्य को कभी हार मानना नहीं चाहिए क्योंकि सकारात्मक सोच से ही जीत है , और नकारात्मक सोच से ही हार होती  है । अब हम आपको एक छोटी सी कहानी सुनाते हैं जिसमें एक छोटी सी चींटी अनाज के दाने के साथ एक दीवार पर चढ़ने लगती है,लेकिन  वो गिर जाती है ,जब दोबारा चढ़ती है ,फिर गिर जाती है,लेकिन वो हार नहीं मानती और बार- बार चढ़ने का प्रयास करती है । चींटी  के चढ़ने और गिरने के संघर्ष में एक बात अवश्य देखने को मिलती है कि जितनी बार वह गिरती है उतनी बार वह अधिक ऊंचाई तक  दीवार पर चढ़ती है और इन संघर्षों के बीच आखिरकार दीवार पर चढ़ने में सफल हो जाती है । इस कहानी से यही सीख मिलती है कि बार-बार असफलता मिलने से हमें घबराने की आवश्यकता नहीं है,बल्कि  सच्चे मन से अगर प्रयास जारी रखा जाए तो सफलता अवश्य ही मिलेगी । इसी तरह बहने वाली नदी को देखा जाए तो अपने उद्गम से निकलने के बाद ना जाने कितनी बाधाओं को पार  करते हुए आखिरकार में सागर में समाहित हो जाती है । ठीक उसी प्रकार एक सफल मनुष्य जीवन में संघर्ष करते हुए सभी प्रकार की बाधाओं को पार करते हुए अपने सपनों को साकार करते हुए अपना मुकाम हासिल करता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की    कविता की पंक्तियां याद दिलाती है एक सफल व्यक्ति क्या सोचता है--
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।
अगर मनुष्य के मन में ठोस संकल्प धैर्य  व संयम है, सफलता अवश्य उसके कदम चूमेगी। अभी हाल में देश में फिल्मी जगत का उभरता सितारा सुशांत सिंह राजपूत की मौत  एक पहेली बनकर रह गई है,जिसमें पुलिस  सीबीआई उलझी है ,उसकी मौत हत्या है या आत्महत्या। क्योंकि शुरुआत में उसे डिप्रेशन का शिकार बताया गया। इस मामले में भी सफलता व  असफलता की कहानी जरूर कहीं ना कहीं जुड़ी हुई है । लेकिन मानव को यह जानना चाहिए कि असफलता में ही सफलता के ताले की कुंजी है । सफल होने के लिए असफलता के भय से अधिक सफलता की चाहत होना चाहिए। किसी विद्वान ने कहा है कि सफलता व असफलता के बीच बारीक रेखा होती है ,जिसे पार करना होता है। असफलता की समीक्षा से ही सफलता का रास्ता निकलता है।असफलता-सफलता की ऊंचाई की सीढ़ी के समान है । इसलिए हमें असफलता से यह नहीं मान लेना चाहिए कि  अब सब कुछ खत्म हो गया है ,जबकि यही सफलता की शुरुआत है।

@NEERAJ SINGH

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