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सरलता,ईमानदारी एवं त्याग की प्रतिमूर्ति थे डा0रूद्र प्रताप सिंह

पूर्व सांसद डा0 रूद्र प्रताप सिंह का निधन अमेठी- ईमानदार व कर्मठ पूर्व संासद डा0 रूद्रप्रताप सिंह के बीमारी के चलते चलते आकस्मिक निधन से क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी। कस्बा व्यापारियों ने दुकाने बंद करके शोक सभा में दो मिनट का मौन रखकर श्रन्द्राजंलि अर्पित की। दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे जामों रियासत के राजा व पूर्व सांसद डा0 रूद्रप्रताप सिंह 80 वर्ष का निधन लखनऊ में एक निजी अस्पताल में भोर सुबह तीन बजे हो गया। ये कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन की सूचना मिलते ही क्षेत्र में शोक की लहर दौड गई। उनके पैतृक गांव जामों में लोगों सूचना मिलते कस्बा जामों के बाजार की दुकानें एवं स्कूल व कालेज बंद हो गये। निधन की सूचना पर उनके भतीजे प्रतापगढ एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह ऊर्फ गोपाल व गौरीगंज विधायक राकेश प्रताप सिंह लखनऊ आवास पहुंच गये। लखनऊ में ही उनकी अंतेष्टि किया गया,उन्हे इकलौते पुत्र रविप्रताप सिंह मुखाग्नि दी । जगदीशपुर विधायक राधेश्याम सहित विशिष्टगण मौजूद रहे।जामों कस्बे के व्यापारियों ने कस्बे में व्यापारमण्डल अध्यक्ष शिवप्रताप मिश्र की अध्यक्षता में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर नरेन्द्र बहादुर सिंह, सीताराम अग्रहरि, संदीप अग्रहरि, कुलदीप, सुरेन्द्र सिंह, रामकिशुन, रोहित पिन्टू, मिट्ठूप्रेमशंकर पाण्डेय, रामकुबेर,रामयज्ञ यादव मौजूद रहे। सरलता,ईमानदारी एवं त्याग की प्रतिमूर्ति थे डा0रूद्र प्रताप सिंह नीरज सिंह अमेठी- एक राजपरिवार में जन्में डा0 रूद्रप्रताप सिंह सरलता,ईमानदारी व त्यागी पुरूष के रूप में क्षेत्र की जनता जानती थी। उनके पास दिखावा की कोई जगह नही थी। राजनीति में लोकतंत्र के सभी सदनों का प्रतिनिधित्व करने वाले उन्हे जनता कुंवर साहब के नाम से पुकारती थी। उनकी देश में ही नही वरन् अन्तर्राराष्ट्रीय स्तर पर एक अच्छे स्वच्छ छवि व प्रखर वक्ता के रूप में पहचान थी। इनका जन्म 12 मई,1936 को जिले ग्राम जामों में राजा उमारमण प्रताप बहादुर के यहां हुआ था। इनके छोटे भाई लाल शिवप्रताप सिंह थे। जिनके पुत्र अक्षय प्रताप सिंह प्रतापगढ से विधान परिषद के सदस्य हैं।कुबंर साहब का विवाह बहराईच जिले के रेहुआ स्टेट राजकुमारी रूद्र कुमारी से हुआ था। इनके इकलौते पुत्र रविप्रताप सिंह व तीन बेटियां हैं। इन्होनें इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए,लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए करके पी0एच0डी0 की उपाधि ली।इनका राजनीति सफर 1962 में शुरू हुआ,जब गौरा-जामों ( वर्तमान में गौरीगंज विधानसभा )विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। इसके बाद 1967 में प्रतापगढ-सुलतानपुर-बाराबंकी स्थानीय निकाय प्राधिकारी क्षेत्र से विधान परिषद के लिए चुने गये थे। उसके 1971 में बाराबंकी से लोकसभा चुनाव में विजयी होकर संसद में पहुंचे थे। 1977 में जनता लहर के चलते चुनाव हार गये थे। सन् 1980 में उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के लिए चुने गये कार्यकाल पूर्ण होने के बाद पुनः 1986 में राज्य सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। इसी बीच जनवरी 1984 से दिसम्बर 1985 तक उन्होंने ने उ0प्र0 सहकारी संघ के अध्यक्ष के रूप में अतिरिक्त कार्यभार संभाला। डा0 साहब ने कांग्रेस के प्रति अटूट निष्ठा के साथ और पूर्ब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व राजीव गांधी के बेहद करीबी विश्वासपात्र रहे। उन्हे इनकी सरकारों ने अन्तर्राराष्ट्रीय मंचों पर भी भेजा जिसे डा0साहब ने बखूबी निभाया।1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभामें भारत के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। उन्हे 1976 व 1981 में निर्गुट सम्मेलन में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व का मौका मिला। उन्होनें भारत की ओर फ्रांस,इटली ,इंग्लैंड,जर्मनी,कोरिया जापान सहित दर्जनों देश जाकर अन्तर्राराष्ट्रीय सद्भावा एवं िवश्व शांति के लिए यात्रायें की। इन्हंे हिन्दी से अगाध प्रेम था, वे अन्तर्राराष्ट्रीय हिन्दी प्रचार एवं प्रसार समिति के अध्यक्ष भी रहे। कहा जाता है कि नरसिंहा राव सरकार में रक्षा राज्य मंत्री पद से नवाजा जा रहा था लेकिन इन्होनें गांधी परिवार के प्रति लगाव और सक्रिय राजनीति में सोनिया गांधी के ना आने से क्षुब्ध डा0 साहब ने पद लेने से इंकार कर दिया था। राजपरिवार में जन्में होने के बावजूद डा0 साहब की पंक्तियां जोकि संसद में कही थी उनके विचारों से स्पष्ट हो जाता है कि सामंतवाद के कितने खिलाफ थे- जी में आता है कि सूरज, चांद,तारे नोच लूं, सैकडों शोषक हैं नजर के सामने,, बस इतना ही कहना है कि आज हम एक सरल, ईमानदार, स्वच्छ,बेदाग,छबि के राजनीति के पुरोधा को खो दिया जो कि आज की राजनीति में कम ही मिलते

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