नीरज सिंह
विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश भारत इस वक्त कई अग्नि परीक्षाओं से गुजर रहा है। देश की मोदी सरकार को देश के युवाओं को मेक इन इंडिया के तहत उनके सपनों को पूरा करने का बडा लक्ष्य पाना है वहीं पडोसी देश भारत के संयमता का इम्तिाहान लेने में जुटा हुआ है। वहीं विश्व मंच पर अपनी उपयोगिता साबित करने की कठिन चुनौती है। इन सबमें सबसे बडी चुनौता देश के अंदर बैठे ओछी राजनीतिक रहनुमा जो आये दिन कश्मीर से लेकर सर्जिकल स्ट्राईक ओर आतंकी एनकाउंटर का लेखा जोखा मांग रहे हैं। इन्हे इन हरकतों से देश की साख को कितना आघात पहुंचेगा,इसका अंदाजा इनको नहीं है। इनको सिर्फ अपने वोट बैंक की चिंता है। चैनलों पर राष्ट्रवादी भावना के बडे बडे बोल बोलने वाले ये नेता क्या कह रहे हैं इन्हे खुद पता नही है या फिर जानबूझकर बोला जा रहा है। स्तरहीन राजनीति करने वाले आतंकियों को समर्थन देने से नही चूक रहे हैं। 30 दिसम्बर की रात में करीब दो बजे प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिम्मी के आठ खूंखार आतंकी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के सेंट्रल जेल से एक जेल के सुरक्षाकर्मी की हत्याकर भागने में सफल रहे। पुलिस व एटीएस टीम ने भागने के 10 घंटे के अंदर जेल से 15किमी0 स्थित पहाडी पर छिपे आतंकियों को एनकाउंटर में मार गिराया । फिर क्या था पूरी घटना की लोगों को जानकारी भी नही हुई कि कैसे क्या हुआ कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह व कांग्रेस वरिष्ठ नेता कमलनाथ व ओवैसी ने पूरे एनकाउंटर पर ही सवाल खडा कर दिया। इतना ही नही सभी दलों नेता सत्ताधारी भाजपा को पानी पी पी कर कोसना शुरू किया कि एनकाउंटर फर्जी था। उनमें सीपीआईएम की बृन्दाकरात,आप के मुखिया व दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल शामिल हैं। इतना हो हल्ला होने का कारण सिर्फ ये है कि मारे गये आतंकी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं।जबकि मुख्यमंत्री शिवराज चैहान ने एनआईए से जांच कराने की बात किया है। ऐसा पहली बार नही हुआ है कि आतंकियों का साथ इन ओछी राजनीति करने वाले नेताओं ने दिया हो। इससे पूर्ब इशरतजहां काण्ड, बटाला एनकाउंटर, अफजल गुरू, सर्जिकल स्ट्राईक तक पर इन सेकुलर नेताओं सवाल उठाये हैं। इनका मानना है कि भागे आतंकियों को बुलाकर बैठाया जाना चाहिए और पूछना था कि आप क्यों भागे क्या जेल में कोई तकलीफ थी। आतंकियों को हाफिज सईद साहब से शब्द बोलने वाले अपने देश के जवानों की कार्यवाही का हिसाब मांगने वाले ऐसे नेताओं पर देशद्रोह का मुकदमा होना चाहिए। इन्ही वक्तव्यों के चलते एक आतंकी मां ने बेटे को शहीद की उपाधि दे डाली। अगर ऐसे गद्दार नेता देश में रहे तो वो दिन दूर नही कि आतंकियों की भी शहीद का दर्जा मिलने लगेगा। अरे कुछ तो शर्म हया है कि नही जवानों की शहादत पर तालू चिपक जाती है और आतंकियों के लिए आवाज निकलने लगती है और बताते हैं कि हमसे बडा देश भक्त कोई नही है। लोकतंत्र में कहने का अधिकार है तो इसका मतलब ये नही कि देश की व्यवस्था पर ही सवाल खडा करो,आतंकियों का समर्थन करो। भारत सरकार से गुजारिश है कि ऐसे लोगों को जो अपने ही देश की अस्मिता पर सवाल उठा रहे हैंएउन्हे सलाखों के पीछे होना चाहिए।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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