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मोदी का खौफ या अस्तित्व को लेकर मज़बूरी का गठबंधन!


देश के सबसे बड़े जनसंख्या वाले राज्य एवं लोकसभा के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश में दो क्षेत्रीय दलों के गठबंधन ने भारतीय राजनीति में खलबली मचा कर रख दी है। देश में राजनीति के बदलते तेवर देखने को मिल रहा है। विचारों और सिद्धान्तों के दुश्मन आज गले मिल रहे हैं ,गठबंधन बना रहे हैं। कहीं मोदी की ख्याति और सफलता का खौफ तो नही है! राजनीति में कब कैसे उलट-पलट हो जाय कोई इस बात का गुमान नही कर सकता है सब कुछ उसके हिसाब से चल सके । वर्तमान समय यही कुछ राजनीतिक परिदृश्य तैयार हो रहा है। किसी समय इंदिरा गांधी के विरोध में विपक्षियों का गठबंधन बनते थे, जिसका नतीजा जनता पार्टी की सरकार बनी थी, भले ही सफल न हुई हो। अब लोकसभा 2019 में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती व  समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने प्रदेश की 80 सीटों में 38-38 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है । वहीं अमेठी व  रायबरेली लोकसभा में कांग्रेस के  राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के खिलाफ  दोनों सीटों पर कोई प्रत्याशी ना उतारने का फैसला किया है ,अन्य दो सीटें अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ दी है । वैसे  लखनऊ के गेस्ट हाऊस कांड के बाद दोनों दल एक दूसरे के दुश्मन थे । लेकिन अब बकौल  मायावती  गठबंधन को भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए और जनता के लिए आवश्यक है। अब देखने की बात है कि नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए यह गठबंधन कितना कारगर साबित होता है यह तो समय के गर्भ  है।  इस गठबंधन से पूर्व यह दोनों दल 1993  में विधानसभा चुनाव में मिलकर चुनाव लड़ा था। गठबंधन 175 सीटों पर जीत हासिल की थी और भाजपा को भी 175 सीट पर रोककर भाजपा की सरकार बनने से रोका था।  क्या यह गठबंधन  वही इतिहास फिर दोहराएंगे! गौरतलब हो कि 2014 के लोकसभा चुनाव में में बहुजन समाज पार्टी 19.77 प्रतिशत मत प्राप्त कर एक भी सीट नहीं जीत सकी थी, वहीं समाजवादी पार्टी 22.35 प्रतिशत पाने के बावजूद मात्र 04 सीटों पर ही  जीत मिल सकी थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केंद्र की सरकार बनने वाले  ताले की कुंजी उत्तर प्रदेश  से ही मिलती हैं।गत चुनाव में  दोनों पार्टियों का अगर मिले मतों का योग करें तो 44% से अधिक मत मिल  रहा है। जिससे आधे से अधिक सीटें मिल सकती हैं। माया और बबुआ की जोड़ी ने कांग्रेस को भी झटका दे दिया है। वहीं भाजपाइयों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गए हैं । भले ही दिल्ली के रामलीला मैदान में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दावा करें कि इस बार 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा की उत्तर प्रदेश में पिछली बार से भी अधिक सीटें जीतने में कामयाबी मिलेगी , यह कहकर कार्यकर्ताओं का मनोबल भले ही बढ़ा रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की जातीय आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी भागीदारी पिछड़ों की 45% है । दलितों की आबादी 20% जिसमें सर्वाधिक 14% जाटव जाति के हैं ,जो कि मायावती के मूल और बैंक माने जाते हैं । मुस्लिमों की हिस्सेदारी 19% है। सपा में पिछड़ी जाति एवं मुस्लिम गठजोड़ व साथ में बसपा के दलित शामिल हो जाते हैं तब दोनों का करीब 70% वोट बैंक बन जाता है । जोकि भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है । वहीं कांग्रेस सामान्य वर्ग के वोट बैंक को काटकर भाजपा  के लिए और मुसीबत बढ़ा देगी ।इसीलिए सपा व बसपा ने कांग्रेस को वोट कटवा पार्टी मानकर अपने गठबंधन में शामिल ना करने का निर्णय लिया है । इससे पूर्व भी बसपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था और 2017 के विधानसभा चुनाव सपा व कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन यह प्रयोग सफल रहा था क्योंकि कांग्रेस के वोट इन दोनों दलों में ट्रांसफर नहीं हुए थे ,जबकि कांग्रेस को फायदा मिला था। अब सवाल उठ रहा है कि बीजेपी के लिए इस गठबंधन से कैसे निपटा जाए, परेशान कर रहा है । सपा-बसपा का गठबंधन के कई मायने निकाले जा रहे हैं । विगत लोकसभा व विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार दोनों पार्टियों की हालत पतली हुई थी, इससे इनकी वजूद पर ही सवाल उठने लगे थे । अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए दो विरोधी धुरी वाले दल 25 वर्ष बाद एक बार फिर एक मंच पर आये हुए हैं । इतना ही नहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना कि मायावती 2019 के चुनाव में बड़ी पार्टी की नेता बनकर उभरना चाहती हैं। जिससे प्रधानमंत्री की दावेदारी को पुख्ता कर सकें । उत्तर प्रदेश को उन्होंने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के लिए छोड़ना चाहती हैं ,और स्वयं केंद्रीय राजनीति में पैठ बनाने की सोच रही हैं । इससे यह समझना चाहिए कि बुआ को पीएम और बबुआ  सीएम की कुर्सी का सपना दिख रहा है । यह कहना भी गलत ना होगा कि राजनैतिक आकांक्षा पूरी करने के लिए बनाया गया गठबंधन है । लेकिन इन दोनों दलों के नेताओं का मानना है कि यह गठबंधन महत्वाकांक्षा का नहीं , मोदी सरकार को रोकने के लिए और जनता के हित में बनाया गया गठबंधन है ।  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस गठबंधन को अवसरवादी व भ्रष्टाचारी गठबंधन का नाम दिया है । लेकिन एक बात तो तय है इस गठबंधन के बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में 2014 का प्रदर्शन दोहराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन दिखाई दे रहा है । 10% मिलने वाले गरीब सवर्णों का आरक्षण बिल से स्थितियों को कंट्रोल करने का बीजेपी ने जो प्रयास किया ,उस पर उत्तर प्रदेश में इस गठबंधन ने आशाओं  पानी फेर दिया है । अब देखने वाली बात यह है कि बीजेपी के नेताओं द्वारा किस रणनीति के तहत इन दलों के गठबंधन को असफल करने का मंत्र ढूंढते हैं ,यह आने वाले समय में ही पता चल सकेगा । मायावती का प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार होगा ,राहुलगांधी,ममता, के सामने यूपीए की सर्वमान्य नेता बनेगी या फिर मोदी की पुनः ताजपोशी होगी। बहुत सारी बातों का जबाब का इंतजार सभी देशवासियों को है। फिलहाल आगामी 2019 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन व भाजपा के बीच रोचक मुकाबला दिखेगा।
@NEERAJ SINGH

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