
आरक्षण का खेल ,मोदी का मास्टर स्ट्रोक
राजनीति अनिश्चितताओं भरा खेल है। कब कौन राजनीतिक दल व उसके नेता की किस्मत पलट जाय किसी को पता नही होता है। हर पल हर घड़ी संशय से भरा है। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया । बीजेपी के मूल वोटबैंक सवर्णों की नाराजगी राज्यों के हुए चुनाव में खूब दिखा । जहाँ सीटों के जीत हार का अन्तर से अधिक नोटा वोटों संख्या थी। जिससे मध्य प्रदेश व राजस्थान की सत्ता से बाहर जाना पड़ा है। सवर्णों की एसएसी/एसटी एक्ट को लेकर नाराजगी को देखते बीजेपी नेताओं के माथे पर चिन्ता की लकीरें खिंच गई । इसके प्रभाव को काम करने व सवर्णों को मनाने के पार्टी मंथन चल ही रहा था , कि राम मंदिर मुद्दा बड़ी जोर शोर से शुरू हो चुका था । संघ,विहिप, साधु-संतो,व हिन्दू संगठनों का दबाब इस मुद्दे पर बढ़ता जा रहा था । जोकि अब भी जारी है। इसी बीच बसपा व सपा का महागठबंधन यानी बुआ व बबुआ का गठजोड़ हुआ,जोकि बीजेपी के लिए यूपी में अच्छा संकेत नहीं है। क्योंकि कहा जाता है देश में सरकार बनाने का रास्ता यूपी से ही गुजरता है । अब कांग्रेस सहित विपक्षियों के चहुंओर हमले से मोदी व भाजपा की हालत महाभारत के जैसी हो गई जैसे अभिमन्यु को चारों तरफ से चक्रव्यूह में फंसा रखा था। लेकिन इसी बीच मोदी सरकार द्वारा नए वर्ष में केबिनेट की पहली बैठक में एक नया फैसला लिया, जिस में सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% सरकारी नौकरी व शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण दिया जाएगा । इस अहम फैसले ने राजनीतिक गलियारों हड़कंप मचा दिया है । संभवत शीतकालीन सत्र की अंतिम दिन 8 जनवरी को इस बिल को सरकार की तरफ से लाने संभावना है इस फैसले ने आरक्षण को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है ।तरह तरह की बयानबाजी शुरू हो गई है ।अनेक प्रकार की अटकलें लगाई जाने लगी कि यह सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए लिया गया कदम है ,ऐसा विपक्षियों द्वारा माना गया है । वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक है। इस फैसले से सवर्णों में खुशी की लहर फैल गई । वहीं कुछ सवर्ण विद्वानों का मानना है कि आरक्षण की पूरी प्रक्रिया को ही आर्थिक आधार पर लाना चाहिए । जिससे गरीब जनता को इसका लाभ मिल सके और क्रीमी लेयर को हटाया जा सके ।जातिगत राजनीति करने वाली पार्टियों के हाथ से मानो तोता ही उड़ गया हो। उनका इस संबंध में कुछ साफ-साफ कहने में हिचकिचाहट दिख रही है । कांग्रेस पार्टी जिनका वोट बैंक सवर्ण से ही जुड़ा है। वह भी पशोपेश में दिख रहे हैं। आरएलडी हो ,या सपा और या फिर बसपा हो सभी राजनीतिक दल बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक से हक्के बक्के हैं। राजनीतिक जानकारों बुद्धिजीवी व सामाजिक प्रबुद्ध सभी एक नई बहस में जुटे हैं । संविधान की धारा 15 में परिवर्तन के लिए सरकार बिल लाना चाहती है ।क्या यह बिल को पास करने में सफल होगी ? धारा 16 में आर्थिक शब्द को जोड़ पाएगें या नहीं !वहीं इस फैसले को लेकर राजनीतिक पार्टियां सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे या फिर 60 % आरक्षण हो कर रहेगा! आरक्षण को लेकर समीक्षा की आवश्यकता होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए ? अनेक सवाल आने वाले समय में इस बहस का मुद्दा बनेंगे या फिर 2019 लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर वही होगा जो 1992 पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने इस प्रस्ताव को आया था और इसका बिल पास नहीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट के आधार पर इस पर रोक लगा दी गई थी ।दूसरी बार इस तरह का प्रयास मोदी सरकार द्वारा लाया गया है ।देखने वाली बात है कि उन गरीब सवर्णों को न्याय मिल पाएगा या नहीं । इतना ही नहीं देश में अनेक हिस्सों में महाराष्ट्र गुजरात राजस्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि स्थानों पर सवर्ण जातियों जाट मराठा पटेल पाटीदार स्वर्ण जातियों का आंदोलन आरक्षण के लिए ही चला था। इनके आंदोलन का प्रतिफल आर्थिक आधार पर सवर्ण को मिलने वाला 10% का आरक्षण मिल पाएगा या फिर एक बार प्रधानमंत्री मोदी के का जुमला साबित होगा बकौल हार्दिक पटेल। फिलहाल सरकार के इस फैसले से आरक्षण को लेकर देश में नई बहस जरूर छिड़ गई है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि बिल पास हो या न हो एक बात अवश्य है कि विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के लिए ये फैसला सांप छछूंदर जैसी है, न ही निगलते बन रहा है न और न ही उगलते बन रहा है ।क्योंकि कांग्रेस के लिए भी सवर्ण आधार वोट बैंक हैं। सवर्ण वर्ग इस फैसले से बहुत खुश दिख रहा है, विशेषकर युवा वर्ग और उसे मशहूर शायर
बशीर बद्र की ये लाइनें जरूर याद आती होंगी.....
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा ,
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है।
@NEERAJ SINGH
आखिर पास हो गया बिल
जवाब देंहटाएंHistorical
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