कंबल खूब बंटे, ठंडी फिर भी न गई गरीबों की, बीत गया मौसम हो गया घोटाला

मौसमी घोटाला........................... कंबल खूब बंटे, ठंडी फिर भी न गई गरीबों की, बीत गया मौसम हो गया घोटाला दोस्तों आपको अजीब लगा होगा कि बहुत घोटाले सुने हैं लेकिन ये घोटाला कौन सा है। आपको बता दे कि ये घोटाला मौसम के अनुसार ही होता है यही हकीकत है। ये प्रत्येक वर्ष आता आईये जरा इसके बारे में विस्तार से बात करते हैं। इस मौसमी घोटाले का सम्बंध गरीबी से जुडा हुआ है। सर्दी का मौसम आ चुका है, जिन गरीबों के तन पे कपडा नही है उनको ठंड लगना लाजिमी है।इसके लिए उनके लिए गर्म कपडे का बंदोबस्त करना स्वाभाविक है। इसके लिए सरकार सहित बहुत सी स्वयं सेवी संस्थायें सक्रिय हो जाती है। गरीबों के बदन ढकने और उन्हे ठंड से राहत पहुंचाने के लिए जुट जाते हैं। लेकिन इनके पीछे बहुत ही बडा गोरख धंधा होता है जोकि गरीबों की आड में ये खेल खेला जाता है। अब जानिए ये कैसे होता है। पहले सरकार इमदाद के बारे में बात करते हैं जिसमें कम्बल बांटने के लिए प्रदेश सरकारें जिलों को धन आवंटित करती है जिन्हे जिले का प्रशासन कम्बल आपूर्ति के लिए बाकायदा टेण्डर निकालता है । सबसे कम रेट वाले को कम्बल आपर्ति के लिए नियुक्ति किया जाता है,फिर शुरू होता है असली खेल जिसमें करीब तीन सौ के आस पास के रेट की स्वीकृति होती है और कम्बल की सप्लाई सौ से सवा सौ तक होती है । इसी अन्तर के बंदरबांट में प्रशासन के अधिकारी शामिल होंते हैं। इस प्रकार प्रदेश स्तर करोडों का घोटाला प्रतिवर्ष होता है। वही कम्पनियां और स्वयसेवी संस्थायें भी अपने काले धन को सफेद करने व आयकर से बचने के लिए गरीबों का ही सहारा लेते हैं। सौ कम्बल बांट कर हजार कम्बल का वितरण दिखलाने का काम किया जाता है। इस प्रकार होता है मौसमी घोटाला........................दोस्तों आखिर हो गया मौसमी घोटाला सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा उपरोक्त में लिखा जा चुका है। अधिकारियों व व्यापारियों का बंदरबांट हो गया और गरीबों की ठंडी भी नही गई और हजारों कंम्बल अधिकारी ,नेता व स्वयं सेवी संस्थायें बांट दिया और वाह वाही के साथ गरीबों के हक लूटने में कामयाब रहे।अगले वर्ष के घोटाले के इंतजार में बैठ गये हैं।

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