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समाज में अनैतिकता के खिलाफ की लड़ाई में सफर.... न्याय से इच्छा मृत्यु तक !


 समाज में आज भी कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि मानवता को कलंकित करने में पीछे नही होते हैं। अपने से कमजोर लोगों को चाहे वो जाति के नाम ,धर्म के नाम पर परेशान करना इनकी फितरत में होता है। इनका शिकार कभी कभी दिव्यांग ही क्यों न हो । इन्हें तो इन लाचारों पर भी तरस नही आता है।इन पीड़ितों की सुनवाई शासन प्रशासन भी नही सुनते हैं। अंत में इन्हें मौत का ही सहारा दिखता है। आइये हम बानगी के तौर एक घटना का जिक्र करते हैं। थानाक्षेत्र शिवरतनगंज के पूरे कैथन मजरे टेढ़ई निवासी एक दिव्यांग ने पडोसी दबंगों के आतंक से परेशान होकर गाँव से पलायन कर दिया और किराये पर हैदरगढ़ कस्बे में निवास कर रहे दिव्यांग ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की मांग की है ।  जानकारी के मुताबिक गाँव निवासी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव अपने पड़ोसियों के आतंक से क्षुब्ध होकर गाँव से पलायन कर चुकें हैं प्रमोद कुमार श्रीवास्तव  की माने तो मामले की शिकायत को लेकर थाने से लेकर जनपद स्तरीय व राज्य स्तरीय उच्चाधिकारियों को भेजी थी परन्तु कोई कार्यवाही न होने से परेशान दिव्यांग ने गाँव से पलायन करने का निश्चय कर लिया और 9 सितम्बर को परिवार सहित प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने गाँव छोड़ दिया|दो महीने से हैदरगढ़ में किराए पर रह रहे प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी है|बतातें चलें कि प्रमोद कुमार श्रीवास्तव के पिता शिवचंद्र श्रीवास्तव सेवानिवृत्त शिक्षक हैं और पुत्र व बहू के साथ घुमंतू जीवन जीने को मजबूर हैं|क्षेत्र के बहुत से लोगों को इस दिव्यांग से हमदर्दी तो है परन्तु मदद करने के लिए कोई आगे नही आ रहा है|स्थानीय पुलिस भी कार्यवाही के बजाय मामले को दबाने में जुटी है|पीड़ित की माने तो लगातार चार महीने से की जा रही शिकायत पर कार्यवाही की कौन कहे कोई पूछने तक नही गया|  अब सवाल उठता है कि रामराज्य की दुहाई देने वाली योगी सरकार एक दिव्यांग की सहायता करने विफल है तो रामराज्य की परिकल्पना करना ही बेमानी है।  वही सबका साथ सबका विकास के नारे का क्या होगा । लेकिन अगर संघर्ष के बाद भी समाज या शासन से न्याय नही मिलना क्या इच्छा मृत्यु मांगना कहाँ उचित होगा !समाज के ऐसे असामाजिक तत्वों के प्रति लोगों को सजग रहने की आवश्यकता है।पीड़ित का साथ देना व इंसाफ की लड़ाई में भागीदार होना हमारे संस्कार व मानवता कहती है। लोकतंत्र में सबको बराबर जीने का हक़ है । उसे छीनने की कोशिश करने वालों सबक सिखाना सरकार ही नही वरन् आपका भी अधिकार व फर्ज दोनों होता है। तभी हम समाज में इज्जत व सम्मान से जी सकते हैं। इच्छा मृत्यु ही आखिरी रास्ता नही होता है। ये एक कायर भरा कदम है। ऐसे कदम से आपका भी समाज की नजर में कोई अच्छा कार्य नहीं रहेगा। हमें तो सोचना चाहिए कि प्रभु ने पृथ्वी का सबसे अच्छा जीवन मनुष्य योनि दिया है। इसे ऐसे ही गवांना नही चाहिए। हार के डर से जीवन से भागना कहाँ उचित है। क्योंकि हार के बाद ही जीत की शुरुआत होती है। हाँ हम सभी नागरिकों का फर्ज है कि समाज को गन्दा व बदनाम करने अराजक तत्त्वों  के खिलाफ इकट्ठा होकर इनका सफाया करें। और इनके जुल्मों सितम से कमजोर ,लाचार, निरीह लोगों को सुरक्षा व न्याय दिलाने में सहयोग करना चाहिये।
@NEERAJ SINGH

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