सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पद्मावती फिल्म का विरोध-------- सामाजिक आक्रोश !

पद्मावती फिल्म को लेकर आजकल देश भर में आक्रोश व प्रर्दशन देखने को मिल रहा था। पहले तो इस फिल्म से क्षत्रिय व राजा रजवाडे ही विरोध करते हुए दिखे लेकिन अब अनेक हिन्दू संगठन भी सामने आ गये हैं। उनका कहना है हमारे इतिहास व संस्कृति के साथ फिल्म मेकर खिलावाड कर रहे हैं, जिसे बर्दाश्त नही किया जा सकता है। इस बात से अनेक इतिहासकार व प्रबुद्ध वर्ग  का बडा तबका भी  सहमत दिख रहा है। करणी सेना के बैनर तले हजारों की संख्या में लोग देश भर में इस फिल्म के विरोध में लामबंद हो रहे हैं। इसे राजनीतिक रूप भी नेता लोग देने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा के अनेक नेता खुलकर सामने आ गये हैं। वहीं कांग्रेस में इसे लेकर मतभेद है। कांग्रेस के नेता शशि थरूर इसका समर्थन करते दिखे तो ज्योतिरादित सिंधिया खुलकर इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं। इस फिल्म में रानी पद्मावती के किरदार को तोड मरोड कर पेश करने की बात की जा रही है। जोकि गौरवशाली व बलिदानी जौहर करने वाली रानी का अपमान माना जा रहा है। जबकि फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली व पद्मावती का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का कहना है कि ऐसा कुछ नही है,पहले फिल्म को रिलीज होने दें। बिना फिल्म देखे ही विरोध करना उचित नही हैं। भजपा नेता सुब्रहमन स्वामी ने तो इस फिल्म के निर्माण पर ही सवाल उठाते हुए फिल्म निर्माता पर गंभीर आरोप जड दिये हैं। उनका कहना है कि इसके निर्माण में खाडी देश का पैसा लगा है,इसकी जांच होनी चाहिए।ये तो हुई किसने क्या कहा क्या नहीं। अब जरा विवादित फिल्मों पर भी बात कर लें। बहुत सी ऐसी भी फिल्में है जो बनती तो हैं पर किसी न किसी कारण हम उसे देख नहीं पाते। ऐसी फिल्मों पर सेंसर बोर्ड प्रतिबंध लगा देता है। इन प्रतिबंधित फिल्मों के पीछे कई कारण होता है। अश्लील भाषाए अश्लील दृश्यों के अलावा कई फिल्में धार्मिक कारणोंए लिंग भेदभाव जैसे कई और भी कारण यह विवादों में फंस जाती है। बॉलीवुड की ऐसी ही फिल्मों के बारे में हम आपको बता रहे हैं जो अपने समय में सबसे ज्यादा विवादित रहा। इनमें से कुछ फिल्में अब भी बैन है कुछ को बड़ी मशक्कत के बाद रिलीज हो पाई। इन्ही की कडी कई विवादित फिल्में जिसमें प्रमुख रूप से बैंडेट क्वीन, फायर, वाटर, पिंक मिरर,कामसूत्र, इन्दिरा सरकार, व जोधा अकबर आदि हैं। कुछ ऐसी भी फिल्में हुई जिसे भारत से बाहर लोगों ने खूब सराहा लेकिन इसके बावजूद समाज की रीढ़ पर चोट करती इन फिल्मों के रिलीज होने पर ही सेंसर बोर्ड ने चोट कर दिया।  वर्तमान में एक दिसम्बर को संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती रिलीज होने जा रही है, जोकि रिलीज होने से पूर्व ही विवादों में घिर चुकी है। हो भी क्यों न रानी पद्मनी (पद्मावती) एक असाधारण महिला थी। चित्तौडगढ नरेश रत्नसेन सिंह की पत्नी थी, जब चित्तौडगढ पर मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया और छः माह तक लडाई चली जिसमें राजा रत्नसेन सिंह मारे गये। उधर रानी पद्मनी (पद्मावती) ने प्रण किया कि वह जान दे देंगी लेकिन समर्पण नही करेंगी। और खिलजी सेना के किले में घुसने से पहले ही रानी पद्मनी (पद्मावती) अपने अस्मत व धर्म की रक्षा करते हुआ हजारों महिलाओं के साथ अग्नि में कूद कर जौहर प्रथा को  अपनाते हुए सती हो गई। विश्व की किसी भी संस्कृति में ऐसी बहादुर नारी द्वारा अपने जान का न्यौछार करने का उदाहरण  नही मिलेगा। ऐसी सतीत्व नारी को फिल्म में नाचते गाते हुए दिखाया जाना कहां तक उचित है। ये नारी का अपमान नही तो और क्या है। फिल्म का विरोध करना कुछ तथाकथित नेता,मीडिया व विद्वान वर्ग इस समाज में भी हैं, जिन्हे अभिव्यक्ति की आजादी व संविधान पर चोट दिख रही है। इन्हे इतिहास, संस्कृति व नारी स्वरूप के साथ छेडछाड मंजूर है। लेकिन जब फारूक अब्दुल्ला, पी चितम्बरम्, व चैनलों पर बैठ कर आतंकियों की पैरवी करने वाले मौलानाओं व जनप्रतिनिधियों के बयान नही सुनायी पडते हैं , तब इन्हे संविधान व अभिव्यक्ति की आजादी की परिभाषा की समझ नही रह जाती है।बहुतों का मानना है कि फिल्मों को विवादित बनाना सफलता की गारटी होती है, ऐसा भी कुछ फिल्मों के साथ हुआ है कि विवाद के बाद वे फिल्में सफल हो गई हैं। इनमें प्रकाश झा व संजय लीला भंसाली का विवादों से गहरा नाता रहा है। मुफ्त की पब्लिसिटी मिलना भी तय रहता है। दर्शकों में भी जिज्ञासा जग जाती है कि आखिर क्या है इस फिल्म में जोकि इसका विरोध रहा है। इन तथाकथित फिल्म मेकरों का उद्देश्य ही यही रहता है कि कुछ ऐसा किया जाय कि हमारी फिल्म बिवादित हो और फिल्म सुपर डूपर हिट हो जाये इन्हे समाज, जाति, धर्म के आहत से कोई मतलब नही रहता है। इन्हे तो सिर्फ पैसा कमाने को सोच रहती है। इनके इस कोशिश को नाकाम करने की जयरत है जिससे दोबारा लोगों की भावनाये आहत कर सकें। यह भी सत्य  भारतीय जन मानस में उठ रहे विरोध से लगता है कि उस बलिदानी नारी की गाथा हिन्दुस्तानियों के दिल में आज भी है। हमें इस फिल्म को मनोरंजन के रूप नही प्रस्तुत होने देना चाहिए क्योंकि ये हमारे देश के व नारी के मान सम्मान का सवाल है। हमारी संस्कृति व गौरवशाली इतिहास को तोड मरोड कर पेश करने वाले इन ना समझ स्वार्थी पैसे के लोभी फिल्म मेकरों के इस दुःसाहस पर लगाम लगनी चाहिए। इसके लिए सरकार को कायदा कानून ऐसा बनाना चाहिए, जिससे कोई भी हमारी संस्कृति व इतिहास के साथ छेडछाड न करने की हिमाकत न सके।

@NEERAJ SINGH

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

काश .......कोई मेरी भी सुनता !

  प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में दीपोत्सव मनाया जा रहा है,क्योंकि इसी दिन राक्षसराज रावण का अंत करके लंका की जनता को उस की प्रताड़ना से मुक्त करा कर अयोध्या लौटे थे I इस दिन मां लक्ष्मी, गणेश व कुबेर की पूजा भी की जाती है और अपने-अपने घरों को दीप जलाकर सजाया जाता है I इस बार भी अयोध्या में 12 लाख दीप जलाकर योगी की उत्तर प्रदेश सरकार वर्ल्ड रिकार्ड बना रही है I यह एक अच्छी पहल है, होना भी चाहिए ,जिससे कि आने वाली पीढ़ियां हमारी संस्कृति को समझ सके, उन्हें जान सके I लेकिन देश भर में मनाये जा रहे दीपावली त्यौहार पर आर्थिक नीतियों में ग्रहण की तरह घेर रखा है I पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने जनता का दिवाला निकाल दिया है I विगत 02 साल में जहां कोरोना देश की नहीं आम जन के बजट को हिला कर रख दिया है I महंगाई बढ़ने लगी I अब जबकि कोरोना महामारी से लोग उबरने लगे हैं I देश की अर्थव्यवस्था सुधरने लगी है I लेकिन महंगाई पर अभी भी सरकार नियंत्रण करने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो पा रही है I इसी बीच पेट्रोलियम पदार्थों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है और यह अब शतक लगाकर पार हो चुका है I ...

संकुचित राजनीति की बदरंग तस्वीर

    जाति-धर्म के फैक्टर में, कोई नहीं है टक्कर में....उक्त स्लोगन आज की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय बिल्कुल सटीक बैठता है I विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में वर्तमान में जिस तरह की राजनीति चल रही है ,आने वाले समय में विषम परिस्थितियों को आमंत्रित करने का कार्य किया जा रहा है I जो न तो लोकतंत्र के सेहत के लिए ठीक होगा न ही आवाम के लिए ही हितकारी होगा I  हमारे राजनीतिक दलों के आकाओं को भी चिन्तन करने की जरूरत है कि सत्ता के लिए ऐसी ओछी राजनीति कर देश की स्थिरता को संकट में डालने का कार्य कर रहे हैं I देश के बड़े-बड़े  अलम्बरदार माइक सम्हालते ही सबसे बड़े देश-भक्त बन जाते हैं I लेकिन चुनाव आते ही वोट पहले और देश बाद में होता है I मंचों पर जो विचारधारा प्रस्तुत करते हैं ,वो चुनावी रणनीति में बदल जाती है I बस एक ही एजेंडा होता है जीत सिर्फ जीत इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं I पार्टी का सिद्धांत तो तेल लेने चला जाता है I अभी हाल के दिनों में कुछ राजनीतिक घटनाओं में उक्त झलक दिखी I पंजाब, उत्तर प्रदेश में 2022 में चुनाव होने हैं I जातिगत आधार पर राजनीति शुरू ह...

यूपी चुनाव ने गढ़े नये आयाम

  यूपी में का ....बा ! यूपी में बाबा ... जैसे गीतों की धुन विधानसभा चुनाव 2022 में खूब चले अरे उठापटक के बीच आखिरकार विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ I एक बार फिर योगी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने जा रही है I संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अनेकानेक सवाल भी अपने पीछे छोड़ कर गया है I इस बार यह चुनाव धर्म जाति पर लड़े या फिर राष्ट्रवाद सुरक्षा सुशासन महंगाई बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चुनाव हुए ? राजनीतिक दलों ने मुद्दे तो खूब उठाएं धर्म जाति दोनों पिचों पर दलों ने जम कर बैटिंग किया चुनाव की शुरुआत में जिन्ना का प्रवेश हुआ हिंदुत्व मुद्दा बना कई दलों में मुस्लिम हितैषी बनने को लेकर होड़ मची दिखी चुनाव का अंत में EVM पर आकर टिक गया I चुनाव काफी दिलचस्प रहा लोगों में अंत तक कौतूहल बना हुआ था कि किसकी सरकार बनेगी I फिलहाल योगी सरकार बन ही गई इस चुनाव में सभी मुद्दों दोही मुद्दे सफल हुए जिसमें राशन व सुशासन I ये सभी मुद्दों पर भारी रहे I पश्चिम उत्तर प्रदेश में सुशासन तो पूर्वी में राशन का प्रभाव दिखा I इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय का एक तरफा वोटिंग ने समाजवादी पार्टी को 125 सीटों तक पहुं...