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अस्तित्व के जद्दोजहद से जूझती गुजरात चुनाव में राजनीतिक पार्टियां !

राजनीति के कितने रंग होते हैं, और इन रंगों की होली कैसे खेली जाती है, नेताओं ने गुजरात चुनाव में पूरे दम ख़म के साथ दिखा रहे हैं।आज राजनीति भी सातों रंगों से सजी हुई है,भले ही काले रंग का जलवा कुछ अधिक ही दिख रहा है। अब आइये बात करते हैं देश में गुजरात चुनाव का महत्व क्या है ? आखिर देश की जनता की नजरे गुजरात विधान सभा चुनाव क्यों जमी हैं! मीडिया का जमावड़ा व कवरेज ये जरूर दर्शाता है कि जनता व देशवासियों में सवाल तो कई हैं,लेकिन जबाब कितने का मिलता है ये देखने की बात है। गुजरात विधान सभा चुनाव  का प्रचार अपने चरम पर है । सभी दल मतदाता को रिझाने का भरकस प्रयास किया जा रहा है। विकास,आरक्षण व जाति के मुद्दों  पर शुरू होने वाला ये चुनाव मंदिरों व गिरजाघरों से होके गुजरते हुए अब ये गुजरात गौरव व राष्ट्रवाद पर आकर टिक गया है।  कांग्रेस भी करो या मरो के नारे के साथ राहुल गांधी के नेतृत्व पूरी दमदारी से चुनावी वैतरणी पार करने के फ़िराक में हैं। जिसके खेवनहार के रूप में राहुल ने पटेल आंदोलन के मुखिया और चर्चित चेहरा हार्दिक पटेल  को चुना है। साथ ही पाटीदार आंदोलन के विरोधी चेहरा अल्पेश ठाकोर  व ऊना काण्ड के बाद सांमतवाद, ब्राह्मणवाद के खिलाफ बिगुल फूंकने वाला नया दलित चेहरा जिग्नेश मेवाडी के मिलकर बीजेपी की चुनाव में चूल्हे हिलाने की तैयारियों में कांग्रेस जुटी है। ये तो आने वाला वक्त ही बता पायेगा कि कितना ये गठबंधन अपने उद्देश्य में सफल होगा! विडंबना ये है कि कांग्रेस के साथ गुजरात में हलचल पैदा करने ये तीनों चेहरों की विचारधाराओं बड़ी भिन्नता है। इनमें कैसा तालमेल बैठता है, ये भी देखने वाली बात है। फिलहाल ये सभी सीट बंटवारा से सहमत नही हैं। क्योंकि इनके कार्यकर्ताओं में काफी आक्रोश देखने को मिला है।इस बार  गुजरात चुनाव के शुरुआती दौर में जनता की नाराजगी साफ़ दिख रही है। अब सवाल ये उठ रहा कि कांग्रेस जनता की नाराजगी को भुना पाएगी या फिर एक बार और गुजरात फ़तेह सपना ही रह जायेगा। वहीँ भाजपा भी रूठी जनता को मनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ा जा रहा है। जिससे गुजरात की सत्ता हाथ से फिसलने न पाये क्योंकि उनको पता है कि इसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। ये बात बीजेपी समझ भी रही है । विगत कई महीनों से गुजरात विधान सभा के चुनाव गम्भीरता को समझते हुए कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी  के साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी उपस्थित जनता के बीच बनाए हुए हैं। जहाँ एंटनी समिति की रिपोर्ट को ध्यान रखते हुए राहुल गांधी हिन्दू वोटबैंक को रिझाने मंदिरों के चक्कर काटते हुए दिख रहे हैं।  नरेंद्र मोदी भी मंदिरों पर दर्शन करते हुए दिख रहे हैं। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है ,वैसे वैसे गुजरात की सियासत में तापमान बढ़ता जा रहा है । लोकल मुद्दे से लेकर देश -विदेश के मुद्दे उठ रहे हैं। राहुल ने हाफिज की रिहाई पर मोदी पर  ट्वीटर जो लिखा वो भी बीजेपी के लिए बैठे बैठाये मुद्दा दे दिया। राहुल का आतंकी के साथ देने की बात भाजपा ने कही। साथ ही इसे पीएम मोदी ने गुजरात  की  अस्मिता से जोड़ने का प्रयास किया । इतना ही नही विगत  यूपी के चुनाव के चर्चा में रहा गुजराती गधे को गुजरात चुनाव में उतार दिया है।अब चुनाव शबाब पर पहुँचने की ओर अग्रसर है। अभी न जाने कितने गड़े मुर्दे गुजरात के चुनाव में जिन्दा हो जायेंगे। फिलहाल बीजेपी ही नही देश के बिभिन्न चुनावों में पार्टी की ऐतिहासिक जीत दिलाने वाली जोड़ी मोदी-अमित की असल परीक्षा इस चुनाव में होना है। क्योंकि जनता का रूख कुछ बदली दिख रही है। वहीं राहुल गांधी ने भी हार्दिक, अल्पेश,जिग्नेश की तिकड़ी बीजेपी का विजय रथ रोकने में हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।आरोप-प्रत्यारोप की फुलझड़ी चलती रहेगी। बीजेपी को इस अग्नि परीक्षा को पास करना सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है। उधर कांग्रेस भी पार्टी के अस्तित्व के लिए संघर्ष  करती रही है। कौन सही कौन गलत इसका फैसला जनता करेगी।  इस चुनाव में अनेक राजनीतिक दांव पेंच के साथ साथ रँग बदलते नेताओं को भी जनता देख रही है,ये कुर्सी के लिए क्या नही कर डालें ।
@NEERAJ SINGH

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