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बापू के सपनों का भारत बना सियासी अखाडा


देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 150वीं जयन्ती धूमधाम से मनाई जा रही है। देश के हर कोने में राष्ट्र बापू को याद किया गया। ऐसे ही नही आज बापू को राष्ट्रपिता का दर्जा मिला है। उनके सत्य,अहिंसा,ईमानदारी व आदर्शों की देश ही नही दुनिया कायल थी। देश की आजादी दिलाने में उनके कर्तव्यों को न भुलाने के और जनता को पुत्र समान प्यार देने के वाले बापू को राष्ट्र पिता का दर्जा मिला । हर वर्ष 02 अक्टूबर पर उनकी जयंती सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस वर्ष 02 अक्टूबर की विशेषता 150वीं वर्षगांठ होना था। जिसे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छता वर्ष के रूप में मना कर बापू को श्रद्धांजलि दी।प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार 60 करोड़ की आबादी तक शौचालय की सुविधा दी गई। जिसे बापू के सपनों को साकार करने का कार्य किया गया है। आज के दिन देश दो महापुरुषों की जयंती मनाता है , पहला राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर बहादुर शास्त्री का जन्मदिन 02 अक्टूबर को ही हुआ था। अब हम बात करते हैं इन महापुरुषों के सिद्धांतों व उनके मूल्यों पर चलने वाले देश में कितने राजनेता बचे हैं जो उनके पद चिन्हों पर चलकर देश का भला कर रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर हमेशा ही विद्वानों ने अपने अलग-अलग विचार रखें हैं। लेकिन गांधी जी के विचारों से सहमत होने वालों की संख्या का बहुमत आज भी है ।गांधी जी की हत्या की जब भी चर्चा होती है कांग्रेस हमेशा नाथूराम गोडसे को आरएसएस का कार्यकर्ता ही बताते हैं वही r.s.s. इस बात का खंडन करती है कि नाथूराम गोडसे का आर एस एस से कोई दूर दूर तक नाता नहीं था । एक बात तो सत्य है कि आर एस एस के विचार गांधी के विचारों से जरूर भिन्नता पाई जाती है। लेकिन इसका खुलकर आर एस एस ने भी कभी अपने विचार नहीं रखे । 70 सालों तक राज करने वाली कांग्रेस हमेशा ही कहा करती है कि स्वयंसेवक संघ बापू को कभी भी राष्ट्रपिता नहीं मानती है। इस बात की पुष्टि कहीं ना कहीं भाजपा के संस्थापक पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के विचार करते थे। उनका मानना था कि राष्ट्र का पुत्र हो सकता है पिता नही । यह विचार स्पष्ट करते हैं कि गांधी जी की विचारधारा से आरएसएस तालमेल नही खाती थी। अनेक विद्वानों का मानना है कि देश के विभाजन के समय और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मौन धारण कर लेना और अपने पुत्र समान दोनों नेताओं नेहरू और जिन्ना को बंटवारे की जिद करने से रोकने में उनकी असमर्थता उनकी असफलता दर्शाती है। विभाजन का जिम्मेदार भी मानते है । सत्य है कि दुनिया आज भी उनके आदर्शों मूल्यों सत्य निष्ठा के लिए जानती है और उनका सम्मान करती है । लेकिन भारत में सियासतदानों ने गांधीजी के नाम को सियासी हथियार बनाकर रख दिया है। और उनके आदर्शों व मूल्यों को भाषणों तक सीमित कर दिया है। कांग्रेस ने आजादी के बाद से गाँधी शब्द व उनको अपना मानकर अपनी बपौती समझ कर दशकों तक राज किया। लेकिन उन्हें इस बात का गुमान नही था कि एक दिन इसी बपौती को दूसरा दल छीन लेगा। बापूजी तो देश के सर्वमान्य महापुरुष हैं। अपना आदर्श मानते हैं।उनके आदर्श विचार व सत्याग्रह देश की धरोहर के समान है। ये किसी एक दल के महापुरुष नहीं सारी दुनिया के हैं। ये सत्य है कि गांधी जी के बिचारों की प्रासंगिकता आज भी है।उनके अनमोल बिचारों को समझने के लिए आज की युवा पीढी आतुर रहती है। अब बात करें भाजपा नेताओं की जो कि गांधी की बिचारधारा के सच्चे अनुवाई होने का दम्भ भर रहे हैं।जबकि ये जगजाहिर है पार्टी की विचारधारा स्वयं सेवक संघ से पे्ररित है। यही बात गांधी के बिचारों की प्रासंगिकता दर्षा रही है कि वर्तमान की सियासत में कितना महत्वपूर्ण है। गांधी जी के स्वच्छ भारत के सपनों को पूर्ण करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान को जोर षोर से चला रही है। वहीं गांधी जी के विचारों को तिलांजलि देकर कांग्रेस गांधी परिवार को असली गांधी मानने की भूलकर आज भारतीय राजनीति के हांसिये पर आकर खडी हो गई। इन्ही कमियों को लपकते हुए भाजपा ने जोरदार वापसी किया। गांधी जी के सत्याग्रह के मूल में बहुत सारे सिद्धांतों व विचारों के दर्षन का समावेष मिलता है। इनके मूल में जाने पर सत्य, अहिंसा, अस्तेय,अपरिग्रह,श्रम , सादगी एवं नैतिकता के दर्षन होंगे। अगर गांधी जी के सत्याग्रह का अर्थ समझने की कोषिष करते हैं ,तब हमें अन्याय,अत्याचार, भ्रष्टाचार , उत्पीडन व ष्षोषण करने वाली व्यवस्थाओं के खिलाफ असहयोग व जनान्दोलन करना ही सत्याग्रह का मूल अर्थ है। कहने का अर्थ है कि सही रूप् से अगर हम सत्य पर अडिग रहते हैं तो निरंकुष व अहितकारी राजा व उसकी सरकार को उखाड कर फेंक नई लोक कल्याणकारी राजा व उसके ष्षासन की स्थापना कर सकते हैं। गांधी के आज के भारत में आज भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है। अराजकता का माहौल है,गांधी के आर्दषों की बाते खूब होती हैं,लेकिन क्या क्रियावयन हो पाता है ये आज के सामाजिक व सियासी माहौल में एक बडा सवाल बन कर उभर रहा है! गांधी जी की जयंती हर वर्ष मनाते हैं पर देष में उनके आर्दषों नीतियों पर कितने लोग चल रहे हैं। ये भी समझना बहुत आवष्यक है। अगर उनके दार्षनिक विचारों का अध्ययन व मनन करेंगे,अनुपालन करते हैं तभी देष की तस्वीर बदेलेगी और गांधी के सपनों का भारत बनकर तैयार होगा। और तभी इन महापुरूषों की जयंती मनाना सार्थक होगा। @NEERAJ SINGH

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