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कहीं आप में भी तो नहीं.....!






आप सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल कर दिया जिसका मतलब समझ में नहीं आ रहा है। जी हां बिलकुल सोचा आपने हम तो आपके भीतर बैठे बुराईयों के दानव की बात कर रहे हैं, जो दिखता नही है, कभी-कभी उसे आप समझ नही पाते हैं कि ये अवगुण है या फिर गुण। जब आप इसके बारे में थोडा बहुत समझते हैं तो उसे छिपाने का प्रयास करते हैं और खुद से भी झूठ बालना शुरू करते हैं, जो एक और बुराई उन्हीो बुराईयों के साथ समाहित हो जाती है। जीवन दर्शन समान है । जीवन कोरे कागज के समान है जिसमें जैसा रंग भरोगे वैसा ही दिखेगा। जीवन के कोरे कागज में बुराई भरोगे तो वही भरेगा , अगर गुण व संस्कागर भरोगे तो वही दिखेगा । अगर हम जीवन का मन से विश्लेषण करते हैं ,तो जीवन में घटी अच्छी -बुरी घटनाओं के साथ-साथ आपके अंदर की अच्छाई व कमियों के दर्शन प्राप्त हो जाएंगे। अच्छे इंसान बनने के लिये अच्छी प्रवृत्तियों को अपने जीवन मे लाना होगा। वही कभी-कभी चन्द स्वार्थ व लाभ के लिए आसुरी प्रवृत्तियों को अपना लेता है। और खुशहाल जीवन की राह से भटक जाता है। इसी प्रकार प्रवृत्तियों से बचने के लिए हमारी भारतीय संस्कृति में ढ़ेर सारी बातें कहीं गई हैं। पुराण,भागवत गीता ,रामायण व महाभारत जैसे ग्रंथों की रचनाएं हैं,जिसमें मानव को जीवन जीने की विधाओं को समाहित किया गया है कि जीवन का सार यही है।इन सभी अध्ययन के बावजूद मनुष्य भटक जाता है और आसुरी आदतों के वश में आ जाता है। रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि ग्रंथ की रचना से पहले लूट पाट करते थे । एक ऋषि की बातों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उनका ऐसा ह्रदय परिवर्तन हुआ कि प्रभु में विलीन हो रामायण जैसा महाग्रंथ लिख डाला।वही महान विद्वान होते हुए भी लंकापति रावण असुर ही जीवन पर्यन्त बना रहा। और उसकी बुराइयों का अंत करने स्वम् श्रीराम जी पृथ्वी लोक में आना पड़ा और रावण का अंत करने लंका जाना पड़ा। भारतीय संस्कृति की परम्परा जीवन्त रखते हुए हर वर्ष विजयदशमी (दशहरा) के अवसर पर अच्छाई को बुराई का अंत करना पड़ता है । इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है । मनुष्य के अंदर ही बुराइयों व कमजोरियों का वास होता है जो उसका सबसे बड़ा शत्रु होता है । हमें अच्छा बनने के लिए इन्हें पराजित करने की आवश्यकता है। क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार, हिंसा, लोभ जैसे भीतर बसे दानवों का अंत करके एक गुणवान व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं । आपके अंदर बसे मायामोह-रागद्वेष से ही आसुरी प्रवृतियां पनपती हैं। इनके समूल नाश से ही हम दुर्गुणों से दूर हो पाएंगे और गुणवान व्यक्तित्व का निखार होगा। अब बात करते हैं देश की जहां रावण रूपी बुराइयां दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। जो भारतीय संस्कृति व सामाजिक ढांचे को क्षति पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। जिसमें सबसे बड़ा राक्षस भ्रष्टाचार है।जो कि दिन प्रतिदिन शक्तिशाली बनता जा रहा है। तमाम तरीके जुटाने के बावजूद भी भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा है। अगर आंकड़ों की माने तो बीते वर्ष में भारत ही नहीं पूरे विश्व में भ्रष्टाचार रूपी दानव और ताकतवर हुआ है। विश्व के 180 देशों में भ्रष्टाचार के रूप में भारत का 78 वां स्थान है। जबकि चीन का 87 वां स्थान है।इन सभी से भारत के सीमावर्ती देश भूटान में भ्रष्टाचार का आकार इनकी तुलना में बहुत छोटा है। इसका पूरे विश्व में 25वां स्थान है। भ्रष्टाचार के कारक में प्रमुख है मनुष्य का माया मोह जिसके चलते लोग जल्द से जल्द अमीर बनना चाहते हैं। इसलिए इन्हें शॉर्टकट तरीके से कमाने का जरिया भी ढूंढना पड़ता है। जो भ्रष्टाचार के रास्ते से होकर गुजरता है।दूसरा महत्वपूर्ण कारण समाज में लालच का बढ़ना भी एक कारक है। भारत जैसे देश में तीन बड़ी श्रेणियां भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही हैं, जिसमें नौकरशाह, नेता व उद्योगपति शामिल हैं । इन्हीं के गठजोड़ ने देश में भ्रष्टाचार को इतना बड़ा दानव बनाने में अहम भूमिका अदा की है।जितने अभी बडे भ्रष्टाहचार के मामले देश में प्रकाश आये हैं, उनमें राजनीतिक व उद्योगपति ही पकडे गये हैं । आज स्थिति यह है कि इन्हीं गठजोड़ों को अपना आदर्श मानते हुए निचले स्तर के कर्मचारी व अधिकारी भी भ्रष्ट सिस्टम में जुड़ चुके हैं।आज स्थिति यह है कि पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार उसी तरह घूम रहा है, जैसे मनुष्य के शरीर में रक्त बहता है और सीना ठोक कर भ्रष्टाचार रूपी दानव का कहना है कि चाहे कर लो जितने जतन हम जाने वाले नहीं हैं। त्रेता युग में श्रीराम ने नकारात्मकता का प्रतीक रावण का वध तो कर दिया था। लेकिन उसकी बुराइयों के दहन अब तक हो रहा है। दिनोंदिन रावण का पुतला बड़ा ही होता जा रहा है। इससे तो यही अर्थ निकाला जा सकता है कि हमारे समाज व देश में बुराइयां भी बढ़ती जा रही हैं। यह सत्य भी है कि आज हमारे देश में अनेकों प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न हो गई है चाहे सामाजिक रूप में हो या मानवीय रूप में हो या मानवीय रूप में हो गरीबी बेरोजगारी अस्वच्छता आत्मनिर्भरता के अवसरों में कमी स्वास्थ्य सुलभता की कमी भ्रष्टाचार अशिक्षा जातिवाद संप्रदायवाद नक्सलवाद एवं आतंकवाद समस्या रूपी रावण मनुष्य के साथ ही देश को सबल व समृद्धि शाली बनाने में बाधा बन रहा है। फिलहाल इस दशानन रूपी समस्याओं से सरकार द्वारा लड़ाई लड़ी जा रही है। लेकिन मानव के अंदर बैठे राक्षस को सरकार नहीं आप स्वयं मिटा सकते हैं । उसे हरा कर उन पर अच्छाई की जीत हासिल कर सकते हैं। जो एक सरोकार से परिपूर्ण मानव व्यक्तित्व का निर्माण करेगा और हम एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण में सहयोग करें जहां सुशिक्षित स्वस्थ समाज हो, नारियों का सम्मान हो, गरीब के साथ अमानवीय व्यवहार ना हो , पर्यावरण व जनसंख्या जैसी समस्याओं का निदान हो और समाज का सर्वांगीण विकास हो ऐसा सपना सभी मनुष्यों को सोचना होगा तभी देश व समाज का एक नया स्वरूप सामने आएगा । सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः की वाणी चरितार्थ होगी। आइए हम विजयदशमी के महापर्ब में अपने भीतर की अमानवीय प्रवृत्तियों को जला दें और जीवन को नये सरोकार के साथ जियें। 

*विजयदशमी की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाये*


        @NEERAJ SINGH

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